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Jharkhand Tradition: अनूठी परंपरा, संपन्नता के बावजूद ग्रामीण वर्षों से निभा रहे अपना फर्ज

Jharkhand Tradition हो जाति के आदिवासियों में है यह परंपरा। जोबा के परिवार की भांति सेरेंगदा के तीन शहीद परिवारों को भी आसपास के सभी गांवों के लोगों की मदद शहादत दिवस के दिन की जाती है। जोबा माझी को यह मदद 27 साल से ग्रामीण कर रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 09:38 AM (IST)
Jharkhand Tradition: अनूठी परंपरा, संपन्नता के बावजूद ग्रामीण वर्षों से निभा रहे अपना फर्ज
झारखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री जोबा मांझी। फाइल फोटो

दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर। झारखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं जोबा मांझी। वे 1995 में पहली बार विधायक बनने के बाद 98-99 में पहली बार एकीकृत बिहार की राबड़ी सरकार में मंत्री बनीं। इसके बाद से ही वे लगातार झारखंड सरकार में एक बार को छोड़ हर बार मंत्री रहीं। राजनीतिक रसूख की बात दरकिनार कर दें, तो भी वे एक ऐसे सम्पन्न संथाल परिवार से हैं, जिसके पास खासी खेती योग्य जमीन है। इसके बावजूद 14 अक्टूबर 1994 में उनके पति देवेन्द्र माझी की हत्या के बाद से हर साल श्रद्धांजलि सभा के दिन ग्रामीण जोबा माझी व उनके परिवार के भरण पोषण के लिए यथाशक्ति मदद करते हैं।

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यह मदद चावल, धोती-साड़ी और नगद पैसे के माध्यम से आम तौर पर की जाती है। श्रद्धांजलि सभा के दौरान ही जोबा माझी की ओर से एक व्यक्ति बाकायादा मददगार का नाम, पता और सामग्री अथवा धनराशि की लिस्ट तैयार करता है। बताते चलें कि हो जाति के आदिवासियों में है यह परंपरा। जोबा के परिवार की भांति सेरेंगदा के तीन शहीद परिवारों को भी आसपास के सभी गांवों के लोगों की मदद शहादत दिवस के दिन की जाती है। जोबा माझी को यह मदद 27 साल से ग्रामीण कर रहे हैं। मंत्री बनने के बावजूद ग्रामीणों ने जोबा मांझी को मदद देने की नहीं छोड़ी है परंपरा।

जोबा बताती हैं एक वाकया

इस बाबत पूछे जाने पर मंत्री जोबा कहती हैं कि यह मामला लोगों की भावना से जुड़ा है। वे 12-15 साल पहले का एक वाकया बताते हुए कहती हैं श्रद्धांजलि सभा के दौरान एक युवा महिला अपनी गोद में बच्चा लिए उनके पास आती है। महिला को देखने भर से प्रतीत होता है कि वह धनाभाव से जूझ रही हैं और संभवत: वन क्षेत्र की निवासी है। उस युवा महिला ने उन्हें एक दोने में दो आलूचप लाकर दिए और उन्हें खाने का आग्रह किया। जोबा माझी ने यह आलूचप उसे गोद के बच्चे को खिलाने का प्रयास किया, तो महिला इस कदर नाराज हो उठी कि उसके आंसू छलक आए। युवा महिला ने कहा वह हर साल नकद पैसे दिया करती थी। इस बार उसके पास ज्यादा पैसे नहीं हैं। इसलिए वह चाहती है कि वे उनके सामने ही आलूचप खाएं।

खुद करती साडियों का उपयोग

जोबा माझी यह वाकया बताते हुए दैनिक जागरण प्रतिनिधि को कहती हैं कि वे पद पर रहे अथवा नहीं, सम्पन्न हो अथवा विपन्न, इस मामले को अलग हटकर देखने की जरूरत है। ग्रामीण प्रत्येक शहीद के परिवार के भरण पोषण की अपनी जिम्मेदारी काे सख्ती से निभाते हैं। उन्होंने बताया कि इस साल भी करीबन सात हजार रुपये नकद, कुछ चावल और कुछ साड़ियां उन्हे प्रदान की गइ हैं। वे प्रयास करती हैं कि ग्रामीणों के इस सम्मान को सर माथे पर रखते हुए इस्तेमाल में लाती हैं। कभी-कभी किसी जरूरतमंद को बची साड़ियां दे देती हैं। अन्यथा साड़ियां भी वे स्वयं प्रयोग में लाती हैं।


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