Positive India : ऐसी है गांव की कहानी, यहां मुस्कुरा रही है जिंदगी...
Positive India. कोरोना काल में लॉकडाउन में शोर के साथ जिंदगी की रफ्तार थम सी गई है लेकिन झारखंड के इन इलाकों में ताजगी का एहसास भी सुखद है।
जमशेदपुर, भादो माझी। यहां जिंदगी मुस्कुरा रही है। जंगलों में भटकते हुए। कंद मूल और फल खाकर जीवन-यापन करते हुए। आवश्यकताओं को सीमित कर। बिल्कुल आदिकाल की तरह। मानव सभ्यता के इतिहास की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक से जूझने के लिए। जीतने के लिए।
प्रकृति की गोद में बसे इन गांवों में बसी आबादी ने फिर जंगलों का रुख कर लिया है। सुबह के टूथब्रश और कोलगेट की जगह फिर से दातुन ने ले ली है। वन के कंद मूल और फल अब फिर से प्राथमिकता में आ गए हैं। शहरों-बाजारों से नाता टूट गया है। ऐसे में जो मिल रहा उससे काम चल रहा और खुशी-खुशी चल रहा। बाजार से सिर्फ नमक लाना मजबूरी है, बाकी जंगल-झाड़ से सप्लाई ले रहे। शोर के साथ जिंदगी की रफ्तार थम सी गई है, लेकिन इन इलाकों में ताजगी का एहसास भी सुखद है।
नाश्ता भी जंगल के फलों से
लॉकडाउन से पहले तक सुबह-सुबह साइकिल पकड़ टिस्को (अब टाटा स्टील) में ठेका मजदूरी करने के लिए जाने वाले चांद्राय सोरेन अब सुबह जागते ही नीम दातून चबाते हुए जंगल की ओर निकल जाते हैं। आज पीपल के नए पत्ते तोड़ लाए हैं। दोपहर में इसी की (पीपल के नए पत्ते की) सब्जी बनेगी। घर में सबकी मनपसंद सब्जी भी है ये। धान के पारंपरिक किसान हैं ही, सो घर में चावल ठीक-ठाक है। घर का चावल और जंगल से जुटाई सब्जी। नाश्ता भी जंगल के फलों से ही हो रहा। चांद्राय के साथ ही बिंगबुरी (सुंदरनगर से आगे करीब 15 किमी दूर) गांव से आम दिनों में मजदूरी करने आने वाले राजाराम हांसदा भी आज वन की तलहटी से नीम के कमल कोंपलें तोड़ लाए हैं। पूछने पर कहते हैं-' माड़ (उबले चावल का पानी) के साथ नीम के इन कोमल पत्तों को मिलाकर 'नीम छिटकी' (कड़वा खीर जैसा) बनता है, जो मजेदार तो होता ही है, रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत भी करता है।
महुआ चुनने में बीत रहा दिन
गांव के लोग अभी फ्री हैं तो अधिकतर महुआ चुनने में दिन गुजार रहे हैं। महुआ के अलग-अलग व्यंजन भी बनाए जा रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चे महुआ के पेड़ के नीचे दिन भर बैठे मिल जाएंगे।
बच्चों को सिखा रहे साल के पत्तों से पत्तल बनाने की कला
गांवों में अब पुरानी कला को संरक्षित सुरक्षित करने का दौर भी चल रहा है। नई पीढ़ी साल के पत्तों से पत्तल बनाने की विधा नहीं जानती है, सो वृद्ध-बुजुर्ग उन्हें पत्तल बनाना सिखा रहे हैं।
माझी-मोड़ की बैठकों में दूरी का ख्याल
जमशेदपुर के करीब बसे तालसा, बिञबुरु, पोंडेहासा, सरजामदा, छोलागोड़ा, बुलनगोड़ा जैसे गांवों में इन दिनों अखाड़ों में होने वाली माझी परगना की बैठकों से बचा जा रहा है। कुछ बैठकें हो भी रहीं तो शारीरिक दूरी का पूरा ख्याल रखा जा रहा है। तालसा के माझी बाबा दुर्गा चरण मुर्मू कहते हैं-'आदिवासी गांवों में वैसे ही साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है, अब तो और ज्यादा रखा जा रहा है। शारीरिक दूरी का भी पालन हो रहा है।'