महिला वैज्ञानिकों की टीम को सलाम : इन महिलाओं की जिंदगी में अक्षरों ने भरा नया उजाला
एनएमएल जमशेदपुर की महिला वैज्ञानिकों की टीम को आप सलाम करने से नहीं रोक पायेंगे। टीम ने महिलाओं की जिंदगी में अक्षरों का नया उजाला भरा है।
जमशेदपुर, विकास श्रीवास्तव। मेहनत-मजदूरी करते लंबा समय बीत गया लेकिन शायद इन महिलाओं ने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी वे खुद अक्षरों को पढ़ पाएंगी। अंकों को समझ सकेंगी और खुद को आत्मविश्वास से लबरेज महसूस करेंगी। करीब दो दर्जन की संख्या में इन महिलाओं ने पढ़ना-लिखना सीख लिया है।
इतने लंबे समय में इनको काम करते देखनेवालों में किसी शायद यह नहीं सोचा होगा कि इन्हें अक्षर ज्ञान दिया जाए। यह सोचा उस संस्था के वैज्ञानिकों ने जिनकी हरियाली बरकरार रखने के साथ-साथ ये महिलाएं वहां की सफाई-स्वच्छता आदि का पूरा खयाल रखती हैं। सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. शर्मिष्ठा सागर पालित के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम रोज एक घंटे इन महिलाओं का क्लास लेती हैं। पढ़ने-लिखने में इन महिलाओं की रुचि इतनी बढ़ चुकी है कि एक घंटा डेढ़ घंटा तो कभी-कभी इससे ज्यादा हो जाता है। समय से पहले शिक्षण सामग्री लेकर ये कक्षाओं में पहुंच जाती हैं। कभी पढ़ानेवाले बाद में पहुंचे तो ये हाथ में मार्कर लेकर खुद बोर्ड पर कविता, पहाड़ा लिखने लगती हैं। उस समय इनकी खुशी देखते ही बनती है। इनमें कुछ एनएमएल की कर्मचारी हैं बाकी ठेका कर्मी के रूप में यहां अलग-अलग काम करती हैं।
कुछ इस तरह हुई शुरुआत
इस अभियान की कमान संभाल रहीं सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. शर्मिष्ठा सागर पालित पूछने पर बताती हैं कि पिछले कई साल से इन महिलाओं को साक्षर करने की कोशिश हम और हमारे वैज्ञानिक करते रहे हैं। हर साल एक महिला को एक वैज्ञानिक समय निकालकर साक्षर करने की कोशिश करता था। उसमें कई बार दिक्कत भी होती थी। कभी वैज्ञानिक की व्यस्तता तो कभी कोई अन्य कारण। सेंट्रल बोर्ड ऑफ वर्कर्स एजूकेशन की पहल पर इस साल तीन महीने का महिला साक्षरता कार्यक्रम शुरू किया गया जहां एक क्लासरूम में एक साथ सभी महिलाओं को वैज्ञानिकों की टीम पढ़ा रही है। दो महीने बीत चुके हैं और आप खुद ही इन महिलाओं का उत्साह व आत्मविश्वास देख सकते हैं।
ये कहतीं महिलाएं
पहले कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी में पढ़ाई-लिखाई भी होगी। यहां आकर पढ़ने में मुझे बहुत अच्छा लगता है। हिंदी पढ़ना-लिखना आ गया है। अब मैं कोई भी अक्षर देखकर समझ जाती हूं कि क्या लिखा है। पहले ऐसा नहीं था।
- शहनाज बेगम, धतकीडीह
एनएमएल में 1990 से काम कर रही हूं। अब मुझे यह सोचकर बहुत अच्छा लगता है कि मैं भी पढ़-लिख सकती हूं। बैंक खाते को भी देखकर समझ जाती हूं। चेक पर खुद साइन करती हूं। इतनी उम्र बीत जाने के बाद इससे ज्यादा खुशी क्या हो सकती है।
- पोम्पा देवी, एनएमएल कॉलोनी
पहले मुझे कुछ भी समझ में नहीं आता था। दो महीने की पढ़ाई में मेरे अंदर काफी बदलाव महसूस हो रहा है। सबसे ज्यादा खुशी उस समय होती है जब कहीं जा रहे हों और स्टेशन या शहर का नाम पढ़कर जान जाती हूं कि यह कौन सी जगह है। पहले किसी से पूछना पड़ता था।
- उषा देवी, सोनारी
मुझे सिर्फ अपना नाम लिखना किसी तरह आ गया था। अब नाम के अलावा काफी कुछ सीख गई हूं। जोड़-घटाव भी कर लेती हूं। मेरी इच्छा है कि खूब पढ़ाई करूं। पढ़ने का यह सिलसिला जारी रहेगा।
-माधवी जगदाला
उनकी खुशी देखकर हमे मिलता है आत्मसंतोष : वाइ उषा
इन महिलाओं को पढ़ानेवाले वैज्ञानिकों में एक वाइ उषा ने कहा कि जब से इन्हें पढ़ाना शुरू किया है कभी ये लेट नहीं हुई। पढ़ने के प्रति इनका उत्साह देखते ही बनता है। इन्होंने ¨हदी पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी सीख लिया है। गणित में जोड़-घटाव कर लेती हैं। अपनी गलतियों को सुधारने की इनमें उत्कट इच्छा रहती है। उनकी रुचि को समझते हुए मैं पाठयक्रम तैयार रखती हूं। उनके पास घर में रिवाइज करने का समय नहीं होता इसलिए रिवीजन भी यहीं करती हैं। किसी सवाल का जवाब देकर काफी खुश होती हैं और यह हमें एक अलग अनुभव देता है।
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