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रसोई प्रबंधन की अनूठी मिसाल : झारखंड के इस कॉलेज में किचेन वेस्ट से जल रहा चूल्हा Jamshedpur News

Kitchen West. मिसेज केएमपीएम वोकेशनल कॉलेज ने एक ऐसे प्रयोग को अमली जामा पहनाया है जिससे ने केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश छिपा है बल्कि रिसाइक्लिंग का अनूठा उदाहरण भी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 05 Jan 2020 12:44 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jan 2020 04:44 PM (IST)
रसोई प्रबंधन की अनूठी मिसाल : झारखंड के इस कॉलेज में  किचेन वेस्ट से जल रहा चूल्हा Jamshedpur News
रसोई प्रबंधन की अनूठी मिसाल : झारखंड के इस कॉलेज में किचेन वेस्ट से जल रहा चूल्हा Jamshedpur News

जमशेदपुर, वेंकटेश्वर राव। Environment protection इस तरह की पहल शैक्षिक संस्थानों से हो तो आम लोगों को जागरूक होते देर नहीं लगेगी। झारखंड के जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित मिसेज केएमपीएम वोकेशनल कॉलेज ने एक ऐसे प्रयोग को अमली जामा पहनाया है जिससे ने केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश छिपा है बल्कि रिसाइक्लिंग का अनूठा उदाहरण भी है। यहां किचेन वेस्ट से उत्पादित होनेवाली ऊर्जा से चूल्हा जलता है। इसी चूल्हे से बने स्नैक्स व अन्य खानपान की चीजें छात्र-छात्राएं और कॉलेज परिवार उपयोग में लाता है। 

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आमतौर पर किचन से निकलनेवाले कचरे (किचन वेस्ट) को यूं ही फेंक दिया जाता है वह न केवल ऊर्जा का स्रोत है बल्कि इसकी रिसाइक्लिंग कर पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल सकती है।  बिष्टुपुर स्थित केएमपीएम वोकेशनल कॉलेज प्रबंधन अपने यहां किचन वेस्ट से रसोई प्रबंधन कर रहा है। इस वेस्ट से यहां गैस चूल्हा जलता है तथा आवश्यक चाय, पकड़ो, समोसा एवं अन्य खाद्य सामग्रियां बनाई जा रही है। कोल्हान विश्वविद्यालय में इस तरह का प्रयोग करने वाला यह पहला कॉलेज है। इसकी सराहना राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की टीम भी कर चुकी है। 

पहले स्थापित किया गया बायो गैस प्लांट

इसके लिए बायो गैस प्लांट बहुत ही कम लागत में स्थापित किया गया है। इसमें 35 लीटर की एक पानी की टंकी तथा कुछ पाइपों का इस्तेमाल किया गया है। इस टंकी को गोबर व पानी का मिश्रण डाल 45 दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके सडऩे के बाद इससे कार्बन डॉयआक्साइड गैस सबसे पहले बनती है।

45 दिन बाद डाला जाता है किचन वेस्ट

कॉर्बन डॉयक्साइड गैस को बाहर निकाले जाने के बाद इसी प्लांट में किचन वेस्ट डालने के लिए अलग से एक डब्बा तैयार किया गया है। इस डब्बे में किचन वेस्ट डाला जाता है। किचन वेस्ट में बचा हुआ खाना, हरी सब्जियों के टुकड़े, बेकार आलू सहित कई सामग्रियों का डाला जाता है। इसमें नींबू, प्याज का छिलका व आचार डालने की मनाही है। यह किचन वेस्ट धीरे-धीरे सडऩे के साथ मिथेन गैस का उत्सर्जन करना शुरू करता है। इस गैस की पाइप को कॉलेज कैंटीन के गैस चूल्हे से पाइप के माध्यम से जोड़ दिया गया है। चूल्हा आराम से जलता है। इसके बाद कई पदार्थ की खाद्य सामग्रियों का निर्माण होता है। 

घरों में भी हो सकता है इसका प्रयोग

केएमपीएम वोकेशनल कॉलेज की प्रिंसिपल मीता जखनवाल ने बताया कि कॉलेज में यह प्रयोग सफल है। इसका इस्तेमाल लोग अपने घरों में कर सकते हैं। बस उन्हें छोटा सा बायो गैस प्लांट बैठाने की जरूरत है। घरों एवं अगल-बगल के किचन वेस्ट से लोगों के घरों का गैस चूल्हा जल सकता है। इससे वायु प्रदूषण भी कम करने में लोग अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं। 

उर्वरक का काम करता है प्लांट का कचरा

बायो गैस प्लांट से भी कचरा निकलता है। इस कचरे का उपयोग फर्टिलाइजर के रूप में किया जाता है। केएमपीएम कॉलेज प्रबंधन इस कचरे को पेड़ पौधों में डालता है, इससे पेड़ पौधे अच्छी तरीके से विकसित हो रहे है। 

  • कॉलेज के इनवायरमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट विभाग के छात्रों के प्रयास से इसे विकसित किया गया, जो आज कॉलेज की पहचान बन चुकी है। हमारा कॉलेज शहर के लिए मार्गदर्शन का कार्य कर रहा है। इस तरह का प्रयोग सभी कॉलेजों को अपनाया जाना चाहिए।

 

  • माला मन्ध्यान, आइक्यूएसी कोर्डिनेटर सह विभागाध्यक्ष इनवायरमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट।

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