Jharkhand Politics : सरयू राय ने बताया, किन परिस्थितियों में भाजपा से करनी पड़ी बगावत
Story to Rebel from BJP. झारखंड में विधानसभा चुनाव के एक साल पूरे हो गए। चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री को हराकर देश स्तर की सुर्खियां बने सरयू राय ने इस मौके पर बताया कि उन्हें किन परिस्थितियों में भाजपा से बगावत करनी पड़ी।
जमशेदपुर, जासं। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय ने विधानसभा चुनााव में जीत के एक वर्ष पूरे होने पर बिरसानगर में जनता को संबोधित किया। इसमें सरयू राय ने बताया कि उन्हें किन परिस्थितियों में भाजपा से बगावत करनी पड़ी।
यह रहा उनके भाषण का अंश : आज के दिन साल भर पूर्व आपके एक पराक्रम का परिणाम आया। यह दिन, इस दिन की गतिविधियां, 2019 का विधानसभा चुनाव, उसके पहले लोकसभा चुनाव, गत पांच वर्ष की सरकार का संचालन, उस अवधि में मेरे द्वारा उठाए जाते रहे सवाल ये सभी आज मेरे ज़ेहन में कौंध रहे हैं। मैंने अपने जीवन के 70 वर्षों और सामाजिक जीवन के 50 वर्षों में हमेशा कार्यकर्ता भाव से काम किया है। 1963 में जब मैं 12-13 वर्ष का था, आठवीं कक्षा में पढ़ता था। तभी संयोगवश मेरा जुड़ाव आरएसएस हो गया। मैट्रिक पास करने तक तीन वर्ष तक मैं अपने गांव की शाखा का मुख्य शिक्षक था। कॉलेज जीवन में विद्यार्थी परिषद के लिए काम किया।
कठिन समय में भी नहीं छोड़ा नीति-सिद्धांत
1974 के भ्रष्टाचार और कुशिक्षा विरोधी आंदोलन से जुड़ा। इमरजेंसी के कठिन समय में भूमिगत रहकर काम किया। 1980 में जनता पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना। किसान संगठन चलाया। पत्रकारिता की। एकीकृत बिहार में भाजपा ने महामंत्री के नाते झारखंड का प्रभारी बनाया। एमएलसी बनाया, एमएलए बनाया, मंत्री बनाया। अनेक ज़िम्मेदारियां दीं। प्रत्यक्ष जिम्मेदारी मैंने कार्यकर्ता भाव से निभाया। अपने पीछे रहकर साथियों को आगे बढ़ाया। विनम्र रहकर संगठन को सींचा। परंतु कठिन से कठिन समय में भी मैंने नीति-सिद्धांत नहीं छोड़ा। जेपी आंदोलन से भ्रष्टाचार का विरोध करने का सबक लिया। गांधी, लोहिया, दीनदयाल जी से राजनीति में शुचिता, कमजोर एवं गरीब के अधिकार के लिए और ग़लत का विरोध तथा सही के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा ली। विधायक रहा तब भी और चुनाव में हार मिली तब भी, समभाव से मूल्यों की रक्षा की। कार्यकर्ताओं को सम्मान दिया। स्वयं कार्यकर्ता भाव से काम किया।
पिछले साल आया कठिन समय
सरयू ने कहा कि पिछले साल मेरे सामने एक बड़ी चुनौती आई। घोर असमंजस का सामना करना पड़ा। एक व्यक्ति के अहंकार, हठधर्मिता और भ्रष्ट आचरण के कारण मुझे आपकी शरण में आना पड़ा। निर्दलीय होकर चुनाव लड़ना पड़ा। ऐसा कभी सोचा नहीं था कि जिस विचार के लिये बचपन से काम किया, उसी पार्टी के विरोध में चुनाव लड़ना पड़ेगा। मेरे सामने कठिन परिस्थिति थी। सम्मान और स्वाभिमान के साथ समझौता करूं या भ्रष्टाचारी, बदज़ुबानी, अहंकारी का सामना करने का खतरा मोल लूं।
इन महापुरुषों से मिली प्रेरणा
ऐसे समय में मुझे गांधी, जेपी, लोहिया और दीनदयाल जी से प्रेरणा मिली। गांधी ने कहा था कि जीवन में कभी ऐसा समय आता है जब नियमों की अवहेलना करना कर्तव्य बन जाता है। जेपी ने कहा था कि अत्याचार, अन्याय और दमन के सामने झुकना कायरता है। लोहिया जी ने कहा था कि जिंदा क़ौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं। दीनदयाल जी ने कहा था कि यदि चुनाव में उम्मीदवार देने में पार्टी गलती कर दे, तो कार्यकर्ताओं को और जनता को यह गलती सुधार देना चाहिए।
इस वजह से लिया क्षेत्र बदलने का फैसला
ध्जब भारतीय जनता पार्टी के झारखंड के अहंकार ग्रस्त सत्ताधारी ने मुझे अपमानित करने का निर्णय किया और आलाकमान इसके सामने झुक गया, तो राजनीति क्षेत्र के इन महान पुरोधाओं के विचारों से प्रेरणा और ताकत लेकर मैं आपकी शरण में आने और जमशेदपुर पूर्वी क्षेत्र से चुनाव लड़ने का फैसला किया। मान-सम्मान की रक्षा के लिए, सच को सच साबित करने के लिए, अहंकार एवं झूठ का मुंह काला करने के लिए जमशेदपुर पश्चिम की अपनी सीट छोड़कर जमशेदपुर पूर्वी की महान जनता की शरण में आया।
आपको शर्मिंदा होना पड़े, ऐसा काम नहीं करूंगा
जमशेदपुर पूर्वी के लोग भी शायद इसके लिए पहले से तैयार थे। आपने मेरी पीड़ा को अपनी पीड़ा के साथ जोड़ा, जिसका नतीजा 23 दिसंबर 2019 को सामने आया। सच्चाई की जीत हुई, झूठ धूल धूसरित हुआ। आपके समर्थन ने मुझे शक्ति दी। अन्याय व अत्याचार के खिलाफ़ संघर्ष जारी रखने के लिए प्रेरित किया। आपके ऐतिहासिक फ़ैसले का आज एक साल पूरा हो रहा है। आज इसकी पहली वर्षगांठ है। आपके फैसले को नमन करने, आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने और आपको यह भरोसा दिलाने के लिये आपसे मुखातिब हूं कि आपके प्रतिनिधि के रूप में मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगा, जिससे आपका माथा झुके। आप शर्मिंदा महसूस करें। आज मैं पुन: आपकी सेवा में समर्पित रहने, आपकी समस्याओं को दूर करने, आपके एहसान का मोल चुकाने से नहीं चूकने का संकल्प लेता हूं।
प्रधानमंत्री को भी बताता था, सरकार में क्या गलत हो रहा है
मित्रों मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि किस परिस्थिति में एक साल पहले मुझे निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। निर्दल चुनाव लड़ने की घोषणा करते समय तक मैं झारखंड सरकार में मंत्री था। मंत्री के रूप में मैंने न केवल अपने विभाग को जनसेवा का कारगर हथियार बनाने की कोशिश की थी, बल्कि सरकार में जहां भी ग़लत होता था, उसे ठीक करने की पहल करता था। मुख्यमंत्री को भी रोकता- टोकता था। मंत्रीपरिषद के गलत निर्णयों का विरोध करता था। मंत्रियों को अपमानित करने का विरोध करता था। यह बात मैं प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष तक पहुंचाता था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने टिकट काटने पर लगा दिया था वीटो
मेरा ऐसा करना उस समय के मुख्यमंत्री को नागवार गुजरता था। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि वे मुझे आगामी चुनाव में टिकट नहीं लेने देंगे। चुनाव नज़दीक आने लगा और राजस्थान भाजपा के क़द्दावर नेता ओम माथुर को झारखंड प्रभारी नियुक्त कर दिया गया। गत साल सितंबर में मैं उनसे मिलने दिल्ली गया और उनके सामने वस्तुस्थिति रखा और बताया कि मुख्यमंत्री मुझे चुनाव में टिकट नहीं देना चाहते हैं। यदि ऐसा है और पार्टी भी यही चाहती है तो मुझे पहले बता दीजिए। मैं स्वयं प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर एलान कर दूंगा कि बहुत हो गया, अब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा और पार्टी के निर्देशानुसार काम करूंगा।
मिली थी चुनावी तैयारी में जुटने की सलाह
माथुर जी ने कहा कि मै ऐसा न सोचूं, चुनाव की तैयारी करूं। इसके एक माह बाद बिहार भाजपा के वरीय नेता नंदकिशोर यादव झारखंड के सह चुनाव प्रभारी नियुक्त हुए। उनके रांची आने पर मैं उनसे मिला और माथुर जी से हुई बातों को दोहराया। उन्होंने भी वही कहा जो माथुर जी ने कहा था।इसके बाद भी जब स्थिति नहीं सुधरी और लगातार ऐसी सूचना मिलती रही कि मुख्यमंत्री ने मेरे टिकट के ख़िलाफ वीटो पावर लगा दिया है तो मैं माथुर जी और नंदकिशोर जी को एक साथ यह बताया। दोनों ने मुझसे कहा कि मैं जमशेदपुर जाकर चुनाव की तैयारी में जुट जाऊं। इनके आश्वासन पर मैंने चुनाव घोषित होने के पहले जमशेदपुर पश्चिम में अपना चुनाव कार्यालय खोल दिया। चुनाव की तैयारी में लग गया।