टाटा संस के चेयरमैन से टाटा के लोगों आठ उम्मीदें
jamshedpur. टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन संस्थापक दिवस समारोह में शामिल होने के लिए जमशेदपुर आ रहे हैं। ये रही उनसे टाटा की उम्मीदें।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन संस्थापक दिवस समारोह में शामिल होने के लिए जमशेदपुर आ रहे हैं। उनसे जमशेदपुर के लोगों को कई उम्मीदें हैं। उम्मीद है कि टाटानगर की जीवनशैली को और समृद्ध बनाने में टाटा संस के चेयरमैन अहम भूमिका निभाएंगे। किसी को नौकरी की आस है तो कोई घर के सपने संजोए हुए है। उम्मीद भरी निगाहें तीन मार्च को उनपर टकटकी लगाए होंगी। प्रस्तुत है टाटा के लोगों की चेयरमैन से बंधी उन आठ उम्मीदों पर केंद्रित रिपोर्ट।
ये है उम्मीदें
नियोजन का रास्ता खुले : टाटा स्टील में बहाली पिछले कुछ वर्षो से बंद है। टाटा स्टील में लगभग 15 हजार निबंधित कर्मचारी पुत्र हैं, जो आज भी रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। निबंधित कर्मचारी पुत्रों की मांग है कि टाटा मोटर्स की तर्ज पर टाटा स्टील में भी बाइसिक्स की तरह नियोजन का रास्ता खुले, ताकि हर साल 200-300 की कंपनी में सीधी बहाली हो सके। टाटा स्टील में बड़ी संख्या में ठेका कर्मचारी कार्यरत हैं। ऐसे में कर्मचारी पुत्रों की मांग है कि उन्हें प्रशिक्षण देकर कंपनी में नियोजित किया जाए।
शहर में बने ईस्टर्न कारीडोर
टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टीएसपीडीएल, टाटा ब्लूस्कोप सहित कई अनुषंगी इकाइयों से हर दिन हजारों ट्रकों की आवाजाही होती है। पूर्व में टाटा स्टील ने शहर में खासमहल से एनएच-33 तक फ्लाईओवर के रूप में ईस्टर्न कारीडोर बनाने की बात कही थी। बाद में यह प्रोजेक्ट टाटा स्टील और झारखंड सरकार के संयुक्त प्रयास से बनने की बात हुई थी। लेकिन फंड के अभाव में यह योजना खटाई में पड़ गई। अगर चेयरमैन फिर से ईस्टर्न कारीडोर की दिशा में पहल करें तो शायद दुर्घटना में मरने वालों की संख्या कम हो जाए।
टायो कंपनी दोबारा खुले
टाटा स्टील की अनुषंगी इकाई, टायो रोल्स लिमिटेड करीब तीन साल से बंद है। कंपनी बंद होने के कारण सैकड़ों स्थायी मजदूर और अप्रत्यक्ष रूप से टायो से जुड़े हजारों ठेका कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं। टायो संघर्ष समिति भी चेयरमैन से मांग करती आ रही है कि टायो रोल्स फिर से खुले। यदि ऐसा संभव नहीं हो, तो उक्त स्थान पर नई तकनीक के साथ दूसरी कंपनी लगे, ताकि सैकड़ों परिवार फिर से आबाद हो सकें।
इंकैब के अधिग्रहण का रास्ता साफ हो
केबल वायर बनाने वाली विश्वस्तरीय कंपनी इंकैब आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट सहित आयफर और बायफर ने इंकैब को फिर से पुर्नजीवित करने के लिए टाटा स्टील को बेस्ट बिडर मान चुकी है। लेकिन कुछ कानूनी पचड़ों के कारण मामला आज भी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में लंबित है। ऐसे में इंकैब से जुड़े सैकड़ों कर्मचारी की यहीं मांग है कि कंपनी का जल्द से जल्द पुर्नजीवित किया जाए। टाटा स्टील के अधिग्रहण का रास्ता साफ हो ताकि इंकैब और केबल टाउन का क्षेत्र फिर से गुलजार हो सके।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिवार को भी मिले मेडिकल की सुविधा
टाटा स्टील में एनएस ग्रेड में कार्यरत कर्मचारी के परिवार सहित टाटा मोटर्स से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को आजीवन मेडिकल की सुविधा मिले। यह मांग काफी समय से लंबित है। इस नीतिगत फैसले में अगर मुहर लगी तो लाखों लोग इससे लाभान्वित होंगे। सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कहना है कि रिटायरमेंट के बाद मेडिकल सुविधाओं की सबसे ज्यादा जरूरत होती है लेकिन उन्हें मेडिक्लेम द्वारा इसकी सुविधा मिलती है। क्योंकि जनता जानती है कि टाटा समूह अपने मुनाफे का 60 प्रतिशत से ज्यादा राशि समाज कल्याण और देश की प्रगति पर खर्च करती है।
नए शिक्षण संस्थान की स्थापना हो
एक्सएलआरआइ, एनआइटी जमशेदपुर की तरह शहर में नए शिक्षण संस्थान की स्थापना हो ताकि शिक्षा को लेकर प्रतिवर्ष जो बच्चे पलायन करते हैं और कैम्पस के बाद दूसरे शहरों या कंपनी को अपनी सेवाएं देते हैं। वो रूके, मणिपाल मेडिकल कॉलेज का मामला आज भी लंबित है। ऐसे में जमशेदपुर में मेडिकल कॉलेज, पॉलिटेक्नीक कॉलेज, इंजीनिय¨रग कॉलेज का निर्माण हो और शहर से होने वाले प्रतिभाओं का पलायन रूके।
एनएच-33 का सफर हो आसान
जमशेदपुर की लाइफ लाइन एनएच-33 बदहाल है। कई बार नेशनल हाइवे को चकाचक करने के लिए टेंडर हुए लेकिन व्यवस्था आज तक दुरूस्त नहीं हुई। जमशेदपुरवासियों से लेकर व्यापारी वर्ग की यह मांग है कि टाटा स्टील जैसी विश्वस्तरीय कंपनी इसमें संज्ञान लें। एनएच-33 का निर्माण कार्य अपने हाथों में ले ताकि कंपनी की तरह राष्ट्रीय राजमार्ग भी विश्वस्तरीय बन सके।
कब पूरा होगा अपने घर का सपना
टाटा स्टील और टाटा मोटर्स में कार्यरत कर्मचारी लंबे समय से अपने घर का सपना संजोए हुए हैं। टाटा वर्कर्स यूनियन और टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन भी कई बार इस विषय को कंपनी प्रबंधन के समक्ष उठा चुके हैं। लेकिन कर्मचारियों का यह सपना आज भी अधूरा है। कर्मचारी चाहते हैं कि अपनी जिंदगी के लगभग दो तिहाई समय जमशेदपुर में बिताने के बाद वे अपना अंतिम समय भी यहीं रहे। लेकिन कर्मचारियों का यह सपना कब पूरा होगा? यह कोई भी बताने को तैयार नहीं है।