इन जैसे कम ही होते हैं डॉक्टर, मरीजों से फीस तो लेते ही नहीं बल्कि कमाई भी कर देते हैं दान
यह डॉक्टर साहब खुद जमीन पर सोते हैं और कमाई का एक बड़ा हिस्सा गरीबों के नाम दान कर देते हैं।आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को पढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति भी देते हैं।
जमशेदपुर(अमित तिवारी)। यह एक ऐसे डॉक्टर की कहानी है जिसके लिए सेवा ही धर्म है। जिसके कर्तव्य भाव को देख समझा जा सकता है कि क्यों डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया गया है। यह डॉक्टर साहब खुद जमीन पर सोते हैं और कमाई का एक बड़ा हिस्सा गरीबों के नाम दान कर देते हैं।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. शुभोजित बनर्जी थैलेसीमिया रोगियों का खर्च उठाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को पढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति भी देते हैं। स्वामी विवेकानंद को आदर्श माननेवाले डॉ. शुभोजित बनर्जी जमशेदपुर, झारखंड के मर्सी अस्पताल में बतौर शिशु रोग विशेषज्ञ सेवाएं दे रहे हैं।
सेवा के लिए छोड़ दी टेल्को अस्पताल की नौकरी
गरीबों की सेवा के वास्ते 2006 में उन्होंने टाटा मोटर्स द्वारा संचालित टेल्को अस्पताल की अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और मिशनरी के इस अस्पताल में सेवाएं देने लगे। वे यहां अब तक कई ऐसे मरीजों की जान बचा चुके हैं, जिन्हें दूसरे अस्पतालों ने गंभीर और जटिल मामला बताकर रेफर कर दिया था। एक मएक मरीज को तीन प्रजाति के मच्छरों ने एकसाथ काट लिया। मरीज को डेंगू, जापानी इंसेफ्लाइटिस और ब्रेन मलेरिया एकसाथ हो गया। डॉ. शुभोजित ने ही उसकी जान बचाई। इसी तरह, एक मरीज के पूरे शरीर में मवाद भर गया। बचा पाना मुश्किल था। डॉ. शुभोजित ने हार नहीं मानी। उसकी जिंदगी बचा ली। यह मरीज भी कई अस्पतालों से रेफर होकर इनके पास आया था।
दस थेलेसेमिया पीडि़त बच्चों को ले रखा है गोद
डॉ. बनर्जी ने दस थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों को गोद ले रखा है। इलाज से लेकर दवा तक का खर्च खुद वहन करते हैं। वे हर साल पांच नए थैलेसिमिया पीडि़त बच्चों की मदद करते हैं। थैलेसीमिया की दवा मंहगी होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर मरीज दवा नहीं खरीद पाते। ऐसे में उन मरीजों के लिए डॉ. बनर्जी भगवान के समान साबित हो रहे हैं।
जमीन पर चटाई बिछाकर सोते हैं
साधारण जिंदगी जीने वाले डॉ. बनर्जी अब भी जमीन पर चटाई बिछाकर ही सोते हैं। सुबह 4.30 बजे उठते हैं। रात 9.30 बजे सोते हैं। अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों की सेवा पर खर्च करते हैं। हर साल दो जरूरतमंद छात्रों की पढ़ाई का जिम्मा लेते हैं। वे बताते हैं कि हर माह करीब 50 हजार रुपये उन्हें मिलते हैं, इसमें से ही अपना, अपने परिवार का खर्च चलाते हैं और जरूरतमंदों की देखभाल भी करते हैं। सिर्फ यही नहीं, गांवों में बेहतर मेडिकल सुविधा मुहैया कराने के लिए डॉ. बनर्जी खुद ही निरंतर शिविर लगाया करते हैं। ग्र्रामीणों का निशुल्क इलाज करते हैं और दवाएं भी देते हैं। अब उनकी इच्छा गरीब बच्चों के लिए अनाथालय बनाने की है। वे चाहते हैं कि अनाथ बच्चों के बीच ही जिंदगी बसर हो।
अपना-अपना रास्ता...
चिकित्सक का पेशा सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं है। सेवा ही उसका मूल धर्म है। मुझे यह महसूस हुआ तो मैंने अपने लिए एक रास्ता चुन लिया। मुझे इसका संतोष है और मैं खुश हूं तो मेरे फैसले से मेरा परिवार भी खुश है।
-डॉ. शुभोजित बनर्जी, शिशु रोग विशेषज्ञ, मर्सी अस्पताल, जमशेदपुर, झारखंड।