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टीडब्ल्यूयू ने निकाला हेरिटेज वॉक

मजदूर दिवस के अवसर पर टाटा वर्कर्स यूनियन द्वारा पहली मई को हेरिटेज वॉक निकाला। टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (एचआरएम) सुरेश दत्त त्रिपाठी ने इसे झंडा दिखाकर रवाना किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 03 May 2019 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 06:29 AM (IST)
टीडब्ल्यूयू ने निकाला हेरिटेज वॉक
टीडब्ल्यूयू ने निकाला हेरिटेज वॉक

जासं. जमशेदपुर : मजदूर दिवस के अवसर पर टाटा वर्कर्स यूनियन द्वारा पहली मई को हेरिटेज वॉक निकाला। टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (एचआरएम) सुरेश दत्त त्रिपाठी ने इसे झंडा दिखाकर रवाना किया।

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टाटा वर्कर्स यूनियन कार्यालय से निकली इस रैली में टाटा स्टील के कई वरीय अधिकारी, यूनियन के कमेटी मेंबर व पदाधिकारी शामिल हुए। टाटा वर्कर्स यूनियन के सौ वर्षो वाली सफेद टोपी पहने रैली में शामिल सभी यूनियन कार्यालय से बिष्टुपुर जी टाउन मैदान तक पैदल पहुंचे और वहां रैली सभा में तब्दील हो गई। इस दौरान एक बड़े स्क्रीन पर सभी को महात्मा गांधी से संबधित वृत्तचित्र भी दिखाए गए। वहीं, एमडी का भाषण भी दिखाया गया जिसमें उन्होंने वर्किंग टू गेदर का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि हमें कंपनी की हर चुनौती का मिलकर सामना करना होगा। कहा, प्रबंधन और यूनियन एक दूसरे की जरूरतों को समझे। इसके अलावे वाइस प्रेसिडेंट (शेयर्ड सर्विसेज) अवनीश गुप्ता और वाइस प्रेसिडेंट (सीएस) चाणक्य चौधरी ने भी सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इतिहास को जीवित रखने के लिए इस तरह की पहल सराहनीय है। सभा का संचालन यूनियन उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम जबकि धन्यवाद ज्ञापन डिप्टी प्रेसिडेंट अरविंद पांडेय ने किया।

रैली में वाइस प्रेसिडेंट उत्तम सिंह, यूनियन अध्यक्ष आर रवि प्रसाद, महामंत्री सतीश कुमार सिंह, चीफ एचआरएम संदीप धीर, ग्रुप चीफ आइआर जुबिन पालिया, एथिक्स काउंसलर सोनी, जुस्को एमडी तरूण डागा, टीएमएच के महाप्रबंधक डॉ. राजन चौधरी, डॉ. केपी दुबे सहित बड़ी संख्या में कमेटी मेंबर व कंपनी के वरीय अधिकारी उपस्थित थे।

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ऐतिहासिक तथ्यों को आलम ने बदल दिया

सभा के दौरान यूनियन के सभी पूर्व अध्यक्षों के कट आउट और उनके कार्यकाल में किए गए महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की गई थी। लेकिन कुछ कमेटी मेंबरों का आरोप है कि शाहनवाज आलम ने हेरिटेज वॉक में यूनियन के तथ्यों को उलट-पलट दिया। सुभाषचंद्र बोस का कार्यकाल 1928 से 1937 तक रहा जबकि कटआउट में इसे 1920 से 1924 दिखाया गया। प्रो. अब्दुल बारी का कार्यकाल 1938 से 1947 दिखाया गया जबकि उनका कार्यकाल 1936 से 1947 दिखाया गया। कुछ कमेटी मेंबरों का आरोप है कि देश की महान विभूतियों के ऐतिहासिक तथ्यों में इस तरह की चूक क्षम्य नहीं है। हालांकि शाहनवाज आलम ने ऐसे आरोपों का खंडन किया।


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