गोपाल मैदान में उतरी जन्नत, कश्मीरी पश्मीना के रेशों में लिपटी शाही नजाकत
जमशेदपुर के गोपाल मैदान में झारक्राफ्ट द्वारा आयोजित स्टेट हैंडलूम एक्सपो में भारतीय हस्तशिल्प की अद्भुत प्रदर्शनी लगी है। यहाँ कश्मीरी पश्मीना शॉल, र ...और पढ़ें

बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में एक स्टॉल पर कपड़े देखते ग्राहक।
जासं, जमशेदपुर। दिसंबर की गुलाबी सिहरन के बीच बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान भारतीय हस्तशिल्प के एक विहंगम कैनवास में तब्दील हो चुका है। झारक्राफ्ट के तत्वावधान में 14 दिसंबर तक आयोजित स्टेट हैंडलूम एक्सपो में देश की साझी विरासत का ताना-बाना बुना गया है।
इस महाकुंभ का मुख्य आकर्षण स्टाल संख्या 110 है, जहां जम्मू-कश्मीर की वादियों से आए दस्तकारों ने अपनी सूफियाना कलाकारी को पश्मीना और रेशमी वस्त्रों पर उकेरा है। यहां उपलब्ध उत्पादों की श्रेणी 1,000 रुपये से शुरू होकर 2.50 लाख रुपये तक की है, जो न केवल वस्त्र हैं, बल्कि भारतीय शिल्प का एक जीवंत दस्तावेज हैं।
लौहनगरी की फिजाओं में इन दिनों मिट्टी की खुशबू और रेशम की चमक एक साथ घुल-मिल गई है। झारक्राफ्ट ने गोपाल मैदान को एक ऐसे सांस्कृतिक मंच में परिवर्तित कर दिया है, जहां कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की शिल्पकला एक छत के नीचे अठखेलियां कर रही है।
एक्सपो का उद्देश्य महज वस्त्रों का विपणन नहीं, बल्कि लुप्तप्राय होती हस्तशिल्प की उस समृद्ध परंपरा को पुनर्जीवित करना है, जो मशीनी युग के शोर में कहीं दब सी गई थी।
जहां धागे बोलते हैं खामोश जुबां
मेले में प्रवेश करते ही स्टाल संख्या 110 बरबस ही आगंतुकों को अपनी ओर खींच रहा है। यह स्टाल कश्मीर के नारवारा और राजेकदल, श्रीनगर के उन गुमनाम फनकारों को समर्पित है, जिनकी उंगलियों के पोरों से जादू टपकता है। यहां प्रदर्शित पश्मीना शाल महज ऊनी वस्त्र नहीं, बल्कि बादशाही ठाठ-बाट का प्रतीक हैं।
कारीगरों ने बताया कि एक असली पश्मीना को तैयार करने में महीनों का वक्त लगता है। इस स्टाल पर मौजूद कश्मीरी साड़ियां और शाल पर की गई सोजनी और आरी की बारीक कसीदाकारी (कढ़ाई) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो किसी ने सुई-धागे से कविता लिख दी हो।
इन वस्त्रों की कीमत एक हजार से लेकर ढाई लाख रुपये तक है, जो इनकी दुर्लभता और गुणवत्ता की गवाही देती है। एक्सपो में केवल कश्मीर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत की झलक मिलती है।
तसर की गरिमा और सूरत का सौंदर्य
कोकून से निकले धागों की नैसर्गिक चमक और खुरदुरापन लिए झारखंड का तसर सिल्क अपनी अलग पहचान बना रहा है। यह स्थानीय आदिवासियों के श्रम और सौंदर्यबोध का परिचायक है।
गुजरात के सूरत से आई साड़ियों में आधुनिक डिजाइन और पारंपरिक बुनाई का अद्भुत सम्मिश्रण है, जो महिलाओं को खूब भा रहा है। सलवार सूट से लेकर खादी ग्रामोद्योग के स्टाल पर सूती वस्त्रों की सादगी मन मोह रही है। वहीं, कड़ाके की ठंड को देखते हुए ऊनी कपड़ों और जैकेट की भी विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है।
एक्सपो में खरीदारी करने पहुंचीं सोनारी निवासी अनिता ने कहा, यहां आकर ऐसा लग रहा है कि पूरा भारत सिमट कर जमशेदपुर में आ गया है। कश्मीरी शाल की गर्माहट और डिजाइन वाकई अद्वितीय हैं।
सीधे बुनकरों से खरीदने का मौका
वहीं, साकची के रविंद्र ने बताया, झारक्राफ्ट का यह प्रयास सराहनीय है। हमें असली हस्तशिल्प सीधे बुनकरों से खरीदने का मौका मिल रहा है, जिससे बिचौलियों की भूमिका खत्म होती है।
जिला प्रशासन और झारक्राफ्ट ने संयुक्त रूप से नागरिकों से आह्वान किया है कि वे अधिक से अधिक संख्या में गोपाल मैदान पहुंचें। यह आयोजन स्थानीय और राष्ट्रीय कारीगरों के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में एक यज्ञ के समान है।
जिसमें हर खरीदारी एक आहुति होगी। स्वदेशी वस्त्रों को अपनाकर हम न केवल अपनी परंपरा को सहेजते हैं, बल्कि उन हाथों को भी मजबूत करते हैं जो भारत का निर्माण करते हैं।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।