कोई मुझे भाई से मिला दे... रूह कंपा देती है बांग्लादेश से भागकर आए 44 हिंदू परिवारों की कहानी
किसी को बिछड़े भाई तो किसी को चचेरा भाई तो किसी को भांजा से मिलने का मन कर रहा है। भले ही तीन पीढिय़ां गुजर चुकी है लेकिन अपना देश छोडऩे का गम सबके दिल में है।
जमशेदपुर, जासं। Citizenship amendment bil 86 साल की चारूबाला झारखंड के जमशेदपुर के शंकोसाई स्थित अपने घर के बाहर बैठी है। वक्त की सिलवटें उनके चेहरे पर दिख रही हैं। जैसे ही उनसे पूछा गया, दादी, नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पास हो गया, उनकी आंखों में चमक आ गई। बोली- बाबू, बच्चों ने बताया। बेटा, अपनों से बिछड़े 56 साल हो गए। कोई मेरे भाई अमल से मिला दे। जिंदगीभर उसका अहसानमंद रहूंगी। हर दिन उसे याद करती हूं। 1964 की सर्द रात, जब अपनी अस्मिता बचाने को मैं बांग्लादेश से भारत आई तो कभी सोचा भी नहीं था कि अब अपने परिवार से नहीं मिल पाऊंगी।
मानगो के शंकोसाई में ऐसे ही 44 परिवार हैं जो आज भी शरणार्थी का दंश झेल रहे हैं। यहां किसी को बिछड़े भाई, तो किसी को चचेरा भाई तो किसी को भांजा से मिलने का मन कर रहा है। भले ही तीन पीढिय़ां गुजर चुकी है, लेकिन आज भी अपना देश छोडऩे का गम सबको है। शंकोसाई बंगाली कॉलोनी में रहने वाली माधुरी विश्वास, विमला विश्वास ने नागरिकता संशोधन बिल का स्वागत करते हुए कहा कि इसे और पहले हो जाना था, लेकिन मोदी सरकार ने जो एतिहासिक निर्णय लिया, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
1964 में बच्चों की जान बचाने को बांग्लादेश से भागकर आई थी चारूबाला
शंकोसाई बंगाली कॉलोनी में रहने वाली वृद्धा चारूबाला कहती हैं कि वह बांग्लादेश के फरीदपुर की रहने वाली थी। वह बांग्लादेश का नजारा को याद करते हुए कहती हैं कि मैं छोटी थी, 1964 में चारों ओर लूटमार मची थी। दंगा ही दंगा। वह किसी तरह अपने बच्चों के साथ भारत आ गयी। चारूबाला कहती हैं कि मेरे भाई अमल फरीदपुर बांग्लादेश में ही छूट गया। मेरा भाई अब कैसा होगा किस हालत में होगा, देखने को दिल करता है। यदि जीते जी देखने को मौका मिले तो एक बार जरूर देखेंगे।
बांग्लादेश से चंपारण होते हुए शहर पहुंचे थे जीसी सरकार
शंकोसाई बंगाली कॉलोनी निवासी 80 साल के जीसी सरकार कहते हैं कि मैं बांग्लादेश के ढाका के रहने वाला हूं। 21 दिसंबर 1964 को ढाका में दंगा हो गया। उस समय मैं साढ़े तीन साल का था। कुछ लोग हिंदुओं के साथ मारपीट व लूटपाट करने लगे। मैं अपने पिता के साथ माइग्रेशन कर माना कैंप रायपुर पहुंचा। रायपुर से चंपारण व उसके बाद जमशेदपुर आ गए। आज मोदी व शाह की जोड़ी ने हमलोगों के लिए एक बड़ा कदम उठा दिया है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। अब सभी शरणार्थी भारतीय नागरिक के तौर पर जाने जाएंगे।
परिजनों को हर दिन याद करते सपन दास
विमला विश्वास।
शंकोसाई स्थित बंगाली कॉलोनी निवासी 60 साल के सपन दास कहते हैं कि जब 1964 में बांग्लादेश में दंगा हो गया। छह भाई में एक भाई व एक बहन बांग्लादेश में ही रुक गए, बाकि पांच भाई व तीन बहन भारत आ गए। एक भाई बांग्लादेश के कृतिबासा में ही छूट गए। अब वह कहां है किस हालत में हैं, आज तक संपर्क ही नहीं हो पाया। मन तो करता है कि एक बार अपने गांव जाएं, लेकिन अब पहले वाला दिन कहां, न भाई चारा रहा और न परिवार का पता। सपन दास कहते हैं कि भारत की सीमा में 1964 में आए और उन्हें माना कैंप रायपुर छत्तीसगढ़ ले जाया गया। जहां कुछ समय बीताने के बाद उन्हें बिहार के चंपारण ले जाया गया। चंपारण से 1970 में उसे जमशेदपुर के शंकोसाई लाया गया। जहां जमीन के साथ ही घर बनाने के लिए 9000 रुपये तथा व्यापार करने के लिए 5000 रुपये सरकार की ओर से दिया गया था।
79 परिवार को मिली थी जमीन
माधुरी विश्वास।
शंकोसाई बंगाली बस्ती निवासी अंजना दास कहती हैं कि जब वह जमशेदपुर आई तो पहले टाटानगर स्टेशन पर ही रखा गया। टाटानगर स्टेशन से अन्य लोगों के साथ मानगो ओल्ड पुरुलिया रोड स्थित पार्वती टाकीज में ठहराया गया। पार्वती टाकीज में तीन माह बिताने के बाद सरकार ने शंकोसाई में 79 परिवार को जमीन मिली। अंजना ने कहा कि नागरिकता संशोधन बिल बिछड़े परिवार को मिलाने का माध्यम बनेगा। अंजना कहती है कि 1972 में इंदिरा गांधी के कहने पर शरणार्थी आर्डर नंबर 72256 को जतन कर रखे हैं।