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एक गांव ऐसा जहां पानी के लिए होता है तालाब व कुएं का बंटवारा

ग्रामीण आज भी चुएं का पानी पेयजल में इस्तेताल करते हैं। समस्या तब होती है जब ये जलाशय सूख जाते हैं और बचे जलाशयों का बंटवारा करते हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 05 Dec 2018 11:07 AM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2018 03:40 PM (IST)
एक गांव ऐसा जहां पानी के लिए होता है तालाब व कुएं का बंटवारा
एक गांव ऐसा जहां पानी के लिए होता है तालाब व कुएं का बंटवारा

पोटका(पूर्वी सिंहभूम), विद्या शर्मा। प्यूरीफायर और मिनरल वाटर वाले युग में चुआं यानी गड्ढे का पानी पीने की बात कही जाए तो विश्वास नहीं हो, लेकिन यह सही है। पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी प्रखंड के माटीगोड़ा पंचायत का गांव है जोबला। डेढ़ सौ आबादी वाले इस गांव के ग्रामीण आज भी चुएं का पानी पेयजल में इस्तेताल करते हैं। समस्या तब होती है जब ये जलाशय सूख जाते हैं और बचे जलाशयों का बंटवारा करते हैं।

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यहीं नहीं, अंत्योदय कार्ड, उज्ज्वला योजना समेत अन्य सभी लाभकारी योजनाओं से ये वंचित हैं। चूल्हे जलाने के लिए ग्रामीण जंगल से लकड़ियां काटते हैं। जादूगोड़ा के टिलाईटाड़ से तीन किलोमीटर दूर पहाड़ों से घिरे आदिवासी बहुल इस गांव की पथरीली सड़कें भी अपने कायापलट होने के इंतेजार में हैं।

पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू के वायदे से जगी उम्मीद 

दो वर्ष पूर्व घाटशिला विधायक लक्ष्मण टुडू इस गांव में आये थे। ग्रामीणों ने अपनी सपनों को पूरा होने उम्मीद में उनका भव्य स्वागत किया था। ग्रामीणों से स्वागत से खुश पूर्व विधायक ने भी ग्रामीण सड़क को बनवाने, पेयजल की व्यवस्था करने समेत दर्जनों वायदे किये। लेकिन समय बीतने के साथ नेताजी के साथ ग्रामीण भी भूलकर अपनी पुरानी जिंदगी में व्यस्त हो गये।

सेविका अपने घर में चलाती हैं आंगनबाड़ी केंद्र 

जोबला गांव के बच्चों को बेहतर पोषण के साथ शिक्षा मिले इसके लिए यहां आंगनबाड़ी केंद्र भी खुला था। लेकिन सेविका जीरामुणी टुडू गांव से दूर सुसनगुड़िया में अपने घर में आंगनबाड़ी केंद्र चलाती हैं। ग्रामीणों की माने तो जोबला में बना केंद्र पिछले दस वर्षों से बंद है।

जलमीनार से निकलता है गंदा पानी

गर्मी में इस इलाके के अधिकतर तालाब और कुआं सुख जाते हैं। ऐसे में ग्रामीण में इन तालाब और कुएं का बंटवारा कर अपनी प्यास बुझाते हैं। गांव में एक जलमीनार है, लेकिन गंदा और प्रदूषित पानी निकलने से ग्रामीण इसका उपयोग पीने में नहीं करते हैं। गांव में लगाये गये चापाकल वर्षो से खराब हैं। विभागीय अधिकारियों को कई बार शिकायत के बाद भी ग्रामीणों की नहीं सूनी गयी।

गांव में मोबाइल हो जाता है खिलौना

जोबला के ग्रामीणों के लिए मोबाइल महज खिलौना ही है। मोबाइल का नेटवर्क नहीं मिलने से ग्रामीण बाहरी दुनिया से कटे रहते हैं। यहां नहीं गांव के उत्क्रमित मध्य विद्यालय के शिक्षकों को बायोमिटिक हाजारी बनाने में भी काफी परेशानी होती है। वे नेटवर्क के लिए हाथ में मोबाइल लेकर घंटों घूमते रहते हैं।

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