हार को बनाया संबल और छू लिया आसमान, कही जाती ट्रैक की रानी
vidhi rawal. ट्रैक की रानी विधि रावल ने असफलता को सोपान बनाकर सफलता की जो नई कहानी गढ़ी है, वह काबिले तारीफ है। राष्ट्रीय रैंकिंग में वह जूनियर वर्ग में भारत में सातवें स्थान पर है।
जमशेदपुर [जितेंद्र सिंह]। हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। ट्रैक की रानी विधि रावल ने असफलता को सोपान बनाकर सफलता की जो नई कहानी गढ़ी है, वह काबिले तारीफ है। राष्ट्रीय रैंकिंग की बात करें तो वह जूनियर वर्ग में भारत में सातवें स्थान पर है।
17 साल की विधि बताती है कि पहली बार जब उन्होंने 2015 में संबलपुर में आयोजित सीबीएसई क्लस्टर एथलेटिक्स मीट में भाग लिया तो पांचवें स्थान पर रही। इस हार के बाद उसने खुद से जिद की। जिद जीत की। खुद से ही वादा किया, अगली बार इसी चैंपियनशिप में स्वर्ण लेकर दिखाऊंगी। इसके लिए मेहनत करना शुरू किया। आते ही जोगा अंतर स्कूल एथलेटिक्स मीट की 100 मीटर व लंबी कूद में स्वर्ण अपने नाम कर लिया।
बागीचा सिंह का मिला सानिध्य
इसी बीच अर्जुन पुरस्कार प्राप्त बागीचा सिंह का सानिध्य प्राप्त हुआ और 2016 में गोमिया में आयोजित राज्य चैंपियनशिप की 100 मीटर स्पद्र्धा का स्वर्ण जीत अपनी काबिलियत साबित की। 2016 में एक बार फिर सीबीएसई क्लस्टर एथलेटिक्स मीट में लौटी और उस बार 100 मीटर में स्वर्ण व लंबीकूद में रजत के साथ-साथ सर्वश्रेष्ठ एथलीट का खिताब अपने नाम किया। विधि बताती है, उनके इस कामयाबी में टीएसपीडीएल में कार्यरत पिता संजय रावल, मां अर्चना रावल व छोटा भाई विधान रावल के अलावा स्कूल के कोच सौमित्रो, सुलग्ना, एथलेटिक्स कोच चेतन माझी का बड़ा योगदान है।
कोलकाता में कांस्य किया अपने नाम
2017 में एक बार फिर विधि ट्रैक पर धमाल मचाने पहुंची और इस बार 200 व 400 मीटर दौड़ में हाथ आजमाया और स्वर्ण लेकर ही वापस लौटी। इसी साल कोलकाता में आयोजित पूर्वी क्षेत्र एथलेटिक्स मीट में कांस्य अपने नाम किया। गौरतलब है कि विश्व एथलेटिक्स चैंपियन असम की हिमा दास इसी स्पद्र्धा में स्वर्ण जीती थी। 2018 में रामगढ़ में आयोजित पूर्वी क्षेत्र एथलेटिक्स मीट की 200 व 400 मीटर स्पद्र्धा में रजत जीतने वाली विधि एक बार फिर वहीं लौटी, जहां पहली बार असफलता हाथ लगी थी। कनार्टक में आयोजित सीबीएसई क्लस्टर एथलेटिक्स मीट की 100 मीटर व 200 मीटर में स्वर्ण झटक विधि ने खुद से किए वादे को पूरा किया।
रिंग की क्वीन बनी मुक्केबाज ईशा
माता-पिता और कोच के साथ ईशा कुमारी
राज्य मुक्केबाजी के फलक पर छोटे से कॅरियर में ईशा ने जो मुकाम हासिल किया, वह बहुत कम लोगों को नसीब होता है। वह झारखंड की पहली महिला मुक्केबाज है, जिसका चयन खेलो इंडिया खेलो के लिए हुआ है। इसके तहत प्रशिक्षण का जिम्मा भारत सरकार उठाती है। जमशेदपुर के मानगो की कालिकानगर की रहने वाली दसवीं की छात्रा ईशा कुमारी की मां पूनम देवी के जज्बे को सलाम करना होगा, जिन्होंने अपनी बेटी को बेटे से कम नहीं समझा और मुक्केबाजी की रिंग में उतार दिया।
नोवामुंडी में स्वर्ण पंच
मानगो की कालिकानगर की रहने वाली ईशा कुमारी को कोच सउद रब्बानी का साथ मिला और बन गई रिंग की क्वीन। हाल ही में नोवामुंडी में आयोजित राज्य मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली ईशा ने चंडीगढ़ में आयोजित चैंपियनशिप में फाइनल तक का सफर तय किया था। ईशा के पिता सुरेंद्र दास टाटा जू में कीपर हैं, जबकि भाई महेश कुमार दास व सुरेश कुमार दास क्रिकेटर हैं।