शिक्षण और शोध परस्पर पूरक : डॉ. पीके पाणि Jamshedpur News
FACULTY DEVELOPMENT PROGRAME शोध के नए आयाम डिजिटल नवाचारी गतिविधियों से अवगत कराते हुए नई शिक्षण व अधिगम प्रविधियों की जानकारी दी गई।
जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। FACULTY DEVELOPMENT PROGRAME जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में संकाय विकास कार्यक्रम के दूसरे दिन बुधवार को उत्तर आधुनिकतावादी विमर्श तो शोध के नए आयामों को प्रस्तुत किया गया। मौजूद शिक्षकों को डिजिटल नवाचारी गतिविधियों से जहां अवगत कराया गया तो नई शिक्षण व अधिगम प्रविधियों की जानकारी दी गई। पुरानी व वर्तमान शिक्षा पद़धति का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया। वहीं उच्च शिक्षा में पश्चिमी संस्कृति के दुष्प्रभाव की भी चर्चा की गई।
डॉ एसके सिन्हा ने बताए शोध के उभरते आयाम, बोले डॉ पीके पाणि- शिक्षक को अद्यतन होना ही होगा
का आज दूसरा दिन था। पहले सत्र में स्रोतविद् के रुप में कोल्हान विश्वविद्यालय के पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष और अंग्रेजी के प्राध्यापक डॉ एस के सिन्हा मौजूद थे। उन्होंने उत्तर आधुनिकतावादी विमर्श के दौर में सबाल्टर्न चिंतन तथा शोध के नये उभरते आयामों पर बातें रखीं।
दूसरे और तीसरे सत्र के स्रोतविद् कोल्हान विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ पी के पाणि ने उच्च शिक्षा में होने वाली डिजिटल नवाचारी गतिविधियों से शिक्षक प्रतिभागियों को परिचित कराया। स्वयं और मूक्स जैसी नयी शिक्षण और अधिगम प्रविधियों की विस्तृत जानकारी दी। इसी क्रम में उन्होंने शोध प्रविधि के नए आयामों के बारे में भी जानकारी दी और कहा कि शिक्षण और शोध परस्पर पूरक हैं। शिक्षक को अद्यतन होना ही होगा।
मनुष्योचित गुणों को समाप्त कर मनुष्य को मशीन बना रही वर्तमान शिक्षा पद़धति : प्रो सत्य चैतन्य
चौथे सत्र में एक्सएलआरआई के विजिटिंग प्रोफेसर सत्य चैतन्य ने ज्ञान के अन-औपनिवेशिकरण की दिशा में भारतीय आधारों की चर्चा की। उन्होंने प्राचीन गुरुकुल पद्धति में विद्यार्थी की योग्यता के अनुसार उसके शिक्षण-प्रशिक्षण की तार्किकता को उदाहरणों के साथ समझाया।
उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा पद्धति मनुष्य के अंदर जो कुछ भी मनुष्योचित है, उसे ही समाप्त करके मशीन में बदल रही है। भारतीय उपनिषद् और भारतीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति में सीखने वाले को सबसे पहले मनुष्य के रूप में विकसित किया जाता था। आज हमारे समाज में हो रहे तमाम तरह के अत्याचार व भ्रष्टाचार शिक्षण में घुन की तरह लगी पश्चिमी संस्कृति के चलते ही हैं। श्रवण, मनन और निदिध्यास शब्दमात्र नहीं हैं बल्कि आज के समय के अनुसार के प्रभावशाली शिक्षण और अधिगम की विश्वसनीय मनोवैज्ञानिक पद्धति है।
उद्देश्यों को पूर्णता की ओर ले जा रहा संकाय विकास कार्यक्रम : डॉ नूतन चंद्रा
प्राचार्या डॉ नूतन चंद्रा ने बताया सभी सत्र बेहद प्रभावशाली रहे। स्रोतविद् और प्रतिभागी शिक्षकों के बीच सकारात्मक संवाद भी हुए। यह संकाय विकास कार्यक्रम अपने उद्देश्यों की तरफ पूरी दृढ़ता के साथ बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि 6 तारीख को इस कार्यक्रम का तीसरा दिन है।
इसमें कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉक्टर ए के झा, एक्सएलआरआई के फैकल्टी फादर मुक्ति और सिनेमा तथा संस्कृति चिंतक अमिताभ घोष का व्याख्यान होगा। कार्यक्रम के सफल संयोजन में समन्वयक डॉ काकोली बसाक, डॉ सुधीर कुमार साहू, डॉ मनीषा टाईटस, सोनाली सिंह व अविनाश कुमार सिंह लगातार जुड़े हुए हैं।