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देवलोक के मुख्य अभियंता भगवान विश्वकर्मा की पूजा कल

देवलोक के मुख्य अभियंता व इस ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्मा ही हैं। जिस पर इनकी

By Edited By: Published: Fri, 16 Sep 2016 02:46 AM (IST)Updated: Fri, 16 Sep 2016 02:46 AM (IST)
देवलोक के मुख्य अभियंता भगवान विश्वकर्मा की पूजा कल

देवलोक के मुख्य अभियंता व इस ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्मा ही हैं। जिस पर इनकी कृपा दृष्टि हो जाती है, उसके लिए विद्या, बुद्धि से तकनीक एवं अभियंत्रण के क्षेत्र में कुछ भी अप्राप्य व दुर्लभ नहीं है। इनकी कृपा से भक्तों को संबंधित क्षेत्र में उन्नति, लाभ एवं ख्याति का योग प्राप्त होता है। गोचरीय गति के अनुसार सूर्य देव के कन्या राशि में प्रवेश के साथ वर्षा ऋतु का अंत व शरद ऋतु का प्रारम्भ होता है। प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को सूर्य देव का प्रवेश कन्या राशि में प्राय: होता है। सूर्य के इस संक्रांति दिवस को शिल्पकला ज्ञान के प्रदाता भगवान विश्वकर्मा का ध्यान व पूजन भक्तों के द्वारा विधिवतं किया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से तकनीक या अभियंत्रण क्षेत्र से जुडे़ लोगों के द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठानों या औद्योगिक ईकाइयों में धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। परंतु वर्तमान के इस आधुनिक मशीनी युग में सबके पास सुख, संचार एवं मनोरंजन के आधुनिक साधन बढ़ते जा रहे हैं। इस प्रकार इस मशीनी युग में भगवान विश्वकर्मा की कृपा की आवश्यकता प्राय: सभी को है। इस बार भी सूर्य देव शनिवार 17 सितंबर को दिन में 9:30 बजे कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं। अत: श्रीविश्वकर्मा जी का पूजन भक्ति श्रद्घा के साथ 17 सितंबर शनिवार को ही किया जाएगा। इस बार 17 सितंबर शनिवार से ही पितरों के प्रति श्रद्घा अर्पण करने का पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष जिसे पितृपक्ष भी कहा जाता है, प्रारंभ हो रहा है। नवमी तिथि की हानि से यह पक्ष इस बार 14 दिनों का ही है। पंचमी तथा षष्ठी दोनों तिथियों का तर्पण व श्राद्ध 21 सितंबर बुधवार को करना उचित रहेगा।

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श्री विश्वकर्मा जी के पूजन के क्रम में स्नान के उपरांत थाल में पूजन सामग्री रखकर जल के द्वारा शुद्धि एवं आचमनी करके धूप-दीप जलाकर श्रीगणेश, माता गौरी का ध्यान करें। ध्यान के उपरांत हाथ में अक्षत पुष्प द्रव्य व जल लेकर पूजन का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के बाद सर्वप्रथम श्रीगणेश एवं माता गौरी का आवाहन व पूजन तदुपरांत कलश में वरुण देव का ध्यान आवाहन व पूजन करना चाहिए। इसके बाद नवग्रहों की कृपा हेतु सूर्यादि नवग्रहों का ध्यान आवाहन व पूजन करके अंत में प्रधान देवता श्री विश्वकर्मा का ध्यान आवाहन एवं पूजन करना चाहिए। पूजन के उपरांत हवन, आरती पुष्पांजलि एवं क्षमा प्रार्थना करना श्रेयस्कर रहेगा। भगवान विश्वकर्मा की कृपा सभी पर बनी रहे।

।। शुभमस्तु।।

पं. रमा शंकर तिवारी


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