पहली भारतीय महिला पर्वतारोही के मंत्र : एवरेस्ट की तरह होती है जिंदगी, उतार-चढ़ाव से घबराएं नहीं
इसी साल पद्मभूषण से सम्मानित बछेंद्री पाल ने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई बल्कि दर्जनों पर्वतारोहियों को एवरेस्ट की राह दिखाई।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। जिंदगी एवरेस्ट की तरह है। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। लेकिन मुसीबतों से हारने के बजाय चुनौतियों का सामना करना असली खिलाड़ी की पहचान है। यही कहना है पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल का। इसी साल पद्मभूषण से सम्मानित बछेंद्री पाल ने न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि दर्जनों पर्वतारोहियों को एवरेस्ट की राह दिखाई। स्ïवभाव से विनम्र बछेंद्री फिलहाल टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की चेयरमैन हैं।
बछेंद्री पाल कहती हैं कि वक्त की जरुरत है कि भारतीय महिलाएं जीवन में कुछ भी नामुमकिन नहीं है ऐसी सोच रखें। उन्होंने कहा कि इस देश की महिलाओं के साथ यह दिक्कत है कि जब वह पर्वत चढऩे जैसी चुनौतियों का सामना कर रही होती हैं तो वे महसूस करती हैं, ओह, मैं एक महिला हूं और मैं यह नहीं कर सकती। आपको जीने के लिए और लडऩे के लिए यह रवैया छोडऩा होगा।
12वर्ष की उम्र में की पर्वतारोहण की शुरुआत
बछेंद्री ने 12 वर्ष की छोटी उम्र से ही पर्वतारोहण की शुरुआत की थी। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। इसमें बछेंद्री समेत सात महिलाओं व 11 पुरुषों की टीम ने हिस्सा लिया। इस टीम ने 23 मई 1984 को 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर सागरमाथा एवरेस्ट पर भारत का झडा लहराया था। इसी के साथ बछेंद्री पाल एवरेस्ट पर फतेह करने वाली दुनिया की पांचवीं व भारत की पहली महिला बनी।
2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व
उन्होंने 1994 में गंगा नदी में हरिद्वार से कलकत्ता तक 2,500 किमी लंबे नौका अभियान का नेतृत्व भी किया। हिमालय के गलियारे में भूटान, नेपाल, लेह और सियाचिन ग्लेशियर से होते हुए काराकोरम पर्वत श्रृंखला पर समाप्त होने वाला 4,000 किमी लंबा अभियान भी उन्होंने पूरा किया, जिसे इस दुर्गम क्षेत्र में प्रथम महिला अभियान माना जाता है। बछेंद्री पाल उत्तरकाशी की रहने वाली हैं।
माउंट तिब्बा की ट्रैकिंग कर मना महिला दिवस
स्टील ऑफ वीमेन की कुल 21 सदस्यीय टीम मसूरी में माउंट नाग तिब्बा के 10,000 फीट के हिमालयी ट्रैक पर महिला दिवस मनाया। टीम में सेल स्टील प्लांट की 12 और टाटा स्टील से 9 महिलाएं शामिल हैं। यह विशेष कार्यक्रम पद्मभूषण बछेंद्री पाल और प्रेमलता अग्रवाल के अलावा टीएसएएफ प्रशिक्षक मोहन सिंह रावत और अतिथि प्रशिक्षक अमला रावत संचालित कर रहे थे। अभियान के दौरान परिवहन की सुविधा, पौष्टिक शाकाहारी भोजन, ट्रेकिंग उपकरण, होटल और टेंट में आवास जैसी जरूरी सुविधाएं तो रही ही, कार्यक्रम को पूरी तरह से सुरक्षित बनाने के लिए अत्यधिक अनुभवी और क्वालीफाइड फैकल्टी साथ रहे। ट्रैकिंग के उद्देश्य के बारे में बछेंद्री पाल ने कहा कि महिलाओं को अपनी क्षमता का अहसास करने, नेतृत्व व निर्णय लेने के कौशल को विकसित करने का यह एक दुर्लभ अवसर है।