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केबुल कंपनी मामले में सरकार के आश्‍वासन पर सरयू ने सीएम को कहा धन्‍यवाद, किया ये आग्रह Jamshedpur News

जमशेदपुर में बंद पड़ी केबुल कंपनी के मामले में सरकार के आश्‍वासन पर विधायक सरयू राय ने मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन को धन्‍यवाद दिया है। साथ ही खास आग्रह भी किया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Fri, 13 Mar 2020 10:05 AM (IST)Updated: Fri, 13 Mar 2020 02:24 PM (IST)
केबुल कंपनी मामले में सरकार के आश्‍वासन पर सरयू ने सीएम को कहा धन्‍यवाद, किया ये आग्रह Jamshedpur News
केबुल कंपनी मामले में सरकार के आश्‍वासन पर सरयू ने सीएम को कहा धन्‍यवाद, किया ये आग्रह Jamshedpur News

जमशेदपुर/ रांची, जेएनएन। जमशेदपुर में बंद पड़ी इंकैब इंडस्ट्री लिमिटेड (केबुल कंपनी) के मामले में सरकार के आश्‍वासन पर विधायक सरयू राय ने मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन को धन्‍यवाद दिया है। साथ ही खास आग्रह भी किया है।

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सरयू ने अपने ट्वीट में लिखा कि धन्यवाद कि मेरे ध्यानाकर्षण के जवाब में सरकार इंडियन केबुल कंपनी, जमशेदपुर की नीलामी रोकने के लिए एनसीएलटी में पार्टी बनने पर सहमत हो गई। अनुरोध है कि इस बारे में सीएम महाधिवक्ता को त्वरित कारवाई करने का निर्देश दें।  ऐसा न हो कि यह कोरा आश्वासन बनकर रह जाए। विधायक सरयू राय ने गुरुवार को विधानसभा में ध्यानाकर्षण के जरिए केबुल कंपनी से संबंधित प्रश्न उठाया था। मंत्री आलमगीर आलम ने इस पर जवाब देते हुए कहा था कि सरकार इसे लेकर गंभीर है। औद्योगिक वातावरण को प्रभावी बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने औद्योगिक नीति बनाई है। इंकैब कंपनी पर राज्य सरकार संज्ञान लेगी। 

सरकार के पास सूचनाओं का अभाव

सरयू राय ने इस पर कहा कि राज्य सरकार के पास सूचनाओं का अभाव है। इससे सबका हित प्रभावित होगा। इस पर मंत्री ने उत्तर दिया कि सरकार एनसीएलटी में पक्ष मजबूती से रखेगी। सरयू राय ने अपनी चिंता से अवगत कराते हुए कहा कि 1920 में स्थापित इंकैब इंडस्ट्री लिमिटेड को टाटा स्टील ने 177 एकड़ जमीन दिया था। यह भूखंड टिस्को को सरकार की ओर से मिले 15724.84 एकड़ जमीन का हिस्सा था, जो सरकार ने उसे दिया था। समझौते में अंकित था कि इंकैब को जमीन की जरूरत नहीं रहेगी, तो उसे किसी को देने या बेचने से पहले वह स्थानीय सरकार से पूछेगी कि समझौते के अनुरूप इसे लेना चाहती है या नहीं।

1985 में ब्रिटिश कंपनी ने छोड़ी इंकैब

1985 में इंकैब को ब्रिटिश कंपनी द्वारा छोड़े जाने के कारण यह भारत सरकार के अधीन हो गया। 1985 से 1993 तक काशीनाथ तापूरिया ने वित्तीय संगठनों की पहल पर इसे चलाया। जब कंपनी दिवालिया हो गई तो वित्तीय कंपनियों ने इसे चलाने के लिए मारीशस के मेसर्स लीटर्स यूनिवर्सल को दे दिया। इसने कंपनी के प्रबंधन में कई बार बदलाव किया। कंपनी मुकदमेबाजी का शिकार हो गई। कंपनी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जिस प्रबंधन ने इसे लिया, उसका उद्देश्य कंपनी चलाने की बजाय स्थायी संपत्ति हड़पना था।

टाटा स्‍टील ने नहीं ली थी रुचि

दिल्ली उच्च न्यायालय ने टाटा स्टील को कंपनी चलाने को कहा लेकिन उसने रुचि नहीं ली। सुनियोजित तरीके से कंपनी की देनदारियां बढ़ाकर इसे बीमार कर दिया गया। इसका सबसे खराब असर इंकैब के कर्मचारियों पर पड़ा। मजदूरों के समक्ष भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई। कई श्रमिक मौत के मुंह में चले गए। उन्होंने कहा कि इंकैब को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य सरकार को पहल करना चाहिए।  


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