Weekly News Roundup Jamshedpur : दिन गिन रहे, मक्खी मार रहे, पढ़िए नौकरशाही की दुनिया की अंदरूनी खबर
Weekly News Roundup Jamshedpur. अधिकारी हों या कर्मचारी जिसके चेहरे की ओर देखिए मायूसी और उदासी। न काम है और नहीं दाम।
जमशेदपुर, विश्वजीत भट्ट। Weekly News Roundup Jamshedpur बड़ा जीवंत विभाग है ट्रेजरी। पूरे साल भर चहल-पहल और जगमग रहने वाला विभाग। तमाम विभागों के क्लर्क, बड़ा बाबू, छोटे-बड़े ठेकेदारों से गुलजार रहने वाला। फाइल-बिल से ठसाठस।
बिल-वाउचर की तेज रफ्तार टेबल दर टेबल भागमभाग की गवाही देने वाला। अभी सूबे का खजाना खाली है। ऐसा हुक्मरान बोल रहे हैं। इसका असर तो थोड़ा कम, थोड़ा ज्यादा सभी विभागों पर दिख रहा है। लेकिन, सबसे अधिक इसी विभाग पर असर नमूदार है। न लोग आ रहे हैं और न फाइल, बिल-वाउचर की भागमभाग है। कार्यालय के अधिकारी हों या कर्मचारी, जिसके चेहरे की ओर देखिए, मायूसी और उदासी। न काम है और नहीं दाम। लोगों का वर्ष भर लगा रहने वाला जमघट भी नदारद है। पूछने पर साहब के मुंह से अनायास ही दर्द छलका। किसी मद में पैसा है नहीं। सो चुपचाप बैठने के अलावा कोई चारा नहीं। दिन गिन रहे हैं और मक्खी मार रहे हैं।
ऑनलाइन राहत से ज्यादा आफत
जिला परिवहन पदाधिकारी कार्यालय और लर्निग व स्थाई ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने वालों के लिए ऑनलाइन व्यवस्था राहत नहीं आफत बन गई है। दरअसल, लर्निग हो या स्थाई लाइसेंस, एक दिन में 250 लोगों के लिए स्लॉट खुलता है। सुबह आठ बजे स्लॉट खुला और 8.30 बजे तक फुल। इसके बाद लोग आवेदन कर ही नहीं पाते। अब इन आवेदनकर्ताओं की ऑनलाइन परीक्षा की तारीख भी एक ही पड़ जाती है। पहले से ही कर्मचारियों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे कार्यालय के हाथ पांव एक ही दिन में 250 लोगों की परीक्षा लेने में फूल जाते हैं। यही हाल स्थाई लाइसेंस बनवाने की प्रक्रिया का भी है। इस स्लॉट व्यवस्था के कारण आवेदनकर्ता और विभाग दोनों परेशान हैं। ये पूरे राज्य की समस्या है। होना तो ये चाहिए कि ऑनलाइन आवेदन हर समय खुला रहे और लोग कभी भी आवेदन कर पाएं, आवेदनकर्ता और विभाग दोनों को राहत होगी।
अभी तो कोई रिजिड ही नहीं
सरकारी अमला वो भी आराम से। लेकिन, ये सच है। फिलहाल तो उपायुक्त कार्यालय में थोड़े राहत का आलम दिख रहा है। घूमते-घामते, खबर सूंघते-खोजते पहुंच गया उपायुक्त कार्यालय के सबसे बड़े वाले साहब से थोड़े छोटे साहब के पास। स्वाभावत: पूछ लिया, और क्या चल रहा है? राहत के इस वक्ती दौर में उनके स्वभाव के अनुरूप उम्मीद ये थी कि कहीं ये कह दें कि अभी सिर्फ फॉग ही चल रहा है। लेकिन, उत्तर आशा के विपरीत मिला। बोले- अभी कोई रिजिड ही नहीं है। बहुत हुड़कुच भी नहीं है। नया निजाम अभी पूरी तरह से दन-दनादन वाले अंदाज में नहीं आया है। सो हम लोग भी तेल देख रहे हैं और तेल की धार। लेकिन, निजाम है तो आदेश-निर्देश तो आएगा ही। सो, हम लोग भी तैयार हैं। लेकिन, बहुत हद तक भरोसा है कि पिछले निजाम जितना रिजिडनेस इस निजाम में शायद ही देखने को मिले।
उप निर्वाचन पदाधिकारी का दर्द
जिला उप निर्वाचन पदाधिकारी चुनाव के दौरान खूब व्यस्त थे। बात करने की फुर्सत न खाने-सोने की। चुनाव खत्म होने के बाद लगता है थोड़ी फुर्सत में हैं। दो दिन पहले ऐसे ही मिल गए। हाल-चाल होने लगी तो तपाक से बोले- मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं। अरे, क्या हुआ? बोले- चुनाव के दौरान चलने के लिए अच्छी गाड़ी थी। ड्राइवर था। अब चुनाव खत्म हो गया तो दोनों ही गायब हैं। अब आलम ये है कि पैदल चल रहा हूं। लगता है सरकार के लिए मैं चुनाव के दौरान ही काम का था। अब चुनाव बीत गया तो काम खत्म पैसा हजम। बाइक से तो कभी ऑटो से आना-जाना कर रहा हूं। देखिएगा, जब चुनाव आएगा तो एक बार फिर से मेरी पूछ बहुत बढ़ जाएगी। फिर से चकाचक गाड़ी मिलेगी, वह भी ड्राइवर के साथ। अभी तो बस किसी तरह से आना जाना हो जा रहा है।