योजना का पता नहीं, शिलापट कार्यालय में पड़े
सरकारी योजनाएं फाइलों में तो बड़ी-बड़ी दिखाई जाती हैं, लेकिन इन्हें जमीन पर उतरा भी जाता है या नहीं, इसका ठीक-ठीक हिसाब न तो सरकार के पास होता है और न ही विभाग की दिलचस्पी ही इसके जोड़ घटाव में होती है।
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : सरकारी योजनाएं फाइलों में तो बड़ी-बड़ी दिखाई जाती हैं, लेकिन इन्हें जमीन पर उतरा भी जाता है या नहीं, इसका ठीक-ठीक हिसाब न तो सरकार के पास होता है और न ही विभाग की दिलचस्पी ही इसके जोड़ घटाव में होती है। होती तो पेयजल-स्वच्छता विभाग के कार्यालय में पांच छह साल पुरानी योजनाओं के शिलापट यूं ही बेकार पड़े न होते। ये शिलापंट कार्यालय में ऐसे पड़े हैं, जैसे ये योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह गईं। चूंकि प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन की सबसे ज्यादा जिम्मेदारी पेयजल एवं स्वच्छता विभाग पर है, लिहाजा चापाकल, डीप बो¨रग से लेकर शौचालय तक का निर्माण इस विभाग ने किया। आदित्यपुर स्थित कार्यालय से पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले की योजनाएं संचालित होती हैं। दोनों के लिए अलग-अलग कार्यालय और विभाग बने हुए हैं, जहां से योजनाएं संचालित होती हैं। आदित्यपुर स्थित कार्यालय में विभिन्न योजनाओं के लिए बने कई शिलापट पड़े हुए हैं, जिनकी तारीख बीत चुकी है। इसमें सबसे हाल का शिलापट 18 मार्च 2018 का है, जो सोलर आधारित भीतरदाड़ी खास लघु ग्रामीण जलापूर्ति योजना के उद्घाटन का है। शिलापट पर उदघाटनकर्ता के रूप में मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम लिखा है। पूर्वी सिंहभूम जिले के इस गांव की इस योजना के उद्घाटन के शिलापट पर खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग मंत्री अमर कुमार बाउरी, सांसद विद्युत वरण महतो, राज्यसभा सदस्य (अब पूर्व) डॉ. प्रदीप कुमार बलमुचू, विधायक मेनका सरदार व जिला परिषद अध्यक्ष बुलु रानी सिंह का नाम लिखा है। यह तो एक बानगी है। कार्यालय के भवन में ऐसे करीब 20 शिलापट हैं, जो वर्ष 2012-13 के भी हैं। ये शिलापट बता रहे हैं कि या तो योजना का उद्घाटन ही नहीं हुआ या योजना रद हो गई। हाल के दिनों में कई योजनाओं का ऑनलाइन शिलान्यास भी हुआ। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि इन्हें लगाना नहीं था, तो आखिर ये शिलापट बनाए ही क्यों गए थे।
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5-10 हजार के शिलापट
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में रखे गए शिलापट काफी कीमती हैं। ग्रेनाइट पत्थरों से बने शिलापट की कीमत 5-10 हजार रुपये के हैं। विभाग के संवेदक बताते हैं कि इन्हें मानगो के ही मार्बल कारोबारियों से बनाया गया है। हालांकि इसे विभाग को अपने खर्च से बनाना है, लेकिन अक्सर इसे संवेदक को वहन करना होता है। सवाल है कि विभाग खर्च करे या संवेदक लाखों रुपये गोदाम में रखने के लिए जनता की कमाई क्यों बर्बाद कर दी गई।
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इन योजनाओं का मुख्यमंत्री ने ऑनलाइन शिलान्यास कर दिया था, जिससे इन्हें कार्यस्थल पर नहीं लगाया जा सका।
- शिशिर सोरेन, कार्यपालक अभियंता