चुनाव हुआ भी तो क्या प्रबंधन देगी मान्यता
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : सुप्रीम कोर्ट के आदेश और झारखंड हाईकोर्ट में यदि लेटर पे
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : सुप्रीम कोर्ट के आदेश और झारखंड हाईकोर्ट में यदि लेटर पेटेंट्स अपील (एलपीए) का निपटारा होने के बावजूद टेल्को वर्कर्स यूनियन में चुनाव हुआ तो क्या टाटा मोटर्स प्रबंधन उक्त यूनियन को मान्यता देगा? वर्तमान में यह सवाल सभी कर्मचारियों के मन में घुमड़ रहा है।
टेल्को वर्कर्स यूनियन अगस्त 2015 में हुए चुनाव के बाद अक्सर विवादों में घिरी रही। कभी सदस्यों के बीच आपसी विवाद, तो कभी कार्यालय में बैठने का अधिकार तो कभी जातिवाद का मामला हमेशा मजदूर हित पर भारी पड़ा। इस विवाद के कारण प्रबंधन ने भी टीएमएल ड्राइव लाइन यूनियन नेतृत्व को वार्ता के लिए आगे बढ़ाते हुए उन्हें मान्यता दी। वहीं, निबंधन रद्द होने के बाद से टेल्को यूनियन रसातल पर पहुंच चुकी है।
ऐसे में झारखंड हाईकोर्ट में लंबित एलपीए 455/ 2017 का मामला यदि सुलझ भी जाता है तो भी नई कार्यकारिणी की राह आसान नहीं होगी? क्योंकि कंपनी के टीएसआरडीएसहै। ऐसे में टेल्को से बड़ी अब टाटा मोटर्स यूनियन हो चुकी है। हालांकि लौहनगरी में यह तीन उदाहरण हमारे सामने है जहां चुनाव बाद भी उक्त कार्यकारिणी को प्रबंधन ने मान्यता नहीं दी है।
ये तीन मामले हैं उदाहरण ::
केस वन - टायो रोल्स : 90 के दशक में टायो रोल्स में चुनाव हुआ था। सूर्य नारायण उर्फ एसएन सिंह की टीम चुनाव जीतकर सत्ता में आई, लेकिन कंपनी प्रबंधन ने कर्मचारियों द्वारा चुनी हुई यूनियन को मान्यता नहीं दी। मामला पहले श्रम विभाग और फिर कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन सारी सुनवाई और कोर्ट के आदेश के बावजूद श्रम कानून का उल्लघंन हुआ। प्रबंधन ने एसएन सिंह के स्थान पर राकेश्वर पांडेय की यूनियन को मान्यता दी।
केस टू - टीएसआरडीएस यूनियन : टाटा स्टील रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी (टीएसआरडीएस) वर्कर्स यूनियन में टाटा वर्कर्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष पीएन सिंह अध्यक्ष थे, लेकिन इनके सेवानिवृत्त होते ही टाटा स्टील प्रबंधन ने इनके स्थान पर राकेश्वर पांडेय की यूनियन को मान्यता दे दी। इस मामले की शिकायत श्रम विभाग से भी की गई, लेकिन पीएन सिंह एंड टीम को कोई राहत नहीं मिली।
केस थ्री : टाटा पिगमेंट : टाटा पिग्मेंट यूनियन में 2 जून 2017 को चुनाव हुआ। लगभग 120 सदस्यों वाली इस यूनियन में कर्मचारियों ने राकेश्वर पांडेय के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया। वहीं, उनके स्थान पर टाटा वर्कर्स यूनियन के निवर्तमान उपाध्यक्ष अरविंद पांडेय को अपना नया अध्यक्ष चुन लिया, लेकिन इसके बावजूद प्रबंधन ने नई यूनियन को मान्यता नहीं दी। अरविंद पांडेय को इस मामले में शो-कॉज तक झेलना पड़ा। अंतत: प्रबंधन ने अरविंद पांडेय को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कंपनी की नई कार्यकारिणी को कर्मचारी हित में समझौता करने का अधिकार दिया।
विशेषज्ञ की राय :: यदि कोई कंपनी प्रबंधन नियम-कानून को मानती है तो उन्हें कोर्ट के आदेश से हुए चुनाव और चुनी हुई नई कार्यकारिणी को जरूर मान्यता देनी चाहिए, लेकिन एक कहावत है कि कानून का डर सिर्फ कानून का अनुपालन करने वालों के ऊपर ही प्रभावी होता है। नहीं मानने वालों के लिए कोई कानून नहीं है। इसलिए टेल्को यूनियन में चुनाव हुए तो यह प्रबंधन का विशेषाधिकार होता है कि वे किस यूनियन के साथ मजदूर हित के मुद्दों पर वार्ता करना चाहती है, लेकिन यहां सर्वविदित है कि शहर की अधिकतर यूनियन प्रबंधन द्वारा ही संचालित है।
-एसएन सिंह, पूर्व महामंत्री, टायो वर्कर्स यूनियन