जो दिन-रात थाने में बैठते वे ही हंगामा कराते
अन्वेष अम्बष्ठ, जमशेदपुर : नेता, पुलिस भाई-भाई, फिर क्यों न बवाल भाई। यह बात आजकल चरित
अन्वेष अम्बष्ठ, जमशेदपुर :
नेता, पुलिस भाई-भाई, फिर क्यों न बवाल भाई। यह बात आजकल चरितार्थ हो रही है मानगो में। लोगों में इसकी चर्चा भी है।
जो दिन-रात थाने में और पुलिस अधिकारियों के साथ उठते-बैठते हैं, दरअसल, मानगो मे बवाल के जड़ वहीं हैं। और यह बवाल दिन-ब-दिन बढ़ते ही जा रहा है। पुलिस के वरीय पदाधिकारी भी इस बात से इन्कार नहीं करते। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मानगो बवाल में आरोपियों के नाम हैं, जो राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन से जुड़े हुए हैं। ऐसे नेताओं ने ही बोड़ाम के पोखरिया में छेड़खानी को लेकर हुई आगजनी और राजनगर में हुई हत्या के मामले को तूल दिया।
ऐसे लोगों का थाना, उपायुक्त और एसएसपी कार्यालय तक आना-जाना रहता है। किसी मामले में प्रशासनिक अधिकारी भी इन्हीं से मध्यस्थता भी कराते हैं। ऐसे लोग थाना शांति समिति के सदस्य भी हैं। बवाल वही लोग कराते हैं, जो दिन-रात थाने मे बैठते है और स्वार्थ सिद्धि नहीं होने पर पुलिस के खिलाफ हो जाते हैं। अगर पुलिस ने उनकी बात किसी दलाली में नहीं मानी तो थाने में बैठने वाले लोग मौके की तलाश में लग जाते हैं और मौका मिलते ही जनता को आगे कर ऐसे लोग अपना स्वार्थ सिद्धि में लग जाते हैं। मामला चाहे दो समुदाय के बीच किसी विवाद हो या सांप्रदायिक। किसी भी दुर्घटना के बाद ट्रक फूंकना, थाने पर हमला, सड़क जाम यही नेता ही जनता से करवाते हैं। और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील होने के कारण मानगो का माहौल उग्र रूप धारण कर लेता है। जिसमें सभी अपनी रोटी सेकते हैं।
पुलिस के एक वरीय पदाधिकारी की माने तो मानगो के एमजीएम, उलीडीह, आजादनगर में राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और जमीन दलाल की सक्रियता इतनी बढ़ गई है कि बयां नहीं किया जा सकता। और सारी फसाद की जड़ यहीं लोग हैं। सबका गठजोड़ स्थानीय थाने की पुलिस से भी है।
हर होटल, गली चौराहे, पान गुमटी, राजनीतिक कार्यालयों में इनकी बैठकी होती। हर थाने में इतने दलाल है कि उनके बिना कुछ बात आगे बढ़ ही नहीं सकती। थाने की कमान दलाल संभाले हुए हैं। 'नेता व पुलिस भाई-भाई' के किस्से की जांच की जाए को मानगो में हर विवाद के पीछे कौन है, यह सामने आ जाएगा।