शक्ति रूपेण संस्थिता: ढाई सौ वर्ष पुरानी है यहां की पूजा
नारायणपुर दुर्गा पूजा को लेकर क्षेत्र में उत्सवी माहौल है। चारों तरफ लोग मां की भक्ति के रंग में दिख रहे है। कलश स्थापित कर मां भगवती की पूजा अर्चना हो रही है। भक्तगण माता की पूजा में लीन है। प्रखंड के पतरोडीह दुर्गा मंदिर में भी पूजा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। प्राचीन काल से ही यहां देवी की आराधना होती आ रही है। इस बार भी
नारायणपुर : दुर्गा पूजा को लेकर क्षेत्र में उत्सवी माहौल है। चारों तरफ लोग मां की भक्ति के रंग में दिख रहे है। कलश स्थापित कर मां भगवती की पूजा अर्चना हो रही है। भक्तगण माता की पूजा में लीन है। प्रखंड के पतरोडीह दुर्गा मंदिर में भी पूजा की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। प्राचीन काल से ही यहां देवी की आराधना होती आ रही है। इस बार भी पतरोडीह मंडप में विधि-विधान से पूजा की जा रही है।
इतिहास : पतरोडीह में राजा-महाराजओं के शासन काल से ही पूजा होती आ रही है। यहां की पूजा करीब ढाई सौ वर्ष पुरानी है। यहां मंदिर निर्माण से लेकर पूजा पाठ तक का सभी खर्च सोलह आना वहन लोगों के सहयोग से होता है।
पूजा की विधि : शारदीय नवरात्र का अलग ही महत्व है। यहां पौराणिक रीति-रिवाज के अनुसार पूजा की जाती है। कलश स्थापना के साथ ही यहां पूजन आरंभ हो जाता है। सप्तमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा बेदी पर स्थापित होती है। महाअष्टमी तिथि को भक्तगण मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। नवमी के दिन मंडप में मां के दर्शन को बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां बलि दिए जाने की पुरानी परंपरा है। महानवमी के दिन यहां मेला भी लगता है। मेले में आस-पास इलाके के लोग शरीक होते हैं।
कैसे आए मंदिर : नारायणपुर बस स्टैंड से पतरोडीह की दूरी चार किमी है। यहां आने-जाने के लिए ऑटो समेत अन्य वाहनों की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा निजी वाहनों से भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
--क्या कहते हैं पुजारी : माता रानी पर सबों की आस्था है। माता रानी का यह मंदिर जागृत और लोगों के आस्था और विश्वास का प्रतीक है। यहां आने वाले भक्तों की मुराद माता रानी पूरी करती है। कोई अब तक खाली हाथ मां के दरबार से नहीं लौटा है। यहां विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना होती है। पिटू पांडे पुजारी, फोटो नं. 4