Weekly News Roundup Jamshedpur : बिना आदेश खंगाल रहे फाइल, पढ़िए चिकित्सा जगत की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur.पैसा की परवाह नहीं। एक ही जगह पर बार-बार गड्ढा खोदते हैं इंजीनियर। कभी पानी के लिए तो कभी बिजली व नाली के लिए।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। Weekly News Roundup Jamshedpur स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की सूरत बदलने के लिए ठानी है। इसकी निगरानी के लिए एक प्रतिनिधि राजेश बहादुर को रखा है। जिससे अस्पताल का विकास कार्य तेज गति से हो सके। लेकिन, अब राजेश बहादुर की मंशा पर सवाल खड़ा होने लगा है।
उनके द्वारा अस्पताल को संचालित करने संबंधित पुरानी फाइलें क्यों मांगी जा रही है? इस संदर्भ में न तो स्वास्थ्य मंत्री का आदेश आया है और न ही विभाग के प्रधान सचिव डॉ. नीतिन मदन कुलकर्णी का। एक चिकित्सक कहा, उनको अस्पताल का काम-काज देखने के लिए रखा गया है या फिर पुरानी फाइलें खंगालने के लिए। यह स्पष्ट होना चाहिए। क्योंकि कई ऐसी जानकारियां हैं जो किसी निजी व्यक्ति को न देकर सिर्फ विभाग को ही दिया जा सकती हैं। पदाधिकारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या? पदाधिकारी खौफ में हैं।
खाना खाने से बढ़ गई उम्मीदें
मंहगाई लगातार बढ़ रही है लेकिन मरीजों की भोजन की राशि बीते सात साल से नहीं बढ़ी है। वर्ष 2013 में जब एक सिलेंडर की कीमत 250 रुपये थी, तभी प्रति मरीज 50 रुपये खाना के लिए तय किया जो अबतक चल रहा है। अब एक सिलेंडर की कीमत करीब 950 है। ऐसे में मरीजों को पौष्टिक भोजन भला कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है? रांची के रिम्स में प्रति मरीज भोजन के लिए 130 रुपया मिलता है। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता हाल ही में एमजीएम अस्पताल के आहार विभाग का निरीक्षण किया और वहां की खामियों से अवगत हुए व खुद भोजन भी चखा था। इससे अस्पताल के वरीय चिकित्सकों की उम्मीदें बढ़ गई है कि शायद अब राशि बढ़ जाए। प्रबंधन राशि बढ़ाने का प्रस्ताव विभाग को पूर्व में ही भेज चुका है। लेकिन, उसपर अबतक पहल नहीं हो सकी है। मरीजों के लिए पौष्टिक भोजन अनिवार्य है।
इंजीनियर बार-बार खोद देते गड्ढा
पैसा की परवाह नहीं। एक ही जगह पर बार-बार गड्ढा खोदते हैं इंजीनियर। कभी पानी के लिए तो कभी बिजली व नाली के लिए। परिणाम यह होता है कि सड़क बनती है और तोड़ी जाती है। नुकसान सरकार का होता है। इसकी चिंता करने वाला कोई नहीं है। अगर, चिंता होती तो यह नौबत नहीं आती। एमजीएम अस्पताल में हाल ही में पक्की सड़क का निर्माण हुआ था लेकिन उसे तोड़ दिया गया। कारण कि ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण हो रहा है। अब फिर से सड़क कच्ची हो गई है। वहां से न तो स्ट्रेचर न ही व्हील चेयर ही जा पाती है। इससे पूर्व भी एक बार सड़क का निर्माण हुआ था, तब बिजली के तार बिछाने के लिए तोड़ दी गई। इससे साफ जाहिर होता है कि हमारे इंजीनियरों के पास न तो कोई प्लानिंग है और न ही विजन। इसे लेकर एक को फटकार भी लगी थी।
नहीं लिख रहे जेनरिक दवा
सस्ता इलाज की आस खत्म होने लगी है। शहर में मरीजों को सस्ती दर पर दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए दो जन-औषधि केंद्र खोले गए थे। एक मानगो पुरुलिया रोड व दूसरा सोनारी में। अब दोनों बंद हो चुके हैं। कारण बना डॉक्टरों द्वारा दवाइयां नहीं लिखा जाना। वहीं सदर अस्पताल में जन औषधि केंद्र बंद होने के कगार पर है। सरकार व मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने जेनेरिक दवाइयां लिखने का निर्देश हमेशा चिकित्सकों को देते हैं लेकिन वे लिखने को तैयार नहीं। बहाना, जेनरिक दवाइयों की गुणवत्ता ब्रांडेड दवाइयों की तरह नहीं होती। इसके कारण वे ब्रांडेड दवाइयों को ही प्राथमिकता देते हैं। इधर, दवा दुकानदारों का कहना है कि ब्रांडेड कंपनियां अपनी मार्केटिंग बेहतर ढंग से करती हैं। दवा लिखने के बदले में चिकित्सकों को घूस में कार से लेकर फ्रीज तक गिफ्ट देते हैं। इसपर सरकार को गहन मंथन करना चाहिए, तभी मरीजों को लाभ मिलेगा।