विश्व साइकिल दिवस : लॉकडाउन में सबका सहारा बनी साइकिल
विश्व साइकिल दिवस पर विशेष ट्रेन व बस को दरकिनार कर साइकिल से मीलों चलकर घर पहुंचे मजदूर फिटनेस के लिए भी फिर से इसी का सहारा खूब पैडल मार रहे शहरी
जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। World Cycle Day कोरोना और लॉकडाउन के इस कठिन दौर में एकबार फिर साइकिल अपने नए तेवर व उम्मीदों के साथ लोगों के दिलो-दिमाग पर दस्तक दे रही है। साइकिल सुर्खियों में है। उत्तर प्रदेश के गुरुग्राम से बिहार के दरभंगा होते हुए अमेरिका तक चर्चा में है। झारखंड के सुदूर गांव भी अछूते नहीं रहे। परदेस लौटने वाले सैकड़ों मजदूरों के लिए यही इसबार सहारा साबित हुई।
लॉकडाउन में जब मजदूरों को लाने के लिए ट्रेन व बस चलनी शुरू हुई, इससे पहले ही हजारों मजदूर साइकिल से मीलों का सफर तय कर झारखंड के कोने-कोने में अपने घर पहुंच रहे थे। आंध्रप्रदेश के हैदराबाद से झारखंड के गोड्डा के लिए चले पांच मजदूर 12 मई को जमशेदपुर पहुंचे थे। गोड्डा के लिए निकले ये ठेका श्रमिक 17 दिनों बाद शहर आए थे। यहां मानगो चौक पर पुलिस ने इन्हें भोजन करा कर गोड्डा के लिए विदा किया। इसी जत्थे में शामिल मो.जफर, मो. मुस्तकीम, फारूक और मो. आजाद कहते हैं कि काम-धंधा बंद होने के बाद हैदराबाद में मोबाइल बेच घर पहुंचने के लिए साइकिल खरीदी थी।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती, टाटा ट्रक की चेसिस दूरदराज तक पहुंचाने वाले कान्वाई चालक भी 18 मई को मध्यप्रदेश के इंदौर से साइकिल चला आठ दिनों में जमशेदपुर पहुंचे थे। ये 20 मार्च को चेसिस लेकर गए थे, लेकिन लॉकडाउन में फंस गए। सभी ने चार-चार हजार रुपये में साइकिल खरीदी। फिर सड़क नापते हुए जमशेदपुर लौटे। किसी मजदूर नेे पत्नी का जेवर बेच साइकिल खरीदी तो किसी के परिजन ने घर पर बकरी या दूसरा सामान बेचकर साइकिल खरीदने के लिए अपने बच्चे को पैसे भेजे।
ऐसी कई कहानियां झारखंड के गांवों-कस्बों में इस समय साइकिल की महत्ता बयां कर रही हैं। कान्वाई चालक ज्ञानसागर प्रसाद कहते हैं कि मुसीबत के समय इस बार साइकिल ने खूब साथ दिया है। दरअसल, परमिट, बस, ट्रेन के झंझट में पडऩे की बजाय मजदूरों ने घर लौटने के लिए इसे सुलभ साधन माना। ये तो प्रवासी मजदूरों की बात हुई। लॉकडाउन में जब जिम और पार्क जाना संभव नहीं था तब भी शहरियों ने अपनी सेहत के लिए साइकिल का ही सहारा लिया।
समझ में आ गया महत्व
जमशेदपुर की सबसे पुरानी वर्ष 1930 से चल रही दुकान एनके घोष एंड कंपनी के मालिक महेश्वर प्रसाद घोष बताते हैं कि लॉकडाउन ने पुराने दिनों की याद ताजा करा दी। एक बार फिर सबको साइकिल की अहमियत समझा दी। 1930 में रेले साइकिल 50 रुपये में बिकती थी, आज इसके ट्यूब का दाम करीब 200 रुपये हैं। सोचिए, जमाना कहां से कहां पहुंच गया, लेकिन साइकिल वहीं का वहीं है।
हर दिन चलाइए पांच किलोमीटर साइकिल
जमशेदपुर के जानेमाने चिकित्सक बलराम झा कहते हैं हर आदमी को प्रतिदिन कम से कम पांच किलोमीटर साइकिल जरूर चलानी चाहिए। मेडिकल साइंस के अनुसार यदि आपका वजन 70 किलो है तो आधे घंटे में 298 कैलोरी बर्न कर सकते हैं। अच्छी सेहत के लिए इतना पर्याप्त है। साइकिल आज भी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से सबसे बेहतर सवारी है।