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Lockdown Effect. उत्‍कल की आवाज से रात तो हावड़ा से होती थी सुबह, ट्रेनों के बंद होने से बिगड़ गई दिनचर्या

Lockdown Effect. ट्रेन बंद होने से रेल ट्रैक के आसपास की बस्तियों में बसे लोगों की दिनचर्या प्रभावित हो गई है। ट्रेनों का आना-जाना वक्त बताता था। अब समय सारिणी बिगड़ गई है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 01:26 PM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 01:26 PM (IST)
Lockdown Effect. उत्‍कल की आवाज से रात तो हावड़ा से होती थी सुबह, ट्रेनों के बंद होने से बिगड़ गई दिनचर्या
Lockdown Effect. उत्‍कल की आवाज से रात तो हावड़ा से होती थी सुबह, ट्रेनों के बंद होने से बिगड़ गई दिनचर्या

जमशेदपुर, जासं। Lockdown Effect लॉकडाउन में ट्रेनों की चाल क्या बदली, ट्रैक किनारे बसी बस्तियों में रहनेवाले लोगों की समय सारिणी ही बिगड़ गई। पहले ट्रेन आने-जाने की आवाज से बिना घड़ी देखे अंदाजा हो जाता था कि अब इतना समय हो गया, लेकिन अब ट्रेनें चल ही नहीं रही तो उन बस्तियों के लोगों की दिनचर्या ही बदलकर रह गई है। इन इलाकों के लोग अब बार-बार अपनी दिनचर्या दुरुस्त करने के लिए बड़ी हसरत से ट्रेन की पटरियों को निहार रहे हैं। 

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रेल ट्रैक के किनारे गोलपहाड़ी में रहने वाले महेश प्रसाद बताते हैं कि रात 11.35 बजे उत्कल एक्सप्रेस की आवाज से हमारी रात होती थी और सुबह 5.50 बजे हावड़ा-मुंबई मेल की आवाज दिन की शुरुआत होती थी। रेलवे ट्रैक के आसपास बसी बस्तियों में रहने वाले अधिकतर लोगों को अब ऐसा लगता है जैसे ट्रेन नहीं, उनकी जिंदगी की रफ्तार ही ठहर गई है।
कैरेज कॉलोनी के लोगों को खल रही कमी
कैरेज कॉलोनी के अमरेंद्र कुमार कहते हैं कि ट्रेनों की आवाज सुनने एक आदत सी बन गई थी। अब सूना-सूना लगता है। कई बार ऐसा लगता है मानो ट्रेन फिर से दनदनाते हुए प्लेटफार्म में प्रवेश कर रही है। यहीं के कुशल कुमार कहते हैं घर की छत से रोज सुबह दर्जनों एक्सप्रेस ट्रेनों को देखते थे। कभी बच्चे हाथ हिलाते दिखते तो कभी यात्रियों की खचाखच भीड़। ट्रेन के गुजरने के बाद मुझे पता चल जाता था कि अब 15 मिनट में दूधवाला आएगा। अब तो पटरी पर सिर्फ  मालगाडिय़ां दौड़ रही हैं। इक्का-दुक्का श्रमिक स्पेशल व एसी स्पेशल ट्रेन भी आती-जाती नजर आ जाती है। लॉकडाउन में ट्रेन नहीं चलने से हमारी जिंदगी भी बेपटरी हो गई है। रात को अचानक ऐसा लगता है जैसे अभी ट्रेन का सायरन बजा है। रोजाना सुबह पांच बजे स्टेशन तक टहलने जाता था। ट्रेन के साथ वह भी बंद हो गया है।
पटरी के इर्द-गिर्द व रेलवे कॉलोनियों में रहते हैं 20 हजार लोग 
जमशेदपुर में रेलवे की पांच कालोनियां ट्रैफिक कॉलोनी, लोको कॉलोनी, कैरेज कॉलोनी, गोलपहाड़ी और साउथ सेटलमेंट कॉलोनी हैं। इनमें लगभग 10 हजार की आबादी निवास करती हैं। इसके इतर 10 हजार की आबादी ऐसी है जो अनाधिकृत रूप से रेल की पटरियों के किनारे निवास करती है। 
कभी गुजरती थीं 14 जोड़ी ट्रेनें 
टाटानगर रेलवे स्टेशन से लॉकडाउन के पहले मुंबई-हावड़ा मुख्य मार्ग पर अप-डाउन मिलाकर 14 जोड़ी एक्सप्रेस ट्रेनें गुजरती थीं। इसके इतर लगभग आधा दर्जन से अधिक लोकल ट्रेनों का भी परिचालन होता था। 

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