Move to Jagran APP

इस खास मौके पर आदिवासी समाज अपनी प्यारी बेटी टुसूमनी के बलिदान को करता याद

टुसू पर्व पर आदिवासी समाज अपनी प्यारी बेटी टुसूमनी के बलिदान को याद करता है। गांवों में टुसूमनी की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 06:30 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:30 PM (IST)
इस खास मौके पर आदिवासी समाज अपनी प्यारी बेटी टुसूमनी के बलिदान को करता याद
इस खास मौके पर आदिवासी समाज अपनी प्यारी बेटी टुसूमनी के बलिदान को करता याद

जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। नई फसल के स्वागत में जिस रोज भारत का गांव-कस्बा मकर संक्रांति पर्व मनाता है, झारखंड का आदिवासी समुदाय उसी दिन टुसू पर्व मनाता है। आदिवासी समाज इस दिन अपनी प्यारी बेटी टुसूमनी के बलिदान को याद करता है।

loksabha election banner

गांवों में मकर संक्रांति से एक माह पहले अगहन संक्रांति से ही टुसू पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। गांवों में टुसूमनी की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। मकर संक्रांति के दिन पर्व का समापन मूर्ति विसर्जन के साथ होता है। इस काम को केवल कुंवारी लड़कियां ही करती हैं। विसर्जन के लिए नदी पर मूर्ति ले जाने के दौरान आदिवासी समाज के लोग टुसूमनी की याद में गीत गाते हैं। ढोल व मांदर की लय-ताल पर थिरकते हैं। टुसू पर गाए जानेवाले गीतों में जीवन के हर सुख-दुख के साथ सभी पहलुओं का जिक्र होता है।

बनता है खास व्यंजन

इस पर्व के मौके पर आदिवासी समाज अपने घरों में गुड़ पीठा, मांस पीठा, मूढ़ी लड्डू, चूड़ा लड्डू और तिल लड्डू जैसे व्यंजन बनाता है। नए अनाज का गुड़ पीठा विशेष रूप से बनाया जाता है। व्यंजनों में नारियल का प्रयोग होता है। जगह-जगह मुर्गा लड़ाई प्रतियोगिताएं होती हैं। शहर में दोमुहानी व भुइयांडीह समेत कई स्थानों पर टुसू मेला का आयोजन होता है।

टुसू पर्व की ये दो कथाएं हैं समाज में प्रचलित

-टुसू को लेकर अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित हैं। यह वास्तव में कृषि आधारित त्योहार है। एक कथा के अनुसार टुसू देवी नहीं बल्कि अन्न के अंदर समाहित वह जीवन शक्ति है जिससे जिंदगी मिलती है। इसी शक्ति को टुसू शक्ति कहा जाता है। इसका प्रमाण टुसू गीतों में भी मिलता है।

-दूसरी कथा के अनुसार टुसु मनी का जन्म पूर्वी भारत के एक कुड़मी किसान परिवार में हुआ था। उसकी खूबसूरती के चर्चे चहुंओर थे। एक राजा के सैनिकों ने गलत नीयत से उसका पीछा किया। अपनी इज्जत बचाने के लिए टुसूमनी ने नदी में छलांग लगाकर जान दे दी। उस दिन मकर संक्रांति था, इसलिए मकर संक्रांति के दिन उसकी याद में टुसू पर्व मनाया जाता है।

चाउल धुआ के साथ 12 से टुसू पर्व होता है शुरू

टुसू पर्व 12 जनवरी को चाउल धुआ के साथ शुरू होता है। पहले दिन घरों में नए आरवा चावल को भिगोया जाता है। ढेंकी में कूट कर चावल का आटा बनाया जाता है। इससे गुड़ पीठा बनता है। 13 जनवरी को बाउंडी पर्व मनाया जाता है। बाउंडी के मौके पर घरों में विशेष पूजा की जाती है। इस दिन घरों में पुर पिठा बनाया जाता है। घर के सभी लोग एक साथ बैठकर पीठा खाते हैं। इसके बाद 14 जनवरी को टुसू पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग पवित्र नदी व जलाशयों में स्नान करते हैं। नए वस्त्र धारण करते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.