स्नातक-स्नातकोत्तर परीक्षा सितंबर में अनिवार्य करने के खिलाफ शिक्षक गोलबंद, 29 को ऑनलाइन प्रोटेस्ट Jamshedpur News
शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान समय में कोविड-19 के अत्याधिक संक्रमण को देखते हुए यह निर्णय अव्यावहारिक एवं अवैज्ञानिक है।
जमशेदपुर (जागरण संवाददाता)। विश्वविद़यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में स्नातक-स्नातकोत्तर एवं विभिन्न पाठ्यक्रमों के अंतिम सत्र के परीक्षार्थियों को सितंबर में परीक्षा देना अनिवार्य किया गया है। विगत 6 जुलाई को जारी यूजीसी के इस फरमान के खिलाफ शिक्षक गोलबंद हो रहे हैं।
अखिल भारतीय विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (एआईफुक्टो) के राष्ट्रीय सचिव डॉ विजय कुमार पीयूष ने बताया कि यूजीसी की ओर से निर्गत किए गए पत्र के विरोध में देशभर में सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं शिक्षण संस्थानों के शिक्षक 29 जुलाई को ऑनलाइन प्रोटेस्ट करेंगे। इससे संबंधित स्मार पत्र संबंधित कुलपति, कुलाधिपति एवं यूजीसी को प्रेषित किया जाएगा।
कोविड-19 को देखते हुए निर्देश को अव्यावहारिक व अवैज्ञानिक बता रहा संगठन
डॉ पीयूष ने कहा कि शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान समय में कोबिड के अत्याधिक संक्रमण को देखते हुए यह निर्णय अव्यावहारिक एवं अवैज्ञानिक है। यूजीसी का यह मैंडेटरी निर्देश देश के सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू होता है। ज्ञात हो कि छात्रों के अनुपात में संस्थानों में आधारभूत संरचना की कमी है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के महाविद्यालय बहुत से संम्बदध् एवं निजी महाविद्यालयों के पास भवन एवं बेंच तथा डेस्को की नितांत कमी है।
शारीरिक दूरी बनाते हुए परीक्षा संचालित करना संभव नहीं
एआइफुक्टो के राष्ट्रीय सचिव ने कहा कि शारीरिक दूरी बनाकर परीक्षा लेना संभव नहीं है। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन नहीं है तथा दूरस्थ इलाकों में और बारिश के मौसम में टावर संबंधी या नेट ना मिलने की बाधाएं आती रहती हैं। यह भी ध्यातव्य है कि जब तक छात्रों को पृथक् पृथक कंप्यूटर पर बैठा कर परीक्षा ना लिया जाए परीक्षा में कदाचार की आशंका एवं संभावना बनी रहेगी क्योंकि स्मार्टफोन के माध्यम से होने वाली परीक्षा में कोई भी छात्र दूसरे किसी अन्य स्रोत से जानकारी प्राप्त कर परीक्षा में लिख सकता है ।
लॉकडाउन में अपने गांव जा चुके छात्रों को होगी परेशानी
इसके अतिरिक्त विभिन्न विश्वविद्यालयों महाविद्यालयों में दूरस्थ नगरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र आकर पढ़ाई करते हैं तथा छात्रावासों में या किराए पर आवास लेकर रहते हैं। महाविद्यालय तथा छात्रावास बंद है इसलिए वे सभी अपने अपने गांव घर चले गए हैं। अभी उन सबको अपने-अपने घरों सेअपने-अपनेमहाविद्यालय ,विश्वविद्यालय केंद्रों पर जाकर परीक्षा देने में परिवहन ,यात्रा एवं आवासन संबंधी बहुत दिक्कतें आएंगी निजी आवास के मालिक तथा निजी लॉज वाले उन्हें रहने की इजाजत नहीं देंगे।
होटल व लॉज में रहते हुए शारीरिक दूरी के नियम का पालन होना मुश्किल
इसके अतिरिक्त हॉस्टलों में ,लॉज में, किराए के आवासों में क्षमता से अधिक छात्रों का रहना होता है जहां शारीरिक दूरी संभव नहीं है। उदाहरण के लिए -जेएनयू जैसे समृद्ध एवं विकसित विश्व विद्यालय में भी छात्रों को सिंगल रूम एमफिल में पहुंचने के बाद मिलता है और स्नातक एवं स्नातकोत्तर के छात्र को संयुक्त रूम आवंटित किया जाता है। ऐसे में अन्य विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के छात्रावास की संकल्पना की जा सकती है। इन स्थितियों को देखते हुए यूजीसी का यह मैंडेटरी निर्णय --'सभी संस्थान अंतिम वर्ष के छात्रों का अनिवार्य रूप से सितंबर में परीक्षा ले लें।' अव्यावहारिक, अवैज्ञानिक तथा कोविड-19 को कम्युनिटी ट्रांसफर में बदलने में सहायक सिद्ध होगा और न सिर्फ छात्र ,शिक्षक ,कर्मचारी बल्कि उनके परिवार के लोगों पर भी संक्रमण का खतरा मंडराने लगेगा ।
अपनी अधिसूचना वापस ले यूजीसी, वैकल्पिक उपायों पर हो विचार
टाकू के साथियों के साथ विरोध प्रदर्शित करते विजय कुमार पीयूष व अन्य शिक्षक
डॉ विजय कुमार पीयूष ने कहा कि शिक्षकों की यह अपील है कि यूजीसी अपने इस अधिसूचना को वापस ले और छात्रों को डिग्री देने का कोई अन्य वैकल्पिक तरीका अपनाने की पहल करें । इस संबंध में झारखंड राज्य विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय शिक्षक संघ (फुटाज), कोल्हान विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (टाकू ) तथा राज्य के अन्य विश्व विद्यालय के शिक्षक संघों ने भी निर्णय लिया है कि वह कल 29 जुलाई को 'ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे' में भागीदारी निभाएंगे।