101 की हो गई देश की सबसे बड़ी यूनियन, ये रहा इसका सफरनामा Jamshedpur News
Tata Workers Union. देश की सबसे बड़ी मजदूर यूनियनों में से एक टाटा वर्कर्स यूनियन (टीडब्ल्यूयू) 5 मार्च 2020 को 101 वर्ष की हो गई। आइए जानिए इसका शानदार सफरनामा।
जमशेदपुर, निर्मल प्रसाद। Tata Workers Union देश की सबसे बड़ी मजदूर यूनियनों में से एक टाटा वर्कर्स यूनियन (टीडब्ल्यूयू) ने 5 मार्च, 2020 को अपनी स्थापना के 101 वर्ष पूरे किए। इस यूनियन में कई स्वतंत्रता सेनानियों और दिग्गज ट्रेड यूनियन नेताओं ने नेतृत्व किया।
इनके द्वारा ऐसे-ऐसे निर्णय लिए गए जो बाद में चलकर पूरे देशभर में प्रभावी हुए। वह चाहे साप्ताहिक छुट्टी हो या न्यूनतम वेतन, कर्मचारी भविष्य निधि हो या फिर मातृत्व अवकाश का मामला हो। टाटा वर्कर्स यूनियन में ऐसे भी अध्यक्ष बने जो प्रबंधन के साथ होने वाली बैठकों में चाय तक नहीं पीते थे। आज समय बदल गया है। अब यूनियन के तीन वर्ष के कार्यकाल में एक बार ज्वाइंट कंसल्टेटिव कमेटी फॉर मैनेजमेंट (जेसीसीएम) की एक बैठक विदेश में होती है। जिसमें यूनियन के सभी पदाधिकारी अपने परिवार के साथ शामिल होते हैं। ऐसे में पहल के नेताओं द्वारा किए गए काम को वर्तमान ट्रेड यूनियन के नेता अपने दिल में संजोए हुए हैं। यूनियन वर्तमान में साढ़े 13 हजार कर्मचारियों का नेतृत्व कर रही है।
बैरिस्टर की नौकरी छोड़कर किया मजदूरों का नेतृत्व
एसएन हलदर (वर्ष 1920-22) : सुरेंद्र नाथ उर्फ एसएन हलदर टाटा वर्कर्स यूनियन के पहले अध्यक्ष होने का गौरव हासिल है। वर्ष 1911 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी में उत्पादन शुरू हुआ और वर्ष 1916 में कंपनी को अप्रत्याशित मुनाफा हुआ। लेकिन तब के अंग्रेज अधिकारियों ने मजदूरों को उनका हक नहीं दिया। आर्थिक संतुलन बिगड़ने पर कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी। ऐसे में स्वराजवादी व्योमकेश चक्रवर्ती की सलाह पर कोलकाता हाई कोर्ट के बैरिस्टर सुरेंद्र नाथ हलदर को जमशेदपुर लेकर आए। हलधर हड़ताल पर बैठे मजदूरों का नेतृत्व किया। इन्होंने ही पांच मार्च 1920 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन की स्थापना की, जो आज टाटा वर्कर्स यूनियन के नाम से विख्यात है।
गांधीजी भी सीएफ एंड्रूज के नेतृत्व व सादगी के थे कायल
सीएफ एंड्रूज (वर्ष 1922-28) : एसएन हलदर के बाद दीनबंधु सीएफ एंड्रूज यूनियन के दूसरे अध्यक्ष बने। कर्मचारियों व दलितों के प्रति काम करने की इनकी भावना, वाकपटुता और सादगी भरे जीवन के प्रति महात्मा गांधी भी कायल थे। इनके कार्यकाल में ही गांधी जी जमशेदपुर आए और मजदूरों को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर आप लोगों ने इन्हें (एंड्रूज) को अपना अध्यक्ष चुना है तो आप सुनिश्चित रहें। ये आपकी मदद इस प्रकार करेंगे कि आप टाटा उद्योग के साथ सभी विरोधी से बच जाएंगे। इनके कार्यकाल में बिष्टुपुर के साउथ पार्क में यूनियन को कार्यालय संचालन के लिए एक क्वार्टर मिला था। साथ ही टाटा स्टील प्रबंधन और यूनियन के बीच पहला समझौता हुआ था। जिसमें कंपनी प्रबंधन ने जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन को मान्यता दी। मजदूरों का मासिक चंदा कटना शुरू हुआ था।
अंग्रेज अफसरों को हटाकर भारतीय को बनाएं अधिकारी
नेताजी सुभाषचंद्र बोस (1928-36) : यूनियन के तीसरा अध्यक्ष बने नेताजी सुभाषचंद्र बोस। सीएफ एंड्रूज के निधन के बाद कंपनी में फिर से हड़ताल शुरू हुई। तब कर्मचारियों ने नेताजी को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुनकर समझौता कराकर तीन माह 12 दिन चले हड़ताल को समाप्त कराया। उनके समझौते के कारण कर्मचारियों को एक्टिंग भत्ता, सेफ्टी उपकरण, सुरक्षा समितियों का गठन, शिशु कक्ष व विश्राम गृह, मातृत्व लाभ, विज्ञापन द्वारा रिक्त स्थानों की जानकारी देना, विभागीय शिकायतों पर विचार करने पर सहमति बनी। इन्होंने कंपनी प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच होने वाले लगातार टकराव को कम करने के लिए प्रबंधन को पत्र लिखा। कहा कि वे कंपनी में उच्च पदों पर अंग्रेज अफसरों को हटाकर भारतीय लोगों को पदस्थापित करें। कंपनी के एक निदेशक को जमशेदपुर में रहकर कंपनी का संचालन करने का आग्रह किया ताकि जरूरत पड़ने पर कर्मचारी सीधे उनसे संपर्क कर सकें। इसके बाद नेताजी ने स्वेच्छा से यूनियन अध्यक्ष का पद छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में शामिल हो गए।
प्रबंधन पहले सभी कर्मचारियों को निश्शुल्क पिलाए चाय, फिर पीएगा उसका अध्यक्ष
प्रो. अब्दुल बारी (वर्ष 1936-47) : नेताजी के आग्रह पर सेनानी व प्रोफेसर अब्दुल बारी यूनियन के अगले अध्यक्ष बने। प्रो. बारी के विषय में कहा जाता है कि वे जब प्रबंधन से किसी विषय पर बैठक करते थे तो उनकी चाय तक नहीं पीते थे। पूछने पर कहते कि प्रबंधन पहले उनके सभी कर्मचारियों को निश्शुल्क चाय पिलाए। फिर कर्मचारियों का अध्यक्ष चाय पीएगा। एक यूनियन नेतृत्व के रूप में यह उनका समर्पण था। प्रो. बारी की गिनती एक सच्चे, ईमानदार, त्यागी और बेबाक नेताओं में थी। अपनी स्पष्टवादिता और बेबाक टिप्पणी से वे अंग्रेजी सरकार को और न ही उद्योग प्रबंधन को भी नहीं बख्शते थे। इन्होंने ही अप्रैल 1937 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का नाम बदलकर टाटा वर्कर्स यूनियन किया था।
प्रबंधन के अधिकारी बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था
माइकल जॉन (वर्ष 1947-77) : माइकल जॉन टाटा वर्कर्स यूनियन से जुड़ने से पहले टिनप्लेट कंपनी कर्मचारियों की तकलीफ को समझते हुए गोलमुरी टिनप्लेट वर्कर्स यूनियन का गठन किया। अंग्रेज पदाधिकारियों के अत्याचार के खिलाफ इन्होंने हड़ताल शुरू की। इसके लिए इन्होंने सुभाषचंद्र बोस को आमंत्रित किया। जॉन साहब की नेतृत्व क्षमता, कार्य कुशलता और ईमानदारी से प्रभावित होकर नेताजी ने इन्हें जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन में लेकर आए और सचिव बनाया। इनकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कंपनी प्रबंधन ने जॉन साहब को जमशेदपुर से बाहर एक अच्छी नौकरी देने की पेशकश की। लेकिन इन्होंने प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
ईमानदारी के नेताजी थे कायल
इनकी ईमानदारी से प्रभावित होकर नेताजी ने पांच नवंबर 1935 को कंपनी प्रबंधन को एक पत्र लिखा। जिसमें कहा कि माइकल जॉन गरीब हो सकते हैं। लेकिन उनके त्याग व जनसेवा की भावना को मैं नमन करता हूं। ये ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने कंपनी प्रबंधन की अच्छी नौकरी को ठुकराकर भुखमरी के बावजूद मजदूरों के उत्थान के लिए लगे हुए हैं। इनके कार्यकाल में ही वर्ष 1956 में कंपनी प्रबंधन और यूनियन के बीच ज्वाइंट कंसल्टेशन का ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसके तहत कंपनी प्रबंधन और यूनियन मिलकर एक कमेटी गठित करेगी जो मजदूरों के विभिन्न विषयों पर वार्ता करेगी। इसके आधार पर ही ज्वाइंट डिपार्टमेंटल काउंसिल, ज्वाइंट वर्क्स काउंसिल, ज्वाइंट टाउन काउंसिल, संयुक्त परामर्श मैनेजमेंट काउंसिल का गठन हुआ। साथ ही एक शिकायत प्रणाली का भी शुभारंभ हुआ। इनके कार्यकाल में यदि कोई कर्मचारी सरप्लस होता तो उन्हें फिर से प्रशिक्षित कर दूसरे विभाग में समायोजित किया जाता था।
नाम ही काफी था
वीजी गोपाल (वर्ष 1977-93) : ट्रेड यूनियन की राजनीति में वीजी गोपाल का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता था। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया। कई बार जेल भी गए। इनका इतना बड़ा व्यक्ति्व था कि इनसे मिलने के लिए कंपनी प्रबंधन को भी समय लेना पड़ता था। यदि इन्होंने कोई बात कह दी तो प्रबंधन के बड़े से बड़ा अधिकारी भी उनका बात नहीं टालता था। उदारीकरण के दौर में जब टाटा स्टील प्रबंधन ने कर्मचारियों की छटनी का निर्णय लिया तो वीजी गोपाल ने इसका विरोध किया। 14 अक्टूबर 1993 की दोपहर 12 बजकर पांच मिनट में अपराधियों ने इन्हें गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
प्रस्ताव पसंद नहीं आया तो चले जाते थे अज्ञातवास में
एसके बेंजामिन (वर्ष 1993-2002) : एसके बेंजामिन बेहद शांत स्वभाव व कम बोलने वाले नेता थे। जब ये प्रबंधन के साथ बैठक करते और कोई प्रस्ताव अच्छा नहीं लगता था तो सीधे बोलते नहीं थे। बिना किसी को बताए अज्ञातवास में चले जाते थे। कंपनी प्रबंधन से लेकर उनके समर्थक कर्मचारी व परिवार वालों को उन्हें ढ़ूढ़ने में काफी पसीना बहाना पड़ता था। प्रबंधन को तब एहसास होता था कि उनका उक्त प्रस्ताव अध्यक्ष को स्वीकार नहीं है। इसलिए वे उसमें बदलाव भी करते थे। ये ऐसे अध्यक्ष थे जो किसी कर्मचारी की समस्या आने पर खुद ही पत्र लिखवाकर प्रबंधन को भेजते थे।
फोन पर ही डपट देते थे अधिकारियों को
आरबीबी सिंह (वर्ष 2002-05) : टाटा वर्कर्स यूनियन के आठवें अध्यक्ष थे आरबीबी सिंह। वे इतने निर्भिक थे कि फोन पर ही बड़े-बड़े अधिकारियों की डपट देते, उनकी क्लास लगा देते थे। यदि कोई कर्मचारी किसी अधिकारी को यह कह दे कि वे फलां मामले में यूनियन जा रहे हैं तो अधिकारी वहीं पर मामला सुलझाकर कर्मचारी को ड्यूटी पर बुला लेते थे। इनके कार्यकाल में एक समझौता हुआ कि यदि किसी कर्मचारी की मौत हुई तो उसका वर्तमान बेसिक व डीए उसके आश्रित को 60 वर्षों तक मिलता रहेगा। यह परंपरा आज भी कंपनी में कायम है। वर्ष 2003 में आरबीबी सिंह ने कंपनी के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को उनके पीएफ में जमा पैसे का दो प्रतिशत अनक्लेम पैसे से दिलवाया। यह पहल आज तक फिर यूनियन में नहीं हुई। इनके कार्यकाल में ही कर्मचारियों के लिए शहर भर में क्लब हाउस बनाए गए।
जहां सदस्यों का नहीं होगा सम्मान, वहां नहीं जाएंगे
रघुनाथ पांडेय (वर्ष 2006-12) : रघुनाथ पांडेय के कार्यकाल में ऑफिस बियरर का सम्मान सबसे अहम होता था। एक बैठक में कंपनी प्रबंधन ने किसी पदाधिकारी को कुछ कह दिया तो यूनियन अध्यक्ष बैठक से उठकर चले गए। इनका कहना था कि जहां उनके सदस्यों का सम्मान नहीं होगा, वहां वे भी नहीं बैठेंगे। इसके बाद कंपनी के पदाधिकारियों ने अपनी गलती सुधारी और यूनियन को पूरा सम्मान दिया गया। लेकिन इनके ही कार्यकाल में ही टाटा स्टील नेशनल ज्वाइंट कमेटी फॉर स्टील इंडस्ट्री (एनजेसीएस) से बाहर हो गई थी और टाटा स्टील में एनएस ग्रेड बना। इसके बावजूद मंदी के दौर में भी रघुनाथ पांडेय के कार्यकाल में टाटा स्टील में सबसे ज्यादा बहाली हुई। सिक्योरिटी में 347 और यूटिलिटी हैंड में 682 युवाओं को नौकरी मिली। इसके अलावे पैथोलॉजी में भी कई युवाओं का नियोजन हुआ।
स्कूटर स्टार्ट कर चले गए थे ड्यूटी
पीएन सिंह (वर्ष 2012-15) : टाटा स्टील में ग्रेड रिवीजन वार्ता जब लंबित थी तब प्रबंधन ने कर्मचारियों के कई ऐसे सुविधाओं को कम करने का प्लान टाटा वर्कर्स यूनियन नेतृत्व को दिया। लेकिन अध्यक्ष रहते हुए पीएन सिंह कंपनी प्रबंधन की मांगों को मानने से इन्कार कर दिया। दबाव बनाने के लिए प्रबंधन से मिले ड्यूटी से रिलीज, मोबाइल फोन व कार को छोड़कर अपनी स्कूटर को स्टार्ट किया और ड्यूटी चले गए। नतीजा छह वर्षो के वेतन समझौते में कर्मचारियों को 18.25 प्रतिशत मिनिमम गारेंटेड बेनीफिट का लाभ मिला। कई सुविधाएं भी अनवरत रही। चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। जिसका मामला हाई कोर्ट में भी पहुंचा।
कंपनी में लीव बैंक की हुई शुरुआत
आर रवि प्रसाद (वर्ष 2015- अभी तक) : वर्तमान में टाटा वर्कर्स यूनियन अध्यक्ष के पद पर पिछले दो कार्यकाल से आर रवि प्रसाद कार्यरत हैं। इनके कार्यकाल में कंपनी में लीव बैंक शुरू हुआ। मासिक धर्म में बिना प्रबंधन को जानकारी दिए महिला कर्मचारियों को प्रतिमाह अवकाश, मातृत्व अवकाश में छुट्टी की समय सीमा बढ़ी, पिता बनने या गोद लेने पर भी कर्मचारियों को छुट्टी शुरू हुई। लेकिन कर्मचारियों का मेडिकल एक्सटेंशन बंद होना, डीए फ्रीज होना, आपसी सहमति से क्वार्टर फिक्स अप बंद होना जैसे कई ऐसे समझौते हुए, जिससे कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान ज्यादा हुआ। -
टाटा स्टील प्रबंधन और टाटा वर्कर्स यूनियन के बीच हुए समझौते के मुख्य अंश
- वर्ष 1920 में कर्मचारी भविष्य निधि का हुआ शुभारंभ।
- वर्ष 1920 में कर्मचारियों को प्रतिदिन मिलता था 13 रुपये दैनिक भत्ता, आज है न्यूनतम 12825 रुपये बेसिक।
- 1921 में कर्मचारियों के लिए खुला टेक्नीकल इंस्टीट्यूट।
- 1934 में प्रबंधन-यूनियन के बीच हुआ समझौता। कर्मचारियों को मुनाफे में मिलेगा प्रोफिट शेय¨रग बोनस
- 1945 में कर्मचारियों के लिए शुरू हुआ स्टडी लीव।
- एक अगस्त 1948 में कंपनी के सभी ऑपरेशन व मेंटनेंस विभागों में इंसेटिव बोनस की शुरुआत हुई।
- वर्ष 1954 में कंपनी प्रबंधन व यूनियन के बीच सिकनेस बेनीफिट समझौते पर सहमति बनी।
- 1962 में यूनियन-प्रबंधन के बीच समझौता हुआ। जिसके तहत कर्मचारियों के बच्चों के लिए स्कूल खोले गए। जिसे बाद में बिहार सरकार ने मान्यता दी।
- वर्ष 1965 में कर्मचारियों के लिए प्रिवलेज लीव, फेस्टिवल लीव, कैजुअल लीव की शुरुआत हुई।
- 1978 में कर्मचारियों के लिए लाइव कवर स्कीम का शुभारंभ।
- 19 मार्च 1978 में टाटा वर्कर्स यूनियन को बिष्टुपुर स्थित के के रोड में कार्यालय बना।
- एक अप्रैल 1976 में लाइव कवर स्कीम का शुभारंभ। कर्मचारी की मौत होने पर उसके आश्रित को नौकरी या 20 माह का वेतन स्कीम की शुरुआत हुई।