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Teachers Day आंधियों में जले इरादों के चिराग : इन शिक्षिकाओं ने बदल दी अपने स्कूलों की सूरत

इन शिक्षिकाओं ने अपने दम पर स्कूलों की सूरत बदलने का कार्य किया है। शिक्षिकाओं ने स्कूल के शैक्षणिक परिदृष्य को भी बदल दिया है। पढि़ए सुखद बदलाव की कहानी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 04 Sep 2019 01:19 PM (IST)Updated: Thu, 05 Sep 2019 08:17 AM (IST)
Teachers Day आंधियों में जले इरादों के चिराग : इन शिक्षिकाओं ने बदल दी अपने स्कूलों की सूरत
Teachers Day आंधियों में जले इरादों के चिराग : इन शिक्षिकाओं ने बदल दी अपने स्कूलों की सूरत

जमशेदपुर, वेंकटेश्वर राव। सरकारी स्कूलों की दशा व दिशा सुधारने में सरकार कई स्तर से प्रयास कर रही है। लेकिन कोल्हान प्रमंडल में ऐसी कई शिक्षिकाएं है, जिन्होंने अपने दम पर स्कूलों की सूरत को बदलने का कार्य किया है। महिला शिक्षिकाओं ने स्कूल के पूरे शैक्षणिक परिदृष्य को बदल दिया है।

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इसमें से एक पांच सितंबर को राष्ट्रपति शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने वाली आदित्यपुर ओडिय़ा स्कूल की शिक्षिका संध्या प्रधान, साकची स्थित राजकीयकृत जमशेदपुर बालिका उच्च विद्यालय की प्रधानाध्यापिका मंजू सिन्हा और टाटा वर्कर्स यूनियन उच्च विद्यालय कदमा की विज्ञान शिक्षिका शिप्रा का प्रमुख हैं। इन शिक्षिकाओं ने जब अपने-अपने स्कूल में योगदान दिया था, तब स्कूल का शैक्षणिक वातावरण पूरी तरह अस्त व्यस्त था। इनके प्रयास से फिर वहां माहौल बदला। 

छात्राओं को स्कूल तक लाने में बेलने पड़े पापड़

स्कूल के टूटे फुटे दो कमरे और 110 विद्यार्थी की सौगात के साथ पश्चिम सिंहभूम की गोईलकेरा की रहने वाली संध्या प्रधान ने सरायकेला खरसावां जिला के आदित्यपुर ओडिय़ा मध्य विद्यालय में वर्ष 2009 में प्रभारी प्राचार्य के रूप में योगदान दिया। विद्यालय में योगदान देते समय विद्यार्थियों की संख्या 110 थी, छात्राएं 21 प्रतिशत थी। बच्चों की पढ़ाई के कमरे नहीं थे, शौचालय तक की व्यवस्था नहीं थी। इसके बाद इस शिक्षिका ने स्कूल के पोषक क्षेत्र में जाकर गांव के बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान उन्हें काफी खरी-खोटी सुनने को मिली।

फ‍िर भी नहीं हारी हिम्मत

लोगों ने तंज भी कसा। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी। धीरे-धीरे ग्रामीणों के बीच जाने का फायदा संध्या प्रधान को मिला। वर्ष 2010 से विद्यालय के भवन निर्माण कार्य धीरे-धीरे प्रारंभ किया। वर्ष 2014 आते-आते वहां 20 कमरा बन गया। अब इस विद्यालय में 780 विद्यार्थी हैं। इसमें 63 प्रतिशत छात्राएं हैं। बालिका शिक्षा पर खास फोकस किया, जहां 20 प्रतिशत छात्राएं थी वहां आज 63 प्रतिशत छात्राएं अध्ययनरत हैं। स्कूल का शैक्षणिक माहौल सुधारने के साथ-साथ शिक्षिका संध्या ने विद्यालय को राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिलाई। स्वच्छता के लिए 5 स्टार रेटिंग

राष्ट्रीय विद्यालय स्वच्छता पुरस्कार में इस स्कूल को 5 स्टार रेटिंग के साथ वर्ष 2018 में एक लाख रुपया प्राप्त हो चुका है। वर्ष 2017 में यूनिसेफ द्वारा दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्तर की स्वच्छता पुरस्कार में इस विद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा पुरस्कार मिला। पुरस्कार प्राप्त करने वाला यह विद्यालय झारखंड का एकमात्र विद्यालय था। इस स्कूल की बच्चियां नवोदय विद्यालय तथा राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति पुरस्कार के लिए कई बार चयनित हो चुकी हैं। संध्या प्रधान ने बताया कि प्रमोशन के बाद उनका स्थानांतरण अपग्रेडेड हाईस्कूल न्यू कॉलोनी आदित्यपुर में हो गया है।

शिक्षिका को मिले ये पुरस्कार

  • वर्ष 2016 व 2019 में जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ शिक्षिका का पुरस्कार
  • सर्वश्रेष्ठ स्कूल प्रबंधन का पुरस्कार दो बार
  • तीन बार डॉ. जेजे ईरानी अवार्ड स्कूल को दिलवाने में कामयाब।

विद्यालय में मौजूद है सारी सुख सुविधा

आदित्यपुर ओडिय़ा मध्य विद्यालय में आज वो सारी सुख सुविधा है, जो एक स्कूल में होनी चाहिए। स्कूल पूरी तरह अपडेट है। कंप्यूटर से लेकर खाने के लिए डायनिंग हॉल तक बना हुआ है। किचन गार्डेन से लेकर रनिंग वाटर फेसिलिटी तक उपलब्ध है। डांस के लिए अलग से कक्षाएं होती हैं। लाइब्रेरी रूम भी अलग से है। विद्यालय का रिजल्ट शत प्रतिशत है और शून्य प्रतिशत ड्रॉपआउट है। 

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 विद्यालय को बंद करने का हो गया था, आज बना नजीर

 जमशेदपुर के साकची स्थित राजकीयकृत जमशेदपुर बालिका उच्च विद्यालय को वर्ष 2009 में छात्राओं की कमी के कारण बंद करने का आदेश हो गया था। उस समय वहां मात्र 33 छात्राएं थीं तथा मात्र चार कमरों में कार्यालय व कक्षाएं चलती थीं। इस परिस्थिति में वर्ष 2009 में प्रधानाध्यापिका के रूप में मंजू सिन्हा ने योगदान दिया। योगदान देने के बाद शिक्षिका ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखा कि उन्हें मात्र दो साल समय दीजिए स्कूल का पूरा माहौल बदल दूंगी। शिक्षा विभाग ने उन पर भरोसा किया और आज यह विद्यालय जिले के लिए नाजीर बन गया है। शिक्षा विभाग के जिले के योजनाओं की शुरुआत इसी विद्यालय से हो रही है। 

ऐसे हुए बदलाव

इस स्कूल की प्रधानाध्यापिका मंजू सिन्हा ने बताया कि स्कूल के चारो ओर झाडिय़ा थी। बिलकुल ही साफ-सफाई नहीं थी। सबसे पहले इस कार्य को दुरुस्त किया। इसके बाद नए भवन की वायरिग करवाई और वहां वर्ष 2010 में कक्षाओं की शुरुआत की। एसबीआइ से पंखों की व्यवस्था करवाई। इसके बाद वर्ष 2011 में नामांकन पर फोकस किया। छात्राओं की संख्या को बढ़ाने के लिए मानगो, कदमा से लेकर साकची तक घर-घर जाकर संपर्क किया तथा छात्राओं को स्कूल भेजने का अनुरोध किया। वर्ष 2014 में लाफार्ज ने कंप्यूटर लैब की स्थापना की। इसका फायदा भी स्कूल को मिला। खेलने का मैदान बनाया।

विद्यालय में हैं 363 छात्राएं

इस कारण आज इस विद्यालय में 363 छात्राएं हैं। इनर व्हील क्लब से बात कर उषा कंपनी के सौजन्य से यहां वर्ष 2016 में छात्राओं को सिलाई का प्रशिक्षण प्रारंभ किया। छात्राएं अब सिलाई कार्य में निपुण हो रही हैं। डाबर कंपनी और इनरव्हील क्लब की ओर से किचन गार्डेन और आयुर्वेदिक गार्डेन को डेवलप कराया गया। जिले का पहला पैड मशीन भी इस स्कूल में लगा। इस कार्य में रोटरी क्लब ने सहयोग किया। विज्ञान क्लब की ओर से इंसीनेटर बनाया गया, इसका इस्तेमाल छात्राएं करती हैं। विधायक सरयू राय की निधि से बेबर्स ब्लॉक बिछवाया गया। शिक्षा विभाग का भी सहयोग सराहनीय रहा। इस स्कूल में छात्राएं मानगो, डिमना, पारडीह, मुखियाडांगा, सोनारी, कदमा आदि से छात्राएं पढऩे आती है। 

बालिका उवि को मिले ये पुरस्कार

  • जिला स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी व इंस्पायर अवार्ड में लगातार यहां की छात्राएं जीत रही पुरस्कार
  • विधिक साक्षरता क्लब की ओर से यहां 600 स्कूल के छात्राओं को हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल ने वीडियों कांफ्रेंसिंग से संबोधित किया। इस कारण स्कूल का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज है। 
  • वर्ष 2018 में पर्यटन पर्व में निबंध व स्लोगन प्रतियोगिता में विद्यालय की छात्राएं अव्वल।
  • जिला स्तरीय व राज्य स्तरीय एथलीट टीम में स्कूल की छात्रा पूजा कुमारी का चयन।
  • मैट्रिक में तीन बार 75 प्रतिशत से अधिक रिजल्ट देने पर शिक्षा विभाग की ओर से मिला सम्मान।

स्लम एरिया में जाकर बच्चों का स्कूल में कराया नामांकन

टाटा वर्कर्स यूनियन (टीडब्ल्यूयू) उच्च विद्यालय कदमा में आठ साल से विज्ञान के शिक्षक नहीं थे। जर्जर भवनों में किसी तरह कक्षाएं होती थी। ऐसे में यहां शिक्षा विभाग ने विज्ञान की शिक्षिका के रूप में शिप्रा को 23 जुलाई 2016 को पदस्थापित किया। किसी तरह विज्ञान की कक्षाएं लेने लगी, लेकिन विज्ञान के प्रैक्टिकल का कोई साधन नहीं था। छात्रों की संख्या कुल 140 थी। इसमें मात्र 40 छात्राएं थी। इस शिक्षिका ने हेडमास्टर अखिलेश्वर कुमार को कई प्रस्ताव दिए। इन प्रस्तावों पर अमल शुरू हुआ। विज्ञान शिक्षिका ने कदमा व रामनगर के स्लम क्षेत्रों में जाकर बच्चों को नामांकन के लिए प्रेरित किया। साइंस लैब की स्थापना की। बच्चे अब स्कूल आने लगे।

अब पढ़ते 320 विद्यार्थी

आज इस विद्यालय में 320 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इसमें 170 छात्राएं हैं। इस शिक्षिका ने स्कूल के पूरे शैक्षणिक माहौल को बदला। कई तरह की गतिविधियों को प्रारंभ किया। इससे छात्रों में दिलचस्पी बढऩे लगी। इस स्कूल के छात्रों ने बाल विज्ञान प्रदर्शनी, इंस्पायर अवार्ड तथा बिरला विज्ञान प्रदर्शनी में यहां के छात्रों ने पुरस्कार जीते। अब इस स्कूल में नया भवन बन गया है। स्मार्ट क्लास प्रारंभ हो गया है। इस शिक्षिका को रोटरी क्लब, इनर व्हील क्लब की ओर सम्मानित किया जा चुका है। 


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