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शहरनामा : राम की कुटिया में 'वानर'

मजेदार और तीखे व्यंग्य वाले इस कालम को पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इशार किस ओर है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 10:00 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 10:00 AM (IST)
शहरनामा : राम की कुटिया में 'वानर'
शहरनामा : राम की कुटिया में 'वानर'

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर : एक राम की कुटिया वर्षो से राजनीति का अखाड़ा बनी हुई है, तो एक ऐसी ही राम की कुटिया अपने शहर में भी है, जहां कुछ वानर लंबे समय से उत्पात मचा रहे हैं। यहां के वानर कुटिया को तो नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं, लेकिन आपस में ही उठापटक करते रहते हैं। यहां इस बात को लेकर खींचतान चल रही है कि वानर मंडली का मुखिया कौन होगा। बीच में तो ऐसी नौबत आ गई कि दो अलग-अलग मुखिया अपनी-अपनी मंडली बनाने पर उतारू हो गए थे। यह तो भला हो मैडम का, जिन्होंने इस खटास को दूर करने में सफल हो गई। तय हुआ कि एक ही मुखिया होगा। गाड़ी आगे बढ़ी, लेकिन थोड़ी ही दूर चली कि ट्रेन का पहिया फिर डगमगाने लगा। अब तो ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर रेल डिरेल ना हो जाए। तीन-चार वानर इस खटास की जड़ हैं, लिहाजा देखना होगा कि इस बार मैडम जी का फार्मूला कामयाब होता है कि नहीं।

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--------------- बिन हंगामा सब सून : घर में बर्तन हों और खड़के नहीं, यह नहीं हो सकता। इसी तरह शिक्षा के मंदिर में शोरगुल ना हो, यह कैसे हो सकता है। आमतौर पर कालेजों में भीड़भाड़ और शोरगुल का माहौल एडमिशन के समय ही होता है। इस बार विश्वविद्यालय ने यह नियम बनाया कि एडमिशन के लिए कॉलेज आने की आवश्यकता नहीं होगी। सभी ऑनलाइन दाखिला लेंगे। कागजी दस्तावेज से लेकर फीस तक ऑनलाइन भरे जाएंगे, लेकिन इससे कालेजों में सन्नाटा पसरने का खतरा मंडराने लगा। कालेज के प्रबंधकों-शिक्षकों को लगा कि एडमिशन के दौरान कालेज में भीड़ ना लगे, शोरगुल ना हो, हंगामा नहीं हो, दो-चार खिड़की के कांच ना टूटें, तो कालेज होने का कोई मतलब ही नहीं रहेगा। फरमान जारी हुआ कि ऑनलाइन दाखिला लिए हों तो भी कालेज की खिड़की पर कागजात दिखाने होंगे, ऑफलाइन इंट्री करानी होगी। फिर क्या था कालेज परिसर में हंगामा मचना शुरू हो गया। प्राचार्य-शिक्षक भले ही 10-11 बजे आए, लेकिन बच्चे सुबह छह बजे से ही लाइन में लग गए। भूखे-प्यासे बच्चे शोरगुल मचाने लगे, भले ही उनके पेट कुलबुला रहे थे, लेकिन चिल्लाने से उनकी भूख शांत भी हो जा रही थी। बीच से लाइन में घुसने की अपने यहां शाश्वत परंपरा तो है ही, वरना हंगामा ओर मारपीट कैसे होगी। मजे की बात है कि घंटों लाइन में लगने के बाद जब बच्चे खिड़की पर पहुंचते थे, तब उन्हें बताया जाता था कि यहां उनके लिए नहीं है। प्रबंधन ने खिड़की पर यह कागज भी जानबूझकर नहीं चिपकाया कि किस खिड़की पर किस क्लास के कागज देखे जाएंगे, क्योंकि इससे हंगामा नहीं होने की संभावना बढ़ जाती। शिक्षकों से भी इस बात को गोपनीय रखने के लिए कहा गया था, इसलिए वह भी बच्चों को नहीं बता रहे थे कि किस क्लास का वेरिफिकेशन कब और किस खिड़की पर होगा। कुल मिलाकर पेपरलेस अभियान को पलीता लगाने का मुकम्मल इंतजाम कर लिया गया है।


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