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मिट्टी की परख बढ़ी तो सोना उगलने लगे खेत Jamshedpur News

पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा के किसान बिष्टु मुमरू ने पिछले वर्ष मिट्टी की गुणवत्ता जांचने का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद उन्होंने अपने ही खेतों की मिट्टी की जांच की।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Sun, 01 Mar 2020 01:17 PM (IST)Updated: Sun, 01 Mar 2020 01:17 PM (IST)
मिट्टी की परख बढ़ी तो सोना उगलने लगे खेत Jamshedpur News
मिट्टी की परख बढ़ी तो सोना उगलने लगे खेत Jamshedpur News

जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा के किसान बिष्टु मुमरू ने पिछले वर्ष मिट्टी की गुणवत्ता जांचने का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद उन्होंने अपने ही खेतों की मिट्टी की जांच की।

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उन्हें पता चला कि खेत की मिट्टी में कौन-कौन से तत्व अधिक हैं। कौन-कौन से तत्वों की कमी है। जांचने के बाद उन्होंने खेतों में आवश्यकता अनुसार खाद का इस्तेमाल किया। इससे पैदावार बढ़ गई। साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति जो धीरे-धीरे घटती जा रही थी, उसमें भी काफी सुधार हुआ। खेतों में जरूरत के अनुसार खाद देने से इसपर होने वाला खर्च भी घट गया।

वैज्ञानिक विधि से खेती करने से बढ़ा उत्‍पादन 

बिष्टू मुमरू बताते हैं कि उन्हें जानकारी मिली थी कि प्रखंड कार्यालय स्थित एपिक सेंटर में मिट्टी की जांच कर हेल्थ कार्ड बनाया जा रहा है। एपिक सेंटर में प्रखंड तकनीकी प्रबंधक द्वारा मिट्टी की जांच करने के साथ प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। उन्हें प्रखंड तकनीकी प्रबंधक सुशील कुमार महतो ने मिट्टी जांचने का हुनर बता दिया। इसके बाद वैज्ञानिक पद्धति से उन्होंने कृषि कार्य शुरू किया।

इससे पैदावार बढऩे के साथ लागत में कमी आई। कहते हैं कि तकनीक के आधार पर खेती करने पर मिट्टी की गुणवत्ता भी बरकरार रहेगी। बिष्टु मुमरू ने बताया कि अब वे भी प्रखंड मुख्यालय स्थित एपिक सेंटर में दूसरे किसानों को मिट्टी जांचने का प्रशिक्षण देते हैं। किसानों को खेतों की मिट्टी जांचने के बाद खेती करने से कई फायदे मिल रहे हैं। पूर्वी सिंहभूम जिले में भी किसान मिट्टी की जांच और उपचार कर खेतों की सेहत सुधार रहे हैं। इससे उनकी उपज और आमदनी भी बढ़ी है। 

किसान खुद बने मिट़टी के डॉक्‍टर 

बड़ी संख्या में किसान खुद ही मिट्टी के डॉक्टर बन गए हैं। वह अपने खेतों की माटी भी जांच रहे हैं और इसके लिए दूसरों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। इनके अभियान से मिट्टी की उर्वरा शक्ति अब धीरे-धीरे वापस लौट रही है। जिले में कुल 1 लाख 5 हजार मिट्टी हेल्थ कार्ड बनाए जा चुके हैं। मिट्टी जांचने के लिए किसानों को भी प्रशिक्षित किया गया है, जों अन्य किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं।

घट गई खेती की लागत 

पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका के किसान संदीप पटबांध की खेती की लागत घट गई है। वजह, अब खेत में अंदाज से खाद का इस्तेमाल नहीं करते हैं। समय-समय पर मिट्टी की जांच खुद करते हैं। फसल और मिट्टी की जरूरत के हिसाब से ही खाद डालते हैं। अच्छी बता यह भी है कि संदीप से दूसरे किसान प्रेरित होकर ऐसा करने लगे हैं। संदीप अन्य किसानों को भी मिट्टी जांच का तरीका बताते हैं। वे कहते हैं कि मिट्टी जांच कर हेल्थ कार्ड बनाना किसानों के लिए अब वरदान साबित हो रहा है।

जानकारी के अभाव में किसान पहले अपने खेतों में अंदाज से ही खाद व अन्य चीजें डाल दिया करते थे। कई बार यह खेतों के विनाश का कारण बनता था। अब किसानों को हेल्थ कार्ड के माध्यम से खेत की मिट्टी की गुणवत्ता की जानकारी मिल जा रही है। यह पता चल जा रहा कि उनके खेतों में नाईट्रोजन, पोटाश, सल्फर, आयरन, फास्फोरस और कॉपर आदि की मात्र कितनी है। किस फसल की खेती के लिए उनके खेत को किस चीज की जरूरत है। उन्हें कितना खाद अपने खेत में डालना है कि फसल का उत्पादन अधिक हो। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता भी बरकरार रहे। वह बताते हैं कि मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड मिलने के बाद उनके खेतों में पैदावार पर असर पड़ा है। 

धान के साथ-साथ उगा रहे सब्जियां 

पोटका के किसान संदीप पटबांध खेत में धान के अलावा सब्जी की भी खेती करते हैं। पहले की तुलना में अब मुनाफा बढ़ गया है। खेत में बेवजह खाद नहीं डालते हैं। यही नहीं धीरे-धीरे जैविक खाद की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, क्योंकि यह बेहद सस्ता भी है और मिट्टी के लिए वरदान भी।

संदीप ने बताया कि वह मिट्टी जांचने का प्रशिक्षण लेने के बाद अब अन्य किसानों को भी प्रशिक्षण देने का काम कर रहे हैं। एक दर्जन से ज्यादा किसानों को जांच का तरीका बता चुके हैं। मिट्टी की हकीकत जान लेनेवाले किसान रसायनिक खाद से तौबा करने की मूड में हैं।


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