रिदम ऑफ अर्थ ने कराया देश की संगीत विविधता से परिचय
संगीत की अपनी वैश्विक भाषा है। भले ही सभी समुदायों के गीत के बोल अलग हों लेकिन संगीत की धुन एक ही तरह के हैं।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : संगीत की अपनी वैश्विक भाषा है। भले ही सभी समुदायों के गीत के बोल अलग हों लेकिन संगीत की धुन एक ही तरह के हैं। जब यह आत्मा से निकलती है तो उसकी बात ही कुछ और है।
जनजातीय सम्मेलन संवाद की दूसरी शाम कर्नाटक के मशहूर फॉक बैंड स्वरात्मा ने गोपाल मैदान में यही एहसास कराया। मात्र एक सप्ताह की प्रैक्टिस और तीन वर्षो की मेहनत से एक धुन तैयार किया। जिसे अखड़ा (गोलाकार मंच) पर 16 राज्यों के 90 कलाकारों ने 60 अलग-अलग तरह के वाद्य यंत्रों से प्रस्तुत किया। एक मंच में एक साथ असम के रांभा, झारखंड से हो, उरांव, पहाड़ियां, मुंडा, संताल, मणिपुर से बोड़ो, ओडिशा के पोखारिया व प्रजा समुदाय के लोगों ने एक साथ अपनी प्रस्तुति ऐसी दी कि हर कोई झूमने पर मजबूर हो गया। 90 मिनट की प्रस्तुति के दौरान स्वरात्मा बैंड की ओर से धरती का हूं मैं.. धरती के हो तुम.., मेहमां हैं हम इस धरती के.। कनड़ गीत ई भूमि.. और धरती स्वर्ग हो रही है देखो.. जैसे गीतों से खूब झूमाया। गिटार, वॉयलेन, मांदर, ढ़ोल, बनाम, पिपरी, भेर, ढपली, झांझ और ड्रम की धुन से ऐसा समां बांधा कि टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन, उनकी पत्नी रूचि नरेंद्रन, कॉरपोरेट सर्विसेज के वाइस प्रेसिडेंट चाणक्य चौधरी सहित विदेश और देश भर से आए कलाकार जमकर थिरके। बैगा जनजाति ने प्रस्तुत किया फाग नृत्य
छत्तीसगढ़ के बैगा जनजाति के लोगों ने मुखौटा पहनकर और महिलाएं बांस की बनी गिज्जी को बजाकर नृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य को फागुन के महिने में किया जाता है। इसके अलावे तेलंगाना के आदिवासियों से गुस्साड़ी नृत्य प्रस्तुत किया। जिसे ढेमसा, दापुला, कलिकोम, ढ़ोल और नगाड़ों की थाप पर मोर के पंखों से सजी महिलाओं ने प्रस्तुत किया। वहीं, मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के समुदाय ने करमा नृत्य और त्रिपुरा के निवासियों ने मोसाक नृत्य प्रस्तुत कर अपनी संस्कृति से सभी का परिचय कराया। इस नृत्य में इन्होंने दिखाया कि वे कैसे दिसंबर के माह में हिरण का शिकार करते हैं। आदिवासियों की समस्याओं का मिलकर करेंगे हल : नरेंद्रन
टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन ने पत्रकारों से बात की। उन्होंने कहा कि देश की 180 आदिम जनजातियों में लगभग 113 आज जमशेदपुर में हैं। देश की संस्कृति बहुत समृद्ध है। टाटा स्टील पिछले छह वर्षो से संवाद के रूप में आदिवासियों को एक मंच प्रदान कर रही है, जहां वे अपनी कला, संस्कृति का परिचय तो कराते ही हैं। साथ ही हमें अपनी समस्याओं से भी अवगत कराते हैं। हमारी कोशिश होगी कि उनकी समस्याओं का सरकार के साथ मिलकर सुलझाने का प्रयास करेंगे।