टॉप बॉक्स टाटा स्टील ने पूरे किए स्थापना के 113 साल
पिता के सपनों को सच करने के लिए सर दोराबजी टाटा ने बैलगाड़ी में सवार होकर मध्य भारत में लौह अयस्क की तलाश की थी।
जासं, जमशेदपुर : कोई राष्ट्र यदि लोहे पर नियंत्रण हासिल कर लेता है तो वह जल्द ही सोने पर भी नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। ब्रिटिश इतिहासकार थॉमस कर्लाइल के इस कथन को सच करने और अपने पिता जेएन टाटा की सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए सर दोराबजी टाटा ने 26 अगस्त 1907 में जमशेदपुर के साकची में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी की नींव रखी। बुधवार को कंपनी स्थापना के 113 वर्ष पूरा कर रही है।
पिता के सपनों को सच करने के लिए सर दोराबजी टाटा ने बैलगाड़ी में सवार होकर मध्य भारत में लौह अयस्क की तलाश की थी। इस काम में पीएन बोस ने भी उनकी मदद की। जिन्होंने सर दोराबजी टाटा का पत्र मिलने के बाद मयूरभंज में लौह अयस्क भंडार की खोज की। इसके बाद ही जमशेदपुर के साकची में टाटा स्टील प्लांट की नींव रखी गई और देश में भी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई।
सर दोराबजी टाटा ने स्टील और पावर को मजबूत कर विजन ऑफ इंडिया को आकार दिया। उन्होंने पूरे देशवासियों को भारत में स्टील प्लांट बनाने की भव्य योजना का हिस्सा बनने की अपील की। पहले स्वदेशी औद्योगिक इकाई का सर दोराबजी टाटा को जबदस्त समर्थन मिला और इसमें 80 हजार भारतीय शामिल हुए। तीन सप्ताह के भीतर सर दोराब ने दो करोड़ 31 लाख 75 हजार रुपये की मूल जमा पूंजी एकत्र कर भारत में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (पूर्व में टिस्को) कंपनी की नींव रखी। वर्ष 1908 में निर्माण शुरू हुआ और 16 फरवरी 1912 में कंपनी से पहला एंगोट आयरन का उत्पादन हुआ।
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25 वर्ष तक थे कंपनी के चेयरमैन
सर दोराबजी टाटा 1907 में स्थापना से वर्ष 1932 तक कंपनी के चेयरमैन रहे। वह श्रमिकों के कल्याण में भी गहरी रुचि रखते थे। वर्ष 1920 में जब हड़ताल हुई तो उन्होंने जमशेदपुर पहुंच कर कर्मचारियों की मांग पूरी की थी।
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कंपनी के लिए गिरवी रख दिए थे पत्नी के जेवर
पहले विश्वयुद्ध के बाद सर दोराबजी कंपनी के विस्तार कार्यक्रम को आगे बढ़ाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को भी गिरवी रख दिया था। इसमें उनका मोती जड़ित टाइपिन और पत्नी का जुबली डायमंड भी शामिल था, जो कोहिनूर हीरा से आकार में दोगुना था। इंपीरियल बैंक ने तब उन्हें इसके लिए एक करोड़ रुपये का व्यक्तिगत ऋण दिया था।
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कल है सर दोराबजी टाटा का जन्मदिन
जेएन टाटा के चार में से सर दोराबजी टाटा सबसे बड़े बेटे थे। जिनका जन्म 27 अगस्त 1859 को हुआ था। अपने पिता की दूर²ष्टि को अमलीजामा पहनाने और देश में लौह अयस्क की खोज के लिए के लिए सर दोराबजी को वर्ष 1910 में नाइट की पदवी मिली। सर दोराब जानते थे कि कंपनी में बनने वाला हर टन स्टील, कंपनी की मिलों में कार्यरत कर्मचारियों, कोलियरीज, माइंस, स्टॉकयार्ड में कार्यरत श्रमिकों की मेहनत का ही नतीजा है। इसलिए उन्होंने आठ घंटे का कार्यदिवस, मातृत्व अवकाश, भविष्य निधि, दुर्घटना मुआवजा, निशुल्क चिकित्सा सुविधा सहित मजदूर हित में कई कल्याणकारी पहल की। सर दोराब ने अपनी सारी संपत्ति मानव कल्याण के लिए ट्रस्ट में दान कर दी। उनकी मदद से ही कैंसर अनुसंधान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस सहित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स की नींव रखी गई। सर दोराबजी टाटा खेल के भी बहुत शौकीन थे। वर्ष 1920 में उन्होंने अपने खर्च पर चार भारतीय एथलीट और दो पहलवानों को ओलंपिक भेजा। तब भारत में कोई ओलंपिक संघ नहीं था। उनकी पहल का ही नतीजा था कि भारत में इंडियन ओलपिक एसोसिएशन की नींव रखी गई। वे उसके अध्यक्ष बने। 1924 में उन्होंने भारतीय ओलंपिक टीम को वित्तीय मदद की। सर दोराबजी टाटा के दूरगामी सोच का ही नतीजा है कि 15 हजार एकड़ में फैले जमशेदपुर शहर का प्रबंधन टाटा स्टील कर रही है।