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JEE Main Scam : फर्जीवाड़ा के बाद जेईई व NEET मेडिकल प्रवेश परीक्षा पर क्यों उठ रहे सवाल

JEE Main Scam जेईई मेन फर्जीवाड़ा के बाद देश की प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग व मेडिकल परीक्षा की प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठना भी लाजिमी हैं क्योंकि इस परीक्षा पर कईयों का भविष्य निर्भर करता है। आखिर परीक्षा प्रक्रिया में कहां खामी थी जानिए....

By Jitendra SinghEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 06:00 AM (IST)
JEE Main Scam : फर्जीवाड़ा के बाद जेईई व NEET मेडिकल प्रवेश परीक्षा पर क्यों उठ रहे सवाल
फर्जीवाड़ा के बाद जेईई व NEET मेडिकल प्रवेश परीक्षा पर क्यों उठ रहे सवाल

जमशेदपुर, जासं। देश में सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता परीक्षा राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) और संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE), मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लेने का एकमात्र माध्यम है। इससे ही विभिन्न राज्यों के इंजीनियरिंग कॉलेज व मेडिकल कॉलेजों में दाखिला होता है। ये परीक्षाएं नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानि एनटीए संचालित करती है। ये दोनों परीक्षा फर्जीवाड़ा के बाद विवाद में आ गई है। तमिलनाडु सरकार ने तो मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए नीट की बाध्यता को खत्म करने का विधेयक ही पेश कर दिया।

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इस साल 9.4 लाख छात्रों ने जेईई की परीक्षा दी

हर साल लाखों छात्र इन परीक्षाओं की तैयारी में महीनों खर्च करने के बाद उपस्थित होते हैं। इस वर्ष 2021 में 9.4 लाख छात्र जेईई मेन के लिए उपस्थित हुए और 16.14 लाख पंजीकृत उम्मीदवारों में से 95 प्रतिशत से अधिक नीट के लिए उपस्थित हुए। इन परीक्षाओं से जुड़े छात्रों की बड़ी संख्या और इसमें हो रहे फर्जीवाड़ा पर परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। डिजिटल मोड पर हुई जेईई मेन की परीक्षा में हुए फर्जीवाड़ा पर सरकार को भी सोचना होगा। हैकरों से बचाने के लिए सरकार को एक तंत्र तो विकसित करना ही होगा। यह जांच भी आवश्यक है कि सॉल्वर के पास प्रश्न पत्र कैसे पहुंच रहे हैं।

जमशेदपुर से जुड़े थे जेईई मेन में फर्जीवाड़े के तार

जमशेदपुर में ही जेईई मेन फर्जीवाड़ा का मामला सामने आया। इसमें अब तक 11 गिरफ्तार हो चुके हैं। सीबीआइ की दबिश के बाद जेईई मेन की साख गिर गई। छात्रों को समझ में नहीं आ रहा है किस पर विश्वास किया जा रहा है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अब तक 11 लोगों को धोखाधड़ी रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया है, जबकि एनटीए भी इसकी समानांतर जांच कर रहा है।

अपराधियों पर कहीं से 10-15 लाख रुपये के बीच आरोप लगाया गया था और एक "सॉल्वर" नियुक्त किया गया था, जो उम्मीदवारों की ओर से प्रश्न पत्र हल करेगा। दूर स्थान पर बैठे इन सॉल्वरों ने परीक्षा केंद्र में बैठे एक छात्र के सिस्टम को हैक कर उनके लिए प्रश्न पत्र हल किया। इसमें टाटा टेली सर्विसेज की इयाॅन डिजिटल की विश्वसनीयता को कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया।

इस घटना ने परीक्षा और एनटीए की विश्वसनीयता पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, क्या परीक्षाएं फिर से आयोजित की जानी चाहिए। यहां तक कि शिक्षा मंत्रालय ने अब तक इस मामले पर चुप्पी बनाए रखी है, एनटीए ने एक तरह से स्पष्ट किया है कि परीक्षा फिर से आयोजित नहीं की जाएगी, क्योंकि उसने 15 सितंबर को सभी चार चरणों की संयुक्त मेरिट सूची घोषित की थी। इसने 20 छात्रों को तीन साल के लिए परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया और "अनुचित साधनों" का उपयोग करने के लिए उनके परिणामों को रोक दिया। जमशेदपुर के सोनू ठाकुर को गिरफ्तार किया जा चुका है और प्रश्न पत्रों को हल करने वाले रंजीत शर्मा को सीबीआइ की टीम खोज रही है।

नीट में क्या है समस्या

तमिलनाडु ने सोमवार को अपने मेडिकल कॉलेजों के लिए नीट से छूट की मांग के लिए एक विधेयक पेश किया। राज्य मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए एक मानदंड के रूप में नीट को खत्म करना चाहता है और इसके बजाय बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश चाहता है। भले ही राज्य का विरोध नया नहीं है, चिंता सामाजिक और आर्थिक असमानता के कोण से उत्पन्न होती है।

राज्य द्वारा नियुक्त एक समिति ने पाया कि नीट ने एमबीबीएस और अन्य उच्च चिकित्सा अध्ययनों में विविध सामाजिक प्रतिनिधित्व को कम करके आंका, जो मुख्य रूप से समाज के संपन्न वर्गों के पक्ष में था। इसमें कहा गया है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले तमिल माध्यम के सरकारी स्कूलों के छात्र, जिनके माता-पिता की आय 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम है और सामाजिक रूप से उत्पीड़ित और वंचित समूह - ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति - नीट के कारण सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। सरकार का तर्क है कि नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए साधन रखने वालों को ही अंततः मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलता है, और आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े पृष्ठभूमि के छात्र पीछे रह जाते हैं। तमिलनाडु ने अन्य राज्यों के साथ 2012 में भी NEET का विरोध किया था।


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