Sir Ratan Tata Birth Anniversary: सर रतन टाटा जिन्होंने टाटा संस की विदेशों तक पहुंच स्थापित की, जानिए
भारत के अतीत के बारे में सर रतन टाटा को हमेशा काफी उत्सुकता थी। 1913 और 1917 के बीच पाटलिपुत्र में व्यापक खुदाई की गयी थी जिसके लिए उन्होंने 75000 रुपये दिये। सर रतन टाटा को 1916 में नाइट की उपाधि दी गई ।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आज हम बात करने जा रहे हैं सर रतन टाटा की। चौकिए नहीं, सर रतन टाटा, रतन टाटा के परदादा थे। 20 जनवरी को इनकी 151वीं जयंती है। सर रतन टाटा, जमशेदपुर जी टाटा के छोटे बेटे थे जिनका जन्म 20 जनवरी 1871 को हुआ था। इन्होंने अपनी पढ़ाई सेंट जेवियर्स कॉलेज, बॉम्बे से पूरी की थी। 1892 में इनका विवाह नवाज बाई सेट्ट से हुआ। हालांकि इस दंपती के कोई बच्चे नहीं थे।
सर रतन टाटा ने विदेश तक किया टाटा का प्रसार
आपको बता दें कि सर रतन टाटा ने 1896 में टाटा एंड संस में पार्टनर के रूप में शामिल हुए। 1904 में जमशेद जी नसरवान जी टाटा के निधन के बाद सर रतन टाटा ने पेरिस के ला यूनियन फायर इंश्योरेंस कंपनी के लिए काम किया। टाटा एंड संस भारत में इस कंपनी का एजेंट था। इसके अलावा उन्होंने फर्म, टाटा एंड कंपनी के दायित्व का भी निर्वाह किया और कंपनी की शाखाएं कोबे, शंघाई, पेरिस, न्यूर्याक और रंगून तक फैलाई।
सामाजिक क्षेत्र में है इनका काफी योगदान
सर रतन टाटा में सामाजिक चेतना के प्रति काफी सजग थे। रंगभेद के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के संघर्ष में महात्मा गांधी के प्रयासों का समर्थन करने के लिए उन्होंने 1.25 लाख रुपये का (पांच किश्तों में) दान किया। इसके अलावा बाढ़, अकाल और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी राहत कार्यों के लिए, सार्वजनिक स्मारकों, स्कूलों और अस्पतालाें के निर्माण के लिए दान किए। 10 वर्षों के लिए उन्होंने बॉम्बे नगरपालिका द्वारा शुरू किए गए किंग जॉर्ज पंचम एंटी ट्यूबरकुलोसिस लीग को हर साल 10 हजार रुपये का दान दिया।
कला के भी थे पारखी
सर रतन टाटा कला के बड़े पारखी थे। कई वर्षों तक, देश-विदेश के अपने दौरों के दौरान, उन्होंने चित्र, पेंटिंग, बंदूकें, तलवारें, चांदी के बर्तन, पांडुलिपियां, जेड, फूलदान और कालीन एकत्र किए। बाद में इस संग्रह को प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय बॉम्बे को सौंप दिया। भारत के अतीत के बारे में सर रतन टाटा को हमेशा काफी उत्सुकता थी। 1913 और 1917 के बीच पाटलिपुत्र में व्यापक खुदाई की गयी थी, जिसके लिए उन्होंने 75,000 रुपये दिये। सर रतन टाटा को 1916 में नाइट की उपाधि दी गई । 5 सितंबर, 1918 को उनका निधन हो गया।