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तीन बस्ती आपस में भिड़े, सैकड़ों खा गए केस, पढिए सियासत की दुनिया की अंदरूनी खबर

Siyasi Adda. पुराने वाले भी भैंस अंदर बांधकर लाठी लेकर दरवाजे पर खड़े हो गए। उनका कहना था कि यहां अब दूसरी भैंस नहीं बंधेगी। नई भैंस वाले भी अड़े थे। केस-फौजदारी हो गई सैकड़ों केस खा गए। फिर भी भैंस को दरवाजे के बाहर ही बांध दिया गया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 17 Feb 2021 11:37 AM (IST)Updated: Wed, 17 Feb 2021 11:37 AM (IST)
तीन बस्ती आपस में भिड़े, सैकड़ों खा गए केस, पढिए सियासत की दुनिया की अंदरूनी खबर
अंदर और बाहर वाले दोनों पहरा दे रहे हैं, पता नहीं भैंस कब घुस जाए।

जमशेदपुर, बीरेंद्र आेझा। एक सप्ताह पहले शहर में तीन बस्ती के बीच जबरदस्त घमासान हुआ। यह युद्ध मुख्यरूप से बस्ती के नामकरण को लेकर था। यह लड़ाई करीब 1960 के आसपास बसी लांगटॉम बस्ती को लेकर थी, जिसका अस्तित्व छह वर्ष पूर्व रघुवर नगर ने मिटा दिया था।

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‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की कहावत बहुत पुरानी है, वह इस युद्ध में दिखा। इस बार इसका नाम दीनदयाल नगर करने की कवायद चल रही थी। नामकरण भी कर दिया गया, लेकिन पुराने वाले भी भैंस अंदर बांधकर लाठी लेकर दरवाजे पर खड़े हो गए। उनका कहना था कि यहां अब दूसरी भैंस नहीं बंधेगी। नई भैंस वाले भी अड़े थे। केस-फौजदारी हो गई, सैकड़ों केस खा गए। फिर भी भैंस को दरवाजे के बाहर ही बांध दिया गया है।  अंदर और बाहर वाले दोनों पहरा दे रहे हैं, पता नहीं भैंस कब घुस जाए।

थाने तक पहुंचा मामला तब हुआ भंडाफोड़

अपने अजय सिंह स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानते हैं। इसे अपने जन्मदिन पर दिखाते भी हैं। राजनीति में रहकर भी कोई नशा नहीं करते। सचमुच तारीफ के काबिल हैं। अपने जन्मदिन को ऐतिहासिक बनाने के लिए हर बार अपनी एक पहचान छिपा लेते हैं कि उनका कांग्रेस से कोई संबंध है। इस बार भी छिपाने की कोशिश की थी, लेकिन प्रदेश स्तर के तमाम बड़े नेताओं से जन्मदिन पर केक कटवाया तो लोगों को कुछ-कुछ संदेह हो गया। एक दिन बाद जब बिष्टुपुर थाने में लॉकडाउन का केस हो गया, तो पूरा भंडाफोड़ हो गया। इनके पक्ष में सबसे पहले कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष नट्टू झा का बयान आया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस नेता बताते हुए प्रशासन से केस हटाने की मांग की। उसके बाद से तो अजय सिंह जिलाध्यक्ष बिजय खां के साथ सटे-सटे रहने लगे। जब खुलासा हो गया तो कांग्रेस की बैठकों में भी मौजूद रहने लगे।

एनएच बन गया फुटबॉल मैदान

टाटा-रांची राष्ट्रीय उच्चपथ, जिसे एनएच या नेशनल हाइवे भी कहा जाता है, फुटबॉल का मैदान बन गया है। जब से झारखंड बना है, राजनीतिक दल यहां खेल रहे हैं। फुटबॉल रखा रहता है, जिसे मन में आता है एक किक मारकर निकल जाता है। गोल भले ही नहीं मार सके हों, गोलपोस्ट के बगल से बॉल को गुजारने में खुद को कामयाब जरूर दिखा देते हैं। बारिश के दिनों में यह खेत भी बन जाता है। कुछ वर्ष पहले यहां कांग्रेसियों ने धान लगाते हुए फोटो भी खिंचाया था। अपने सांसद ने तो इसे अपने जीवन का लक्ष्य ही बना लिया है। उन्होंने अब तक जिन-जिन मुद्दों को हाथ में लिया है, लगभग सबमें कामयाबी हासिल की है। इसी से भरोसा भी जगता है कि बिद्युत दा एनएच को ऐसे नहीं छोड़ेंगे। इंतजार करिए, फ्लाईओवर बनाएं या अंडरग्राउंड टनल, कुछ न कुछ तो एनएच का करके ही रहेंगे।

ट्रांसफर लेते-लेते प्रमोशन पा गए धर्मेंद्र

ट्रांसफर-पोस्टिंग का खेल सिर्फ नौकरी में नहीं होता, राजनीति में भी खूब ट्रांसफर-पोस्टिंग होता है। झारखंड विकास मोर्चा से वाया कांग्रेस भाजपा में आने वाले धर्मेंद्र प्रसाद को पार्टी ने तत्काल प्रमोशन दे दिया। वैसे धर्मेंद्र पहले भी अपनी काबिलियत की वजह से झारखंड विकास मोर्चा में जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। यहां अभी इन्हें पिछड़ा वर्ग या ओबीसी मोर्चा का जिलाध्यक्ष बनाया गया है। राजनीति में लंगी मारने वाले इन्हें इस पद पर भी नहीं देखना चाहते थे, इसलिए इन्हें प्रदेश कार्यसमिति में कोषाध्यक्ष बनाने की तैयारी पूरी हो गई थी। यह तो भला हो कि इन्हें ऐन वक्त पर पता चल गया। राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, सो इशारा समझ गए। तत्काल एक कदम पीछे हटे और जोर से किक लगाई। इस बार बॉल गोलपोस्ट से पार हो गई। गोलकीपर देखता रह गया। इससे अब हर कोई समझ गया है कि धर्मेंद्र किस अंदाज के खिलाड़ी हैं।

बीरेंद्र आेझा।


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