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Swatantrata Ke Sarthi : संविधान और देश प्रेम की ऐसी लागी लगन कि हो गए भारतीय

Swatantrata Ke Sarthi. लोकतंत्र व संविधान की मर्यादा भंग होते देखकर इनके अंदर जब आग धधकती है तो ये उपायुक्त कार्यालय के सामने धरने पर बैठ जाते हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 03:21 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 03:21 PM (IST)
Swatantrata Ke Sarthi : संविधान और देश प्रेम की ऐसी लागी लगन कि हो गए भारतीय
Swatantrata Ke Sarthi : संविधान और देश प्रेम की ऐसी लागी लगन कि हो गए भारतीय

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। Swatantrata Ke Sarthi टाइपिंग की दुकान चलाने वाले शख्स केदारनाथ भारतीय को देखकर कोई नहीं कह सकता कि इनके दिल और जीवन में सिर्फ देशभक्ति है। लोकतंत्र व संविधान की मर्यादा भंग होते देखकर इनके अंदर जब आग धधकती है तो ये उपायुक्त कार्यालय के सामने धरने पर बैठ जाते हैं या साइकिल पर तख्ती टांगकर सड़क पर चक्कर लगाते हैं। अकेले दम पर किसी मुद्दे को उठाने और उसे अंजाम तक पहुंचाने वाले इस शख्स के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।

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जमशेदपुर को-आपरेटिव कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल करने वाले केदारनाथ का जन्म बिहार के भागलपुर में हुआ था। पिता टाटा स्टील में नौकरी करते थे, लिहाजा तीन वर्ष की उम्र में बेहतर पालन- पोषण व शिक्षा के लिए मां के साथ जमशेदपुर आ गए। जनता विद्यालय मानगो से प्राथमिक शिक्षा के बाद हाईस्कूल की पढ़ाई साकची स्थित राजस्थान विद्या मंदिर से की। वर्ष 1997 में मैट्रिक करने के बाद मानगो में ही आरएसएस की शाखा में जाने लगे।

 इस तरह मिली प्रेरणा

शाखा छोड़ने के बाद अकेले ही राष्ट्रीयता की अलख जगाने का प्रण लिया। करीब आठ वर्ष पूर्व इन्होंने किसी नेता का भाषण सुना था, जिसका सार था कि देश में हर काम संविधान के दायरे में होता है। उसी समय इन्होंने अपना उपनाम मालाकार से बदलकर भारतीय कर लिया। केदारनाथ भारतीय बताते हैं कि इस दौरान कई छोटे मुद्दे उठाए, लेकिन अब तक की दो बड़ी उपलब्धि तिरंगा गुटखा बंद कराना और ई-स्टांप शुरू कराना है। कहते हैं कि तिरंगा गुटखा के रैपर नाली व सड़क पर बिखरे रहते थे। लोग पैर से कुचलते थे, जबकि उस पर राष्ट्रध्वज का निशान था। करीब छह साल पहले कूड़े के ढेर में बिखरे हजारों रैपर देखे। मन कचोट गया। इस गुटखा को बंद कराने के लिए उपायुक्त कार्यालय के सामने धरने पर बैठे। डीसी से लेकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक को ज्ञापन दिया। जब चारों ओर से दबाव पड़ने लगा तो एक दिन उनके पास गुटखा कंपनी का पत्र आया। उसमें लिखा था कि आप बेवजह आंदोलन कर रहे हैं। कानपुर आ जाएं, आपको जो चाहिए, मिल जाएगा। केदार बताते हैं कि उन्हें पत्र पढ़कर काफी गुस्सा आया। तत्काल उस पत्र को संलग्न करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को शिकायती पत्र भेज दिया। करीब दो-तीन माह बाद फैसला आया और वह गुटखा बंद हो गया। इसी तरह स्टांप पेपर की किल्लत और कालाबाजारी बंद कराने की ठानी तो ई-स्टाम्प की सुविधा शुरू हो गई। अब जाकर काफी सुकून मिला।

अगला लक्ष्य

अगला कदम तिरंगे के ध्वज स्तंभ को एकरंगा बनवाना है। आमतौर पर लोग ध्यान नहीं देते हैं कि राष्ट्रध्वज फहराने के लिए सीमेंट का जो ध्वज स्तंभ बनाया जाता है, उसकी सीढ़ियों को भी राष्ट्रध्वज के रंग में रंग देते हैं। झंडा फहराने या उतारने के लिए लोग उस स्तंभ पर चढ़ते हैं। यह तिरंगे का अपमान नहीं, तो क्या है। जहां स्तंभ नहीं होता, वहां लोग झंडे के चारों ओर रंगोली से तिरंगा घेरा बना देते हैं, यह भी गलत है। इसके खिलाफ कानून बनवाना उनका उद्देश्य है।

केदारनाथ भारतीय


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