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सात साल में 60 बेटियों की शादी करा चुका है सिख यूथ ब्रिगेड, ससुराल में नहीं सुनना पड़े ताना इसलिए सबकुछ रखते हैं गुप्त Jamshedpur News

पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में पिछले कई वर्षों से सिख यूथ ब्रिगेड गरीब व असहाय बेटियों के हाथ पीले करा रहा है। पिछले सात वर्षों में 60 बेटियों के हाथों में मेहंदी सज चुकी है।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Fri, 24 Jul 2020 08:00 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 08:00 PM (IST)
सात साल में 60 बेटियों की शादी करा चुका है सिख यूथ ब्रिगेड, ससुराल में नहीं सुनना पड़े ताना इसलिए सबकुछ रखते हैं गुप्त Jamshedpur News
सात साल में 60 बेटियों की शादी करा चुका है सिख यूथ ब्रिगेड, ससुराल में नहीं सुनना पड़े ताना इसलिए सबकुछ रखते हैं गुप्त Jamshedpur News

जमशेदपुर (गुरदीप राज)। पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर में पिछले कई वर्षों से सिख यूथ ब्रिगेड गरीब व असहाय बेटियों के हाथ पीले करा रहा है। पिछले सात वर्षों में 60 बेटियों के हाथों में मेहंदी सज चुकी है। उनका घर-परिवार (ससुराल) आबाद है। यह मदद चुपके-चुपके की जाती है। दे शिवा वर मोहे, शुभ कर्मन से कबहु न डरो- यह संगठन का मूल मंत्र है। शादी में बारात के स्वागत से लेकर हर तरह का खर्च यह संस्था खुद वहन करती है। दुल्हन के लिए नए कपड़े, बर्तन, बिस्तर भी संस्था अपनी तरफ से देती है। चुपके से की गई यह मदद इसलिए कि दुल्हन को ससुराल में ताना नहीं सुनना पड़े। शर्मिंदा नहीं होना पड़े। इस संस्था ने सिख के अलावा दूसरे समुदाय की बेटियों की शादियां भी कराई है।

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आपस में चंदा कर जुटाते हैं शादी के लिए पैसा

सिख यूथ ब्रिगेड की स्थापना वर्ष 2014 में हुई थी। तब सिर्फ पांच ही सदस्य जुड़े हुए थे। इसका गठन रंजीत सिंह ने किया था। धीरे-धीरे संस्था से 35 सदस्य जुड़ गए। समाज सेवा ही इसका लक्ष्य रहा है। सबसे पहले संस्था ने सड़़क पर ठंड से ठिठुरते लोगों के बीच कंबल बांटना शुरू किया था। इसके बाद गरीब परिवार की बेटियों की शादी कराने का बीड़ा उठाया। शादी में होने वाले खर्च संस्था के सदस्य आपस में चंदा कर जुटाते हैं। राशन, कपड़े आदि की खुद खरीदारी करते हैं। इसके बाद दुल्हन के माता-पिता को सिपुर्द कर देते हैं। 

कोई करता कारोबार तो कोई निजी कंपनी में नौकरी

सिख यूथ ब्रिगेड के अध्यक्ष रंजीत ङ्क्षसह कहते हैं कि संस्था ने कई ऐसी कन्याओं का विवाह कराया है, जिनके पिता या मां अपंग हैं। मजदूरी नहीं कर पाते हैं। किसी प्रकार के कारोबार के योग्य नहीं हैं। संस्था के कई सदस्य निजी कंपनियों में काम कर रहे हैं। कुछ कारोबार करते हैं। जब किसी की मदद करनी होती है तो आपस में चंदा जुटा लेते हैं। रंजीत सिंह कहते हैं कि इस काम से सभी को सुख-शांति मिलती है।


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