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शेर की तरह झारखंड के गांवों से गायब होते जा रहे हैं 'जंगल के राजा'

यह झारखंड का सबसे पुराना आदिवासी समुदाय रहा है। इनका जीवन पहाड़ों और जंगलों में ही गुजरता है।

By Edited By: Published: Tue, 31 Jul 2018 02:00 AM (IST)Updated: Tue, 31 Jul 2018 05:18 PM (IST)
शेर की तरह झारखंड के गांवों से गायब होते जा रहे हैं 'जंगल के राजा'
शेर की तरह झारखंड के गांवों से गायब होते जा रहे हैं 'जंगल के राजा'

जमशेदपुर, अमित तिवारी। झारखंड में 'जंगल के राजा' संज्ञा से नवाजे जाने वाले सबर समुदाय के लोग अब जंगल के शेर की तरह झारखंड के गांवों से गायब होते जा रहे हैं। यह झारखंड का सबसे पुराना आदिवासी समुदाय रहा है। इनका जीवन पहाड़ों और जंगलों में ही गुजरता है।

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यहां के ग्रामीण बीमार होने पर न अस्पताल जा पाते हैं ना ही इलाज करा पाते
जमशेदपुर शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर खड़ियाकोचा गांव है। पूर्वी सिंहभूम के पोटका प्रखंड के इस गांव में इस समुदाय की आबादी लगातार घट रही है। ठीक उसी तरह जैसे कि दलमा के घने जंगलों से शेर गायब हो गए। बीते छह साल में इस गांव की आबादी पांच फीसद घट गई है। कुल जनसंख्या 200 है। यहां के ग्रामीण बीमार होने पर अस्पताल जा पाते हैं ना ही इलाज करा पाते हैं। अस्पताल का 'अ' भी नहीं जानते। तबीयत खराब होने पर जंगल से जड़ी-बूटी लाकर खुद उपचार करते हैं। नतीजा, घर में ही मौत हो जाती है। दूसरे की भाषा भी नहीं समझ पाते। गांव के 95 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। तन पर कपड़ा नहीं दिखेगा। शरीर पर सिर्फ हड्डियां उभरी दिखाई देंगी।

झारखंड में सबर विशेष रूप से संरक्षित जनजाति है। इनकी संख्या अन्य जनजातियों की तुलना में बहुत कम है। सरकार इस समुदाय को बचाए रखने के लिए विशेष योजनाएं और हर सुविधाएं मुहैया कराने की दावा करती है। उधर, खड़ियाकोचा गांव में सिर्फ छह परिवार के पास राशन कार्ड है। बाकी लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। हाल ही में दो मरीजों ने इलाज के अभाव में घर में ही दम तोड़ दिया था। इसमें एक का नाम सौमी सबर (43) व दूसरे का नाम सुरमी सबर (40) था। दोनों को लंबे समय से सर्दी-खांसी और बुखार से पीड़ित थे।

किसी घर में शौचालय नहीं, राम भरोसे होता प्रसव
गांव में किसी के घर शौचालय नहीं है। पहाड़-खेत में लोग शौच करने के लिए जाते हैं। गढ़े का पानी पीकर प्यास बुझाते हैं। गांव में एक चापाकल लगा जरूर है, जो पीला पानी उगलता है। गांव में जन्म लेनेवाले नवजात भगवान भरोसे ही दूसरी दुनिया देख पाते हैं। यहां प्रसव गांव की बुजुर्ग महिलाएं खुद कराती हैं। इस दौरान अगर जच्चा-बच्चा की तबीयत बिगड़ती है तो देखरेख करनेवाला कोई नहीं होता। कई बार तो मौत भी हो जाती है। 23 वर्षीय रघु सबर कहते हैं कि उनके जीवन में शायद ही कोई जनप्रतिनिधि यहां पहुंचा हो।

एक नजर में
गांव पर नाम : खड़ियाकोचा
प्रखंड : पोटका
आबादी : दो सौ
घर : 29 झोपड़ियां
राशन कार्ड : 06
प्राइमरी स्कूल : 13
विद्यार्थी अधिकतम शिक्षा : इंटर का एक छात्र


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