पेड़-पौधों के बगैर जीवन की कल्पना अधूरी
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) मानव-प्रकृति संबंध आदिकाल से रहा है। पेड़ों से पेट भरने के लिए फल-सब्जि्यां और अनाज मिला। शरीर ढकने के लिए वस्त्र मिले। घर बनाने के लिए लकड़ी मिली। इनसे जीवनदायिनी ऑक्सीजन भी मिलती है। इसके बिना कोई एक पल भी जिदा नहीं रह सकता। इनसे औषधियां मिलती हैं।
मुरलीपहाड़ी (जामताड़ा) : मानव-प्रकृति संबंध आदिकाल से रहा है। पेड़ों से पेट भरने के लिए फल-सब्जि्यां और अनाज मिला। शरीर ढकने के लिए वस्त्र मिले। घर बनाने के लिए लकड़ी मिली। इनसे जीवनदायिनी ऑक्सीजन भी मिलती है। इसके बिना कोई एक पल भी जिदा नहीं रह सकता। इनसे औषधियां मिलती हैं। पेड़ इंसान की जरूरत है यह जीवन का आधार है। यही कारण है कि सभी धर्मो में पेड़-पौधे को प्राथमिकता दी गई है। भारतीय समाज में आदिकाल से ही पर्यावरण संरक्षण को महत्व दिया गया है। भारतीय संस्कृति में पेड़-पौधों की पूजा होती है। यही कारण है कि समाज में आज भी बुद्धिजीवी पेड़ पौधे लगाने की ओर हर समय संजीदगी दिखाते हैं। ऐसे लोग सदैव पर्यावरण संतुलन के लिए पेड़-पौधे को लगाने व संरक्षण की दिशा में चितन करते हैं। ऐसे तो नारायणपुर प्रखंड में कई पर्यावरण प्रेमी हैं जो पौधे लगाने से लेकर बचाने तक के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण प्रखंड के दीघारी पंचायत के चिरूडीह गांव का है। इस गांव के डॉक्टर मोहम्मद नसरुद्दीन जो 80 के दशक से पौधे लगाने पर जोर दे रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से 1980 में यूनानी पद्धति से चिकित्सकीय विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल करनेवाले इस प्रसिद्ध चिकित्सक ने अपने शिक्षकों से विश्वविद्यालय परिसर में ही पौधे लगाने एवं पर्यावरण से जुड़े गुढ़ तत्व को समझा। पढ़ाई के साथ-साथ पर्यावरण में पेड़-पौधे के महत्व को जब शिक्षकों के माध्यम से जानने को मिला तो उन्होंने यहीं से पौधे लगाने की प्रेरणा ली। पढ़ाई पूर्ण कर जैसे ही गांव लौटे और गांव में ही चिकित्सा का कार्य आरंभ किया। उसके ठीक आठ वर्ष बाद ही उन्होंने अपने आस-पास के खाली पड़े भूभाग में विभिन्न छायादार व फलदार पौधे लगाना शुरू कर दिया। हर बरसात के मौसम में अब तक प्रत्येक वर्ष पौधे लगाने एवं उसे बचाने के लिए कार्य किया। अब तक 600 पौधे उन्होंने अपने बगीचे में लगाया है। इसमें से आम, लीची, नींबू, आंवला, नारियल, सागवान, यूकेलिप्टस, अलकसिया, सखुआ, महुआ, जामुन, कटहल आदि पौधे प्रमुख हैं। डॉ. मोहम्मद नसरुद्दीन ने बताया कि इस्लाम में पर्यावरण संरक्षण को बहुत महत्व दिया गया है। कुरान कहता है जल और थल में असंतुलन हो गया है। पैंगम्बर मुहम्मद सल्ल ने कहा है कि यदि कयामत आ रही हो और तुममें से किसी के हाथ में कोई पौधा हो तो उसे लगा ही दो और परिणाम की चिता मत करो।
प्रतिदिन बगीचा में देते हैं समय : डॉ. मोहम्मद नसरूद्दीन जब से पौधे लगाने का कार्य आरंभ किए हैं उस समय से ही अपने व्यस्त दिनचर्या में सुबह में समय निकालकर बगीचे में पौधे के विकास के लिए कार्य किया है चाहे पौधे के आसपास खरपतवार की सफाई हो या फिर पटवन का कार्य हो पौधे में यदि दीमक लगा हो तो उसके सफाई की हो या फिर फलदार पौधों में कीड़े मकोड़े को हटाने के लिए दवाई आदि देना सभी कार्य को स्वयं करते हैं। पर्यावरण प्रेम ने इन्हें जीने का एक रास्ता दिया है। जिस प्रकार लोगों की मित्रता मनुष्यों के साथ रहती है उसी प्रकार इन्हें मनुष्यों के अलावा पेड़-पौधों से भी एक प्रकार की दोस्ती है। यदि इन्हें किसी नर्सरी में ऐसे पौधे दिखे जो इनके बगीचे में नहीं हो तो फिर उस पौधे को अपने बगीचे में जब तक नहीं लगा ले तब तक इन्हें सुकून नहीं मिलता है।
-- लोगों को मिली प्रेरणा : इनके बगल के गांव डुमर सिघा के अब्दुल गफ्फार व मीहिर अंसारी ने इनके पौधे लगाने के तरीके से प्रभावित होकर अपने यहां भी पौधे का बगीचा तैयार किया। इन दोनों ने इनसे ही प्रेरणा लिया। पर्यावरण संतुलन के लिए पौधे का भूमि में रहना बहुत आवश्यक है। पेड़ पौधे जिस प्रकार कट रहे हैं उससे पर्यावरण असंतुलन का खतरा मंडरा रहा है। आनेवाले समय में ऑक्सीजन भी न खरीदना पड़े इसके लिए इन लोगों ने पेड़-पौधे के महत्व को समझकर अपने खाली पड़े भूभाग में सैकड़ों पौधे लगाए। यही कारण है कि इनके भी भूमि में भी काफी हरियाली है। पौधे लहलहा रहे हैं। आसपास का वातावरण सुंदर व स्वच्छ है।
क्या कहते हैं डॉक्टर : पेड़-पौधे जीवनदायिनी वायु के अलावा पर्यावरण संतुलन में काफी मददगार होता हैं। इनसे कई प्रकार की औषधियां भी प्राप्त होती हैं। इनके बिना प्रकृति में संतुलन संभव नहीं है। पेड़-पौधे की कमी से आक्सीजन की कमी होती चली जाएगी। जिससे जीना दूभर हो जाएगा। ऐसे में पेड़-पौधे जीवन को बचाने में ही नहीं अपितु पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। अगर पेड़-पौधे कम हो जाएंगे तो पक्षियों का आश्रय स्थल कम होता चला जाएगा। यही कारण है कि वनों की कटाई के चलते जीव-जंतु कम होते चले जाएंगे। आहार श्रृंखला में भी पेड़-पौधों की भूमिका कम नहीं है। शाकाहारी जीव-जंतु पेड़ पौधों को परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से खाते हैं। यदि पेड़-पौधे नहीं होंगे तो शाकाहारी जीव कम हो जाएंगे, जिसके चलते मांसाहारी जीवों पर कुप्रभाव पड़ेगा और आहार श्रृंखला कमजोर होती चली जाएगी। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को पौधे लगाने पर जोर देना होगा तभी हमारा यह पर्यावरण संतुलित रहेगा।