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छह दिसंबर को रेल-रोड का चक्का क्यों जाम करा रहे सालखन मुर्मू

जनता दल यूनाइटेड के प्रदेध अध्यक्ष व आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने छह दिसंबर को राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम करने का आह्वान किया है। सालखन का कहना है कि यह आंदोलन हर हाल में सरना धर्म कोड हासिल करने के लिए होगा।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Fri, 04 Dec 2020 10:24 AM (IST)Updated: Fri, 04 Dec 2020 10:24 AM (IST)
छह दिसंबर को रेल-रोड का चक्का क्यों जाम करा रहे सालखन मुर्मू
सालखन मुर्मू ने रेल रोड चक्का जाम करने की घोषणा की है।

जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। जनता दल यूनाइटेड के प्रदेध अध्यक्ष व आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने छह दिसंबर को राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम करने का आह्वान किया है।

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सालखन का कहना है कि यह आंदोलन हर हाल में सरना धर्म कोड हासिल करने के लिए आदिवासी समाज के भीतर सद्बुद्धि, एकजुटता और आंदोलन की अनिवार्यता है। यह इसलिए भी जरूरी है, ताकि 2021 की जनगणना में सभी प्रकृति पूजक आदिवासी अपनी धार्मिक पहचान और आजादी के साथ शामिल हो सकें। जबरन हिंदू और ईसाई आदि बनने से बच सकें ।

इसके लिए सभी सरना आदिवासी समुदाय से आग्रह है कि वे किसी भी सामाजिक या राजनीतिक संगठनों से जुड़े रहने के बावजूद छह दिसंबर के राष्ट्रव्यापी रेल-रोड चक्का जाम आंदोलन कार्यक्रम में शामिल हों। एकजुट होकर रेल और रोड में शांतिपूर्ण तरीके से बिना कोई हथियार आदि लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए चक्का जाम को सफल बनाकर अपनी प्रतिबद्धता को प्रकट करें। डा. करमा उरांव, बंधन तिग्गा, प्रवीण उरांव, वीरेंदर भगत, अजय तिर्की आदि से विशेष निवेदन है कि वे भी अपने समर्थकों के साथ इस आंदोलन में शामिल होकर सरना धर्म कोड आंदोलन को सफल बनाने में सहयोग करें।

आदिवासी धर्म कोड के लिए कोशिश करने वाले भी आखिर प्रकृति पूजक आदिवासियों की धार्मिक पहचान के लिए ही पहल कर रहे हैं। उनसे भी निवेदन है कि वे इस समय छह दिसंबर को आहूत रेल-रोड चक्का जाम में सहयोग करें। ठीक उसी प्रकार जैसे पहले कभी वृहद झारखंड प्रांत की मांग की गई थी, मगर छोटे झारखंड प्रांत को भी व्यावहारिकता के आधार पर स्वीकार किया गया और अंततः झारखंड प्रदेश का निर्माण संभव हो सका है। अभी के समय हम वृहद आदिवासी धार्मिक पहचान के सैद्धांतिक आधार के खिलाफ नहीं हैं ।

चूंकि व्यावहारिकता में 2011 की जनगणना में दर्ज सरना धर्म लिखने वालों की संख्या 50 लाख से ज्यादा रही है, तो हमारे लिए इस समय भारत सरकार को मजबूर करने के रास्ते पर यह तथ्य एक निर्णायक पहलू साबित हो सकता है। अत: यदि 2021 की जनगणना में हमलोग सरना धर्म कोड के साथ शामिल हो सकते हैं तो फिर आगे की लड़ाई भी जारी रखी जा सकती है।

अन्यथा हमें सरना धर्म कोड से भी हाथ धोना पड़ सकता है। इसलिए देव कुमार धान, गीताश्री उरांव, देवेंद्रनाथ चंपिया, प्रेमशाही मुंडा आदि से भी अपील है कि वे आदिवासी धर्म कोड की बात को जारी रखें। इसके साथ ही सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए आहूत रेल-रोड चक्का जाम में अपना सहयोग और समर्थन प्रदान करें।


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