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टाटा-बाटा की लोकोक्ति बड़ी मशहूर, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विदेशी ब्रांड है बाटा

टाटा व बाटा का नाम तो आपने सुना ही होगा। दोनों ही कंपनियां सौ साल पुरानी है। टाटा तो भारतीय औद्योगिक समूह है लेकिन क्या आपको पता है कि बाटा विदेशी ब्रांड है। देश की सबसे पहली जूते व चप्पल की कंपनी के बारे में पढ़िए रोचक कहानी...

By Jitendra SinghEdited By: Published: Tue, 24 Aug 2021 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 24 Aug 2021 06:40 PM (IST)
टाटा-बाटा की लोकोक्ति बड़ी मशहूर, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विदेशी ब्रांड है बाटा
बहुत कम लोग जानते हैं कि विदेशी ब्रांड है बाटा

जमशेदपुर, जासं। अपने देश में टाटा-बाटा को लोकोक्ति के रूप में सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि बाटा विदेशी ब्रांड है। आमतौर पर लोग यही समझते हैं कि टाटा की तरह बाटा भी स्वदेशी ब्रांड है। दरअसल, चेकोस्लोवाकिया के कारोबारी थॉमस बाटा 1925 में भारत आए थे। वह अपनी जूता कंपनी के लिए यहां से रबर और चमड़ा खरीदने आए थे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कोलकाता में अधिकतर लोग बिना चप्पल-जूते के चलते हैं, तो उन्होंने यहीं जूता कंपनी खोलने का मन बना लिया।

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1894 में दो सिलाई मशीन से शुरू किया था कारोबार

बाटा ने 1931 में कोलकाता के कोननगर में खोली थी, जो बाद में बाटानगर के नाम से मशहूर हाे गई। भारत में बाटा को आए 90 साल हो गए हैं। भारत के जूता बाजार में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ आज भी यह नंबर वन कंपनी है।चेकोस्लोवाकिया में थॉमस बाटा का परिवार बहुत अमीर नहीं था, बल्कि उन्हें जीने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। इसी बीच उन्होंने वहां 1894 में दो सिलाई मशीन से इस कारोबार की शुरुआत की थी। पहले बहन एना और भाई एंटोनिन को मनाया, फिर मां को राजी किया।

इसके बाद उनसे 320 डॅालर कर्ज के रूप में लिए और अपने गांव के दो कमरे में जूता बनाना शुरू किया था। इसके बाद तो उनकी गाड़ी चल निकली। 1909 तक जूतों का निर्यात भी शुरू कर दिया। हालांकि उन्हें प्रथम विश्वयुद्ध में आर्थिक मंदी का भी शिकार होना पड़ा, लेकिन फिर स्थिति सुधरने लगी। जब जूतों की मांग घट गई तो उन्होंने जूतों की कीमत भी लगभग आधी कर दी। 1926-28 के दौरान बाटा के कर्मचारी 35 प्रतिशत बढ़ गए और थॉमस बाटा चेकोस्लोवाकिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए।

भारत में भी किया विस्तार

बाटा ने कोलकाता में 1931 में पहली फैक्ट्री खोल ली थी, लेकिन इसके बाद इसका विस्तार भी करते चले गए। बिहार में पटना के पास बाटागंज के बाद फरीदाबाद (हरियाणा), पिनया (कर्नाटक) और होसुर (तमिलनाडु) समेत पांच फैक्ट्री खोली। बाटा आज भी भारत को केंद्र में रखकर पूरी दुनिया में जूते-चप्पल बेच रही है। 1939 तक भारत में बाटा की 86 दुकानें थीं। 1952 में कंपनी ने चर्मशिल्प शोध के लिए पटना के पास मोकामा में टैनरी शुरू किया था। 1972 में कंपनी ने 6.7 करोड़ डॉलर निवेश किया और जूते के साथ-साथ जूता सिलने वाली मशीनों का निर्यात भी करने लगी। \

कोरोना से हुआ घाटा

बाटा के लिए भारत शीर्ष तीन सबसे अधिक कमाई वाला देश है, लेकिन कोरोना की वजह से मार्च 2021 तक इसकी कमाई घटकर 1539 करोड़ रुपये हो गई। इससे पहले मार्च 2020 में इसकी वार्षिक आय 3156 करोड़ रुपये थी। हालांकि महामारी के बावजूद कंपनी लगातार नए स्टोर खोलने की योजना पर काम कर रही है।


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