जमशेदपुर, वीरेंंद्र ओझा। Weekly News Roundup Jamshedpur पार्टी अकेले नहीं चलती, यह सभी जानते हैं। पार्टी का कार्यालय भी होना चाहिए, यह भी सबको मालूम है। कार्यालय कहां हो, यह अहम है। नई-नई बनी भारतीय जन मोर्चा को भी साकची में एक कार्यालय की दरकार थी। क्वार्टर (कार्यालय) के मालिक जोगी नए किरायेदार के इंतजार में थे। संयोग से नया किरायेदार मिल भी गया।
दोनों में करार हुआ। पार्टी ने कहा, मकान मालिक को पार्टी की सदस्यता लेनी होगी। कहते हैं कि मकान मालिक ने भी शर्त रखी कि तब मेरा कद पार्टी के मालिक के बराबर दिखना चाहिए। दोनों में करार हो गया। कार्यालय के बाहर बोर्ड लगा, जिसमें दिख रहा है कि मकान मालिक और पार्टी के मालिक का कद बराबर ही है। मकान मालिक के दल या पार्टी में पद की बात मत पूछिए। उन्हें पार्टी-पालिटिक्स से ज्यादा मतलब नहीं रहता। उन्हें ट्रेड यूनियन में भी रहना है। कंपनी की नौकरी भी करनी है।
मान न मान, मैं तेरा मेहमान
विधानसभा चुनाव में एक छोटी सी चिनगारी लगी थी, जिसने जमशेदपुर भाजपा में तूफान ला दिया। इनमें से कई लोग खुलेआम सरयू राय के साथ खड़े हो गए, जबकि कई पर्दे के पीछे से उनके साये बने रहे। इनमें से करीब एक दर्जन लोगों को भाजपा से निकाल दिया गया, जबकि कई को पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया। मजे की बात है कि इनमें से कुछ लोग भाजपा से निकाले जाने के बाद भी खुद को भाजपाई मान रहे हैं। अपने कार्यों से दिखा भी रहे हैं। इनमें से एक सज्जन तो दूसरों को भाजपा की सदस्यता लेने के लिए खुलेआम आमंत्रित भी कर रहे हैं, जबकि वे खुद निष्कासित हो चुके हैं। एक जनाब दिखते तो हैं भाजमो में, लेकिन अपनी कार में अब भी भाजपा का झंडा लगाए हुए घूमते हैं। इन्हें इस बात की जरा भी परवाह नहीं है कि भाजपा इनके बारे में क्या सोचती है।
मगर से बैर नहीं चल सकता
जल में रहकर मगर से बैर नहीं किया जा सकता। यह बात राजनीति में भी लागू होती है। हालांकि यह काम सरयू राय कर चुके हैं, लेकिन अभय सिंह नहीं कर सकते। इसलिए वनवास खत्म करने के बाद अभय बिना किसी संकोच के रघुवर से मिलने चले गए। इतनी पुरानी अदावत मिटाने के लिए मंदिर से पवित्र और सुरक्षित स्थान दूसरा हो नहीं सकता। यहां रघुवर व अभय की नजरें मिलीं तो कड़वी राजनीति की बातें मन के अंदर ही रह गईं। सिर्फ धर्म-अध्यात्म की बातों में ही आधे घंटे कैसे गुजर गए, किसी को पता ही नहीं चला। इस ऐतिहासिक क्षण को अपनी आंखों में कैद करने वाले भी लिप-मूवमेंट से अंदाजा नहीं लगा सके कि उनके बीच राम-नाम के सिवा कोई बात हुई होगी। अभय सिंह का भाजपा के जिला कार्यालय में भी भव्य स्वागत हुआ था। लगा ही नहीं कि भाजपा में कोई नया व्यक्ति आया है।
अब बन्ना नहीं करते फोन रिसीव
बन्ना गुप्ता पिछले पांच साल तक गाहे-बगाहे फोन रिसीव कर लेते थे, लेकिन अब नहीं करते हैं। उनके लोग तर्क देते हैं मंत्री जी बहुत व्यस्त रहते हैं, इसलिए सबका फोन रिसीव नहीं कर पाते हैं। रामचंद्र सहिस तो जब मंत्री बने, उनका फोन ज्यादातर स्विच ऑफ ही रहता था। वे किसी को शिकायत का मौका ही नहीं देते थे कि फोन रिसीव नहीं किया। उनकी जगह पर विधायक बने मंगल कालिंदी ने भी फोन रिसीव करना छोड़ दिया है। अब उनका फोन किसी और के पास रहता है। कई बार कॉल करने वाले को रांग नंबर भी कह दिया जा रहा है। वैसे मंत्री तो सरयू राय भी थे, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। किसी से बात नहीं हो सकी, तो वे कॉल बैक करते थे। वैसे अब रघुवर भी कॉल बैक कर रहे हैं। एक बार सहिस का फोन ट्राई कर लें।