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मैनेजमेंट गुरु प्रोफेसर विश्व वल्लभ बोले, दूरगामी परिणाम चाहिए तो कुछ दिक्कतें बर्दाश्त करनी होंगी

एक्सएलआरआइ के प्रो. विश्व वल्लभ का मानना है कि नोटबंदी व जीएसटी लागू होने के बाववजूद उम्मीदें पूरी नहीं हुई। आय नहीं बढऩे के कारण निजी वाहनों का कारोबार घटा।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 05:06 PM (IST)Updated: Wed, 21 Aug 2019 10:51 AM (IST)
मैनेजमेंट गुरु प्रोफेसर विश्व वल्लभ बोले, दूरगामी परिणाम चाहिए तो कुछ दिक्कतें बर्दाश्त करनी होंगी
मैनेजमेंट गुरु प्रोफेसर विश्व वल्लभ बोले, दूरगामी परिणाम चाहिए तो कुछ दिक्कतें बर्दाश्त करनी होंगी

जमशेदपुर, जासं।  उद्योगों में सुस्ती की वजह तलाशी जाए तो तीन-चार वजहें नजर आती हैं। जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था की ओर शिफ्ट किया जाता है तो ऐसे हालात आते हैं। इसके मूल में उद्योग जगत की भविष्य से अपेक्षा से जोड़ा जाता है। अपेक्षा के अनुरूप परिणाम मिलते नहीं दिखते तो आर्थिक सुस्ती की स्थिति बनने लगती है। यह कहना है देश की प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्था जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट (एक्सएलआरआइ) के प्रोफेसर विश्व वल्लभ का।

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वर्तमान में उद्योग व ऑटो सेक्टर के हालात पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि ओवरऑल ग्रोथ रेट कुछ सही तो कुछ गलत भी है। नोटबंदी, जीएसटी को लेकर जो उम्मीदें बंधाई गई थी वे भी अपेक्षा पर पूरी तरह शायद खरी नहीं उतर सकीं। तत्कालीन वित्त सलाहकार ने सेवा से अलग होने के बाद लिखी अपनी पुस्तक में भी माना है कि जीएसटी लागू होने के बाद फिर से विश्लेषण करने पर विकास का दर उम्मीद के अनुरूप नहीं पाया गया। उन्होंने आंकड़ों का फिर से विश्लेषण करने की जरूरत का उल्लेख किया है। ऑटो सेक्टर की बात की जाए तो केवल व्यावसायिक नहीं बल्कि निजी वाहनों का कारोबार भी घटा है। उम्मीद के अनुरूप लोगों की आय का नहीं बढऩा भी इसका एक कारण है।

आम आदमी पर न पड़े आर्थिक बोझ 

छह हजार रुपये किसानों के खाते में हस्तांतरित किए गए। वित्त मंत्री का बजट भाषण भी अच्छा रहा लेकिन भूमिका ज्यादा बांधी गई। इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च की बात तो कही गई लेकिन इसकी समयबद्ध योजना नजर नहीं आई। बजट घाटे को नियंत्रित करने से मौद्रिक नीति में भी कुछ उदारता लाई जा सकती है। वित्तीय घाटा कम करने से सरकार के साथ ही लोगों का भी फायदा होता है। यह ध्यान रखना होगा कि आम आदमी पर आर्थिक बोझ नहीं बढ़े, क्योंकि घाटे की मार गरीब पर ज्यादा पड़ती है। कीमतें बढऩे लगती हैं।

मौद्रिक नीति में मामूली परिवर्तन की जरूरत 

जब एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था की ओर शिफ्टिंग हो रही है तो प्रबंधन भी उसी अनुरूप करने की जरूरत है। मसलन, टैक्स कार्यशैली को अधिक से अधिक यूजर फ्रेंडली बनाया जाए। उद्योग, सरकार और व्यक्तिगत तौर पर भी इस परिवर्तन के लिए तैयार रहने की जरूरत है।

टैक्स से छूट या आर्थिक सहायता से नहीं होगा समाधान 

प्रो. विश्व वल्लभ ने कहा कि ऑटो सेक्टर की ओर से एक साल तक टैक्स से छूट देने की मांग करने की बात सामने आ रही है। मेरे विचार से यह उचित समाधान नहीं है। इतना जरूर है कि टैक्स प्रणाली में थोड़े-बहुत बदलाव से सुधार की गुंजाइश निकल रही है तो निकाली जानी चाहिए। इससे स्पेसिफिक प्रॉब्लम को थोड़ा-बहुत सुलझाया जा सकता है।


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