Weekly News Roundup Jamshedpur : बेसरा की फायरिंग से डर जाता हर नेता, पढ़िए सियासी जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. जमशेदपुर से संसदीय चुनाव लड़ चुके बेसरा अब गुरुजी के गढ़ दुमका में अपनी छाप छोड़ने जा रहे हैं। दलबदल करने वाले नेताओं को चरित्रहीन बताने वाले बेसरा भी एक बार भाजपा से 2009 में घाटशिला का चुनाव लड़े थे।
जमशेदपुर,वीरेंद्र ओझा। कभी झारखंड के फायरब्रांड नेता रहे सूर्य सिंह बेसरा के नाम से अच्छे-अच्छों की पैंट गीली हो जाती थी, अब उनके ज्ञान के जखीरे से हर नेता डर जाता है। उनसे सटने की कोशिश नए-पुराने कई दिग्गज नेताओं ने की, लेकिन पास बैठते ही जब ये कंठस्थ संविधान सुनाने लगते हैं तो उनका माथा चकराने लगता था। नतीजा बेसरा ने भी एकला चोलो रे...की नीति अपना ली।
उन्हें यह ज्ञान भी शांतिनिकेतन जाने पर मिला। बहरहाल, जमशेदपुर से संसदीय चुनाव लड़ चुके बेसरा अब गुरुजी के गढ़ दुमका में अपनी छाप छोड़ने जा रहे हैं। दलबदल करने वाले नेताओं को चरित्रहीन बताने वाले बेसरा भी एक बार भाजपा से 2009 में घाटशिला का चुनाव लड़े थे, लेकिन इन्हें इनके बगलगीर ने ही हरवा दिया। लेकिन अब बेसरा ने भी ठान लिया है कि वह अब विधायक बनकर रहेंगे, चाहे इसके लिए झारखंड की हर सीट से क्यों ना लड़ना पड़े।
खूंटी जाकर पराए हो गए मुंडा
अपने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा जब से खूंटी के सांसद बने हैं, यहां के भाजपाई उन्हें पराया समझने लगे हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो पिछले दिनों जो हुआ, नहीं होता। चार अक्टूबर को मुंडा जमशेदपुर आए थे। इसकी सूचना जिला सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने एक दिन पहले ही जारी कर दी। उस दिन भी फोन कर-करके बताया गया। मुंडा ने कृषि बिल, आदिवासी मामले, वन अधिकार कानून से लेकर बिहार चुनाव तक पर जी भरकर बोले, लेकिन अफसोस कि इन सब बातों को सुनने के लिए भाजपा का कोई स्थानीय नेता नहीं था। वह तो काफी देर बाद जब जिलाध्यक्ष गुंजन यादव को पता चला तो आनन-फानन गुलदस्ता खरीदा और भागे-भागे हांफते हुए केंद्रीय मंत्री को सौंपते हुए फोटो खिंचाने में सफल हो गए। इनके अलावा प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी, सांसद विद्युत वरण महतो, पूर्व विधायक मेनका सरदार, नंदजी प्रसाद, देवेंद्र सिंह समेत कोई नहीं गया।
डाक्टर के आते ही कोमा से निकले फिरोज
मानगो के नेता हाजी फिरोज खान झाविमो से कांग्रेस में आने के बाद काफी उत्साहित थे। लेकिन जैसे ही डाक्टर अजय कुमार कांग्रेस छोड़कर आप में चले गए, इनकी सांस अटकी रही। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, कहां जाएं। अकेलेपन से बचने के लिए इन्होंने खुद का फैंस क्लब बना लिया और खुद ही उस क्लब के संरक्षक भी बन गए। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि फैंस क्लब भी कोई नेता खुद ही चलाए, लेकिन मरता क्या न करता। लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी इसी तरह पार हो गया। इसलिए कहीं आने-जाने या प्लेटफार्म बदलने से भी साढ़े चार साल तक कुछ होना नहीं था। बेचारे उदास बैठे थे कि बिल्ली के भाग से छींका टूटा और डाक्टर अजय कुमार भी एक साल का एकांतवास बिताकर आप से कांग्रेस में आ गए। डाक्टर के आते ही फिरोज भी कोमा से निकल गए।
जमीन व राशन के बाद शराब पर अटैक
शहर में पिछले दिनों सरकारी जमीन और सरकारी पैसे से बने मकान-भवन पर अटैक हो रहा था। इससे थोड़ी राहत मिली ही थी कि झामुमो वालों ने राशन कारोबारियों पर हमला बोल दिया। प्रशासन भी कमरकस कर चावल-गेहूं के दाने-दाने का हिसाब चुकता करने में जुट गया। ऐसा लगा कि अब कोई नहीं बचेगा, फांसी मिलना तो तय है। हालांकि यह गरमागरम मामला अब ठंडे बस्ते में कराहता हुआ दिख रहा है। अब ताजा-ताजा मामला शराब दुकान का सामने आया है, जिसके पीछे विधायक सरयू राय डंडा लेकर निकल पड़े हैं। देखने वाली बात होगी कि इस मामले में क्या होता है, लेकिन बताया जाता है कि इन सभी के अधिकतर कारोबारी भाजपा से रिश्ता रखते हैं, इसलिए इनकी शामत आई हुई है। राजनीतिक साजिश की बात सामने आ रही है। झामुमो वाले भी अब चावल-गेहूं का हिसाब भूल गए हैं। उन्होंने फर्ज निभा दिया।