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तीन गिलास डाड़ी का पानी एक गिलास दूध के बराबर,पहाड़ से निकलता पानी का स्रोत

पूर्वी सिंहभूम के इस गांव के लोग डाड़ी (पहाड़ से निकलता पानी का स्रोत) का पानी पीते हैं। उनका कहना है कि इसका तीन गिलास पानी एक गिलास दूध के बराबर है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 11:26 AM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 11:11 AM (IST)
तीन गिलास डाड़ी का पानी एक गिलास दूध के बराबर,पहाड़ से निकलता पानी का स्रोत
तीन गिलास डाड़ी का पानी एक गिलास दूध के बराबर,पहाड़ से निकलता पानी का स्रोत

जमशेदपुर,दिलीप कुमार/मिथिलेश। भू-गर्भ जल में आयरन की अधिकता से झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के बोड़ाम प्रखंड के पागदा गांव के लोग परेशान हैं। गांव के लोग हैंडपंप का पानी नहीं पी पाते हैं। मजबूरी में डाड़ी (पहाड़ से निकलता पानी का स्रोत) का पानी पीते हैं। उनका कहना है कि इसका तीन गिलास पानी एक गिलास दूध के बराबर है।

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आयरन वाला पानी पीने से लोगों में बीमारियां होने की संभावना रहती है। इस पानी से न तो खाना ठीक से पकता और नहीं ठीक से पचता है। इसका स्वाद भी अच्छा नहीं होता है। इसीलिए लोग वर्षो से डाड़ी के पानी का उपयोग कर रहे हैं। सरकार की ओर से लगवाए गए हैंडपंप सफेद हाथी साबित हो रहे हैं।पागदा के टोला भुइयांसिनान में पहाड़ के नीचे स्थित डांडी से करीब 60 परिवार रोज पानी लेते हैं। यहां पानी लेने के लिए सुबह से ही महिलाओं की भीड़ लगी रहती है। यहां से पानी लेने के लिए भुइयांसिनान के अलावे पागदा, तांतीबेड़ा और आसपास के लोग आते हैं। बताते चलें कि स्थानीय होटलों में भी डाड़ी का पानी ही सप्लाई की जाती है।

चापाकल के पानी से ठीक से नहीं बनता खाना

पानी लेने पहुंची महिलाओं ने बताया कि चापाकल के पानी में आयरन की मात्र अधिक है। जिसके कारण चावल और दाल ठीक से नहीं बनता है। चापाकल के पानी से बना चावल मटमैला हो जाता है। वहीं डांड़ी के पानी से बना चावल साफ और दो दिनों तक खराब नहीं होता है।

डाड़ी के पानी से बनता था मध्याह्रन भोजन

भुइयांसिनान स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय पागदा का मध्यान्न भोजन भी पहले डांड़ी के पानी से ही बनाया जाता था। करीब ढाई वर्ष पहले टाटा स्टील रूरल डेवलेपमेंट सोसाइटी (टीएसआरडीएस) ने स्कूल परिसर में पेयजल के लिए बोरिंग कर टंकी लगा दी है। तब से स्कूल में बोरिंग के पानी से ही मध्यान्न भोजन बनता है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक पिनाकी गोस्वामी ने बताया कि स्कूल के पुराने हैंडपंप के पानी में भी अधिक आयरन है, जिसके कारण पानी का उपयोग विद्यार्थी नहीं करते हैं। इस बोरिंग में भी आयरन है, लेकिन दूसरे चापाकल की अपेक्षा कम।

छह टोला के करीब 60 परिवार लेते हैं पानी

पागदा गांव के छह टोले हैं। इसमें भुइयांसिनान, तांतीबेड़ा, पाइंचाडीह, खिजूरडीह, डांगार और माझी डांगार शामिल हैं। इसमें से करीब 60 परिवार डांड़ी के पानी का प्रयोग करते हैं। बगल के कुमारी के ग्राम प्रधान रवींद्रनाथ सिंह ने बताया कि क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में हैंडपंप हैं, लेकिन अधिकांश चापाकलों का पानी पीने लायक नहीं है। उन्होंने बताया कि डांड़ी के बगल में दूसरा जलस्रोत है, जहां लोग नहाते और कपड़े आदि धोते हैं।

रवींद्र नाथ सिंह, ग्राम प्रधान -कुमारी।

शुद्धता के साथ-साथ सेहत भी दुरुत रहती

पागदा गांव के ग्राम प्रधान हाकिम चंद्र महतो का कहना है कि भुइयांसिनान डांड़ी के पानी की तुलना हमलोग दूध से करते हैं। उन्होंने बताया कि क्षेत्र में डांड़ी के तीन गिलास पानी की तुलना एक गिलास दूध से की जाती है।


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