Move to Jagran APP

इतिहास के झरोखे से : तब ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो का था चार्म

जमशेदपुर के बिष्टुपुर बाजार में मुरलीधर स्टूडियो खुलने की कहानी बेहद दिलचस्प है। कोलकाता से घूमने आए जामनगर के महेंद्र रूपारेल को यह शहर इतना भा गया कि यहीं के होकर रह गए।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 04 Sep 2019 07:42 AM (IST)Updated: Wed, 04 Sep 2019 07:42 AM (IST)
इतिहास के झरोखे से : तब ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो का था चार्म
इतिहास के झरोखे से : तब ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो का था चार्म

जमशेदपुर, जेएनएन। स्मार्टफोन के आने से कैमरे का महत्व आज भले ही कम हो गया हो, लेकिन एक समय था जब ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो का ही जबरदस्त चार्म था। जमशेदपुर शहर के बिष्टुपुर में रहने वाले महेंद्र रूपारेल यहां के पुराने फोटोग्राफरों में से एक हैं।

loksabha election banner

बताते हैं कि तब फोटोग्राफर को लोग हुनरमंद और जादूगर मानते थे, क्योंकि वह अपने अनुभव से फोटो में जान डाल देते थे। पर अब ऐसा नहीं होता है। अब तो फोटोशॉप (कंप्यूटर) का जमाना है। कोई भी व्यक्ति मनचाहा इफेक्ट डाल सकता है, भले ही उसे फोटोग्राफी का कोई अनुभव नहीं हो। सिर्फ 18 वर्ष की उम्र में फोटोग्राफी शुरू करने वाले 76 वर्षीय महेंद्र रूपारेल के इस शहर में बसने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। वह गुजरात के जामनगर में रहते थे। वहां से एक दिन कोलकाता चले गए। कोलकाता में करीब 12 साल तक हर तरह की फोटोग्राफी की।

और भा गया जमशेदपुर

वह कहते हैं कि आउटडोर से लेकर मैरेज फंक्शन तक की फोटोग्राफी की। इसी से परिवार का खर्च चल जाता था। वर्ष 1972 की बात है। एक दिन में मन में आया कि जमशेदपुर शहर चला जाए। कोलकाता से नजदीक होने के कारण यहां आया। शहर घूमा तो यह मन को भा गया। इसके बाद इसी शहर में बस जाने की ठान ली। यहां भी फोटोग्राफी शुरू कर दी।
फोटोग्राफी की  हर विधा में किया काम

महेंद्र रूपारेल कहते हैं कि फोटोग्राफी की कोई ऐसी विधा नहीं, जिसमें उन्होंने काम नहीं किया हो। लेकिन एक उसूल आज तक बना कर रखा कि बिन बुलाए कहीं नहीं गया। यही वजह है कि शहर में बड़ा से बड़ा नेता आया, मैं फोटो खींचने नहीं गया। आदरपूर्वक छोटा आदमी भी बुलाया तो गया। यहां इंडस्ट्रियल, मैरेज से लेकर कोर्ट तक की फोटोग्राफी के लिए बुलाया जाता था। महेंद्र रूपारेल बताते हैं कि तब ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो में भी कलाकारी होती थी। लाइट-शेड इफेक्ट से फोटो का स्वरूप बदल जाता था।

डार्क रूम में फोटो करते थे साफ

हम खुद से डार्क रूम में फोटो साफ करते थे। यह भी एक अलग तरह का हुनर है। लगभग छह साल बाद 1978 में बिष्टुपुर बाजार में स्टूडियो खोला, जो आज मुरलीधर स्टूडियो के नाम से चल रहा है। आज फैमिली फोटो खींचने के लिए शायद ही कोई फोटोग्राफर को बुलाता है, लेकिन किसी न किसी रूप में स्टूडियो की उपयोगिता बनी हुई है। आज स्टूडियो का स्वरूप भी बदल गया है। पहले हर काम मैनुअल होता था। अब इलेक्ट्रानिक या कंप्यूटराइज्ड काम ज्यादा हो गया है। उम्मीद है कि भविष्य में भी फोटोग्राफी और स्टूडियो की उपयोगिता किसी न किसी रूप में बनी रहेगी।
 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.