अब बोझ नहीं, आमदनी का जरिया बनेगा ई-कचरा
वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे ई-कचरे से सोना, कॉपर सहित 30 से अधिक बहुमूल्य धातु निकाला सकते हैं।
जमशेदपुर (विकास श्रीवास्तव)। एक तरफ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट अर्थात ई-कचरा चिंता का सबब बना है। इस बीच खुशखबरी है कि जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल) के कुछ वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे ई-कचरे से सोना, कॉपर सहित 30 से अधिक बहुमूल्य धातु निकाला सकते हैं। ई-कचरा बोझ नहीं, आमदनी का एक जरिया बन सकता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, आम इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन, हार्ड डिस्क, मोबाइल बैटरी व एलसीडी मॉनीटर आदि के खराब होने पर फेंक देने या कबाड़ी के हवाले कर देने की आदत ई-कचरे की समस्या को बढ़ा रहा है। नई तकनीक के सहारे कंप्यूटर मदर बोर्ड, हार्ड डिस्क, मोबाइल, मोबाइल बैटरी, एलसीडी मॉनीटर आदि के खराब होने के बाद इनसे सोना, तांबा, जिंक, कैडमियम, लीथियम, कोबाल्ट जैसी कीमती धातुओं को अलग किया जा सकता है। एनएमएल की तकनीक पर कोरिया में एक व दिल्ली में दो प्लांट शुरू हो चुके हैं। इस तकनीक को विकसित किया है एनएमएल के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. मनीष कुमार झा व उनकी टीम ने। डॉ. मनीष मेटल एक्स्ट्रेक्शन एंड रिसाइक्लिंग डिवीजन के सीनियर असिस्टेंट डाइरेक्टर भी हैं।
प्रदूषण रहित तकनीक, निकालिए ल्युब्रिकेंट
मनीष कुमार झा, पिंसिपल साइंटिस्ट
इस तकनीक से प्रदूषण नहीं होता बल्कि ई-कचरे को डिसमेंटल करने से निकलने वाले धुंए से ग्रीस, ल्युब्रिकेंट्स का अतिरिक्त उत्पादन होता है। प्रक्रिया के दौरान पाइप के ऊपरी हिस्से में जमा होने वाले पदार्थ से ग्रीस व ल्युब्रिकेंट् निकाला जाता है।
किस ई-कचरे से कौन-सा धातु
- मदर बोर्ड : कॉपर शीट
- मोबाइल बैटरी : लीथियम, कोबॉल्ट (कोबॉल्ट सल्फर सॉल्ट जिसकी कीमत 7000 रुपये प्रति किलो है)
- मोबाइल फोन : सोना, कॉपर
- पीसीबी : जिंक, कैडियम, निकेल, कॉपर
- हार्ड डिस्क : नियोडायमियम, रेयर अर्थ मेटल फॉस्फर पाउडर (यह ऐसा पदार्थ हो जो दुनिया में सिर्फ चीन में उपलब्ध है, वह भी कम मात्रा में, चीन का इसपर एकाधिकार है।)
- एलसीडी मॉनीटर : इंडियम (यह खनिज ओर के रूप में उपलब्ध नहीं है। इसकी कीमत दो लाख रुपये प्रतिकिलो है।)
बन सकता रोजगार का बेहतर जरिया
हमने अपने शोध के जरिए ई-कचरा से कीमती धातुओं के उत्पादन की तकनीक विकसित कर सरकार को दिया है। इसके जरिए कीमती धातुओं के उत्पादन का काम दिल्ली और कोरिया में कंपनियां कर रही हैं। हर प्रदेश में प्लांट लगा दिए जाएं तो यह रोजगार का बेहतर जरिया बन सकता है।
- डॉ. मनीष कुमार झा, पिंसिपल साइंटिस्ट व सीनियर असिस्टेंट डाइरेक्टर मेटल एक्स्ट्रेक्शन डिवीजन एनएमएल