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भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी हुई इनके मैनेजमेंट का कायल,जानिए पूरी कहानी

टाटा मोटर्स के मैनेजमेंट ट्रेनिंग सेंटर (एमटीसी ) एवं टेल्को क्लब में मुंबई डब्बावाला ने कार्यशैली एवं कार्य के अनुभवों को साझा किया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 07:00 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 07:00 PM (IST)
भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी हुई इनके मैनेजमेंट का कायल,जानिए पूरी कहानी
भारत की बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी हुई इनके मैनेजमेंट का कायल,जानिए पूरी कहानी

जमशेदपुर(जेएनएन)। जब किसी का काम ही उसकी पहचान बन जाये और दुनिया में नाम हो जाये, तो फिर क्या कहना। कुछ ऐसा ही हुआ है मुंबई मुंबई डब्बावाला के साथ। भारत से लेकर सात समंदर पार तक इनके काम के चर्चे हैं। मुंबई के डब्बा वाला ने अपने काम से ही दुनिया में जो पहचान बनायी है। तभी तो दुनिया की अग्रणी वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स जमशेदपुर ने इन डब्बा वाला की कार्यशैली से प्रभावित होकर इन्हें अपने कर्मियों एवं अधिकारियों को ट्रेनिंग देने के लिए जमशेदपुर आमंत्रित किया।

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 कंपनी के बुलावे पर मुंबई के दो डब्बावाला यहां जमशेदपुर पहुंचे । टाटा मोटर्स के मैनेजमेंट ट्रेनिंग सेंटर (एमटीसी ) एवं टेल्को क्लब में इन्होंने अपनी कार्यशैली एवं कार्य के अनुभवों को सबों के साथ साझा किया। डब्बा वाला के संबोधन, इनके कार्य अनुभवों एवं काम के समर्पण भाव की कहानी सुन सभागार में उपस्थित सबों ने खूब तालियां बजायी। 

डब्बा वाला की कहानी उन्ही की जुबानी

टाटा मोटर्स के कर्मी दीपक कुमार के साथ बिलास महाराज

बिलास महाराज ( मुंबई डब्बा वाला ) ने कहा कि जब हमारे काम की चर्चा सुनकर विदेश की टीम मुंबई आयी तो उनका संबोधन हम सबों को गौरवान्वित किया। टीम के सदस्यों ने कहा कि हम गलतियां ढूंढ़ने आये थे, परंतु आपने इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं रखी है। आप हम सबसे श्रेष्ठ और आगे हैं। सचमुच ऐसा संबोधन हमारा उत्साहवर्धन करता है। काम के प्रति लगन और ईमानदारी के बदौलत हम शून्य त्रुटि में शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल करने में कामयाब हैं।

समय प्रबंध, अनुशासन और जुनून

आगे उन्होंने कहा कि सही समय प्रबंध, अनुशासन, और काम के प्रति जुनून के सहारे हम दो लाख लोगों तक 60 से 70 किलोमीटर की दूरी रोजाना तयकर  निर्धारित समय पर खाना का डब्बा अपने 5 हजार सदस्यों की बदौलत उनतक पहुंचाते हैं। यह काम विगत 1890 ई० से निरंतर जारी है। लोकल ट्रेन में भीड़ हो या ट्राफिक जाम, मौसम खराब हो या हड़ताल, हम अपने लक्ष्य को पाकर ही रहते हैं, और हमारा लक्ष्य होता है सही समय पर सही जगह डब्बे को पहुंचाना।

128 साल का सफर नहीं है आसान

 उन्होंने कहा कि मुंबई डब्बे वाले ने अपनी यह पहचान साल' दो साल में नहीं बनायी है बल्कि इसमें लंबा समय लगा है। आज हम 128 साल का लंबा सफर तय कर चुके हैं।  इन सालों में हमने अपने काम की बदौलत दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हुये हैं। दर्जनों देशों के बड़े संस्थानों के लोग शोध करने से लेकर कार्यशैली को जानने समझने के लिए हमारे बीच आते रहे हैं। इसमें इंग्लैंड के प्रिंस चार्ल्स, वर्जिन एयरवेज के चेयरमैन सर रिचर्ड ब्रांसॉन आदि प्रमुख है। आज हमें काम के बदौलत ही आईएसओ 9000, सिक्स सिग्म गोल्डेन कार्ड से लेकर कई संस्थानों से अनेक पुरस्कार मिले हैं।

पांच सूत्र को रखते ध्यान

 हम मुंबई डब्बे वाले अपने इस प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए 5 सूत्र को स्मरण में रखकर सेवा भाव से काम करते हैं। पांच सूत्र है -कर्म  ही पूजा है,  समय ही धन है , एकता ही शक्ति है, अन्नदान ही महादान है और सेवा करने वाले लोग भगवान की सेवा कर रहे हैं । इसी सोच की बदौलत हम सफलता पूर्वक लक्ष्य को प्राप्त कर रहे हैं। 

वेतन कम पर संतुष्टि ज्यादा

 बिलास महाराज ने कहा कि हमारे काम में वेतन कम है परंतु हमे संतुष्टि है कि हम बड़ा काम कर रहे हैं। हमारे 80 प्रतिशत सदस्य प्रारंभिक शिक्षा ही ग्रहण किये हैं । कॉलेज नहीं गये परंतु हावर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों को भी पढ़ा रहे हैं। ये हमारी बड़ी उपलब्धि है। चर्चित न्यूज चैनल बीबीसी, आजतक, सीएनबीसी,एनडीटीवी, स्टार टीवी, टीवी टूडे,सहारा समय, टीवी टोक्यो आदि हम पर डाक्यूमेंटरी बना चुके हैं। हम पर लोग भरोसा करते हैं, ईमानदारी हमारी पहचान है। हम गलतियों का कोई गुंजाइश ही नहीं रखते हैं। यही कारण है कि आज तक किसी डब्बे वाले पर कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं है।

सिर्फ अपने काम से मतलब

 जमशेदपुर के एक्‍सएलआरआइ में आयोजित कार्यक्रम में रघुनाथ मेगडे

हम किसी के घर जाते हैं डब्बा लाने तो सिर्फ अपने काम से मतलब रखते हैं। अपनी सीमा कभी लांघते नहीं है। आज दुनिया के टॉप टेन में डब्बे वाले का भी नाम है। हम मिलकर गरीबों के लिए रोटी बैंक भी चलाते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र में कई सेवा के कार्य करते हैं।


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