संताली भाषा दिवस आज: संवैधानिक अधिकार से खुले विकास के द्वार
Santali language day today. भारत सहित विश्व की अन्य भाषा की पुस्तकें भी संताली में अनुवाद हो रही हैंं। आज पहले से ज्यादा संताली की साहित्य गतिविधियां हो रही हैं।संताल समुदाय के लोग 22 दिसंबर को भाषा विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।
जमशेदपुर,जासं। संताली भाषा का विकास संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किए जाने के बाद ही तेजी से हुआ। इसके बाद कई विधाओं में संताली साहित्य का प्रकाशन होने लगा। साहित्य अकादमी पुरस्कार, युवा पुरस्कार, बाल पुरस्कार भी प्रकाशन किया गया। इससे मानो संताल समुदाय के सुधिजन, कविजनों में नई ऊर्जा का संचार हुआ। यह बातें सिंहभूम कालेज चांडिल के संस्कृत विभाग के एचओडी तथा संताली भाषा में कई पुस्तकों का अनुवाद करने वाले डा. सुनील मुर्मू ने कहीं।
उन्होंने कहा कि भारत सहित विश्व की अन्य भाषा की पुस्तकें भी संताली में अनुवाद होकर पहुंच रही है। आज पहले से ज्यादा संताली की साहित्य गतिविधियां हो रही हैं। लेखकों को प्रोत्साहित किया जाना लगा है। संताल समुदाय के लोग 22 दिसंबर को पारसी जितकार माहा अर्थात भाषा विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। वस्तुत: यह दिन संताली भावनाओं के सम्मान का दिन है।
सभी सरकारों को देना चाहिए ध्यान
पारसी माहा दिसवस पर अखिल भारतीय संताली लेखक संघ के प्रधान सचिव सुधीर चंद्र मुर्मू ने कहा कि भाषा के विकास में सभी सरकारों को ध्यान देना चाहिए। आठवीं अनुसूचि में शामिल होने के बाद संताली भाषा का विकास सही ढंग से नहीं हो पाया है। विश्व में भी इस भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी अपनी लिपि है, जो ओलचिकी के नाम से जानी जाती है। इस लिपि की यह खूबी है कि किसी भी भाषा को उच्चारण के अनुसार लिखा जा सकता है। संताल समाज 22 दिसंबर को पारसी माहा के रूप में मनाते हैं। आने वाले दिनों में इसके विकास के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों को तत्पर रहना होगा। इसे स्कूली पाठ्यक्रमों में भी लागू करना होगा।