Move to Jagran APP

जी हा! यहा मनेगा महिषासुर का शहादत दिवस

भादो माझी, जमशेदपुर : महिषासुर के चरित्र चित्रण का मुद्दा भले ही संसद तक में उठ चुका हो लेकिन

By Edited By: Published: Sat, 08 Oct 2016 02:47 AM (IST)Updated: Sat, 08 Oct 2016 02:47 AM (IST)
जी हा! यहा मनेगा महिषासुर का शहादत दिवस

भादो माझी, जमशेदपुर : महिषासुर के चरित्र चित्रण का मुद्दा भले ही संसद तक में उठ चुका हो लेकिन बावजूद इसके अब तक इसको लेकर एक राय नहीं बन पाई है और शायद बन भी नहीं पाए । इन सबके बीच एक बार फिर से महिषासुर को लेकर सुर मुखर होने लगे हैं। मौका नवरात्र का है। शहर में दुर्गा पूजा पंडाल सज चुके हैं। सड़कों पर पूजा का उल्लास उमड़ने लगा है। इस बीच आदिवासी संगठनों ने एक बार फिर से आदिवासी समाज के लोगों से दुर्गा पूजा के मौके को महिषासुर के शहादत दिवस के रूप में मनाने की अपील कर दी है। एलान तक कर दिया गया है कि दशहरा को आदिवासी समुदाय के लोग अपने पूजनीय पूर्वज महिषासुर एवं रावण के शहादत दिवस के रूप में मनाएंगे। आदिवासी महासभा के युवा जागरुकता शिविर में बाकायदा इस बाबत प्रस्ताव भी पारित किया गया। जमशेदपुर में हुए इस शिविर में आदिवासी महासभा के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय कुजूर, राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णा हांसदा समेत देश के सर्वश्रेष्ठ निजी बिजनेस स्कूल एक्सएलआरआइ जमशेदपुर के प्रोफेसर बेंजामिन बाड़ा उपस्थित थे। शिविर में कहा गया कि महिषासुर आदिवासियों के पूर्वज थे और यहा के मूल निवासियों के वीर राजा थे। दावा किया गया कि झारखंड के चाईबासा में महिषासुर के असल वंशज आज भी हैं, जो अब असुर जनजाति के रुप में पहचाने जाते हैं। असुर जनजाति के लोग तो नवरात्र के नौ दिन मातम तक मनाते हैं।

loksabha election banner

आदिवासी महासभा के प्रशिक्षण शिविर में आदिवासी समाज के लोगों से विभिन्न क्षेत्रों में, खासकर आदिवासी बहुल इलाकों में महिषासुर शहादत दिवस मनाने की अपील की गई। वहीं आदिवासियों को अपने घरों में भी रावण व महिषासुर की साधना करने का सुझाव दिया गया। आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णा हासदा कहते हैं -महासभा के प्रशिक्षण शिविर में आदिवासी युवाओं के समक्ष महिषासुर शहादत दिवस का प्रस्ताव इसलिए लाया गया ताकि हम अपने पूजनीय पूर्वजों की वास्तविक जानकारी नई पीढ़ी तक पहुंचा सकें। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज व वीर राजा खलनायक के तौर पर लिपिबद्ध किए गये हैं। ऐसे कई बार हमारी नई पीढ़ी महिषासुर को लेकर भ्रमित महसूस करती है और उन्हें महिषासुर की वीरता की सही जानकारी नहीं मिल पाती है। हांसदा ने कहा कि महिषासुर हमारे पूर्वज हैं और हम उनके वंशज। उनकी वीरता हमारे लिए पूजनीय है।

गौरतलब है कि इस बार पूर्वी सिंहभूम के अधिकाश आदिवासी बहुल इलाकों में महिषासुर शहादत दिवस की तैयारिया भी की जा रही हैं। शायद इसलिए दुर्गोत्सव, जो जमशेदपुर में लोकोत्सव के रूप में मनाया जाता है, उसमें आदिवासी बहुल इलाकों की भागीदारी अब, खासकर इस बार बहुत कम दिख रही है। सरजमदा के माझी बाबा (ग्राम प्रधान) भुगलु सोरेन कहते हैं -आदिवासी प्रकृति के पूजक हैं, ऐसे में हमें अपनी परंपरा का ख्याल रखना चाहिए। महिषासुर हमारे पूर्वज थे, इसलिए उनकी वीरता को भी याद करना चाहिए। हमें अपनी परंपराओं व मान्यताओं पर श्रद्धा है, लेकिन साथ ही हम दूसरों की मान्यताओं वह श्रद्धा का भी आदर करते हैं। अपनी मान्यताओं के आधार पर दूसरों की श्रद्धा को ठेस पहुंचाने का हमारा कोई इरादा नहीं है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.